Tuesday, December 6, 2011

"नियति" का चक्र



कभी सिहरती
कभी महकती
कभी तपती

कभी भीगती

स्वतः यूँही घूमती हुई
आनंदित हूँ

विचलित नहीं हूँ
जानती हूँ
नीयत नहीं ये तुम्हारी
नियति के चक्र में तुम बंधे हो
और तुम्हारे चक्र में "मैं " बंधी हूँ .....

*** शोभा ***

संस्कार



मैं तुमसे बार बार रूठती
बेवजह जिद करती
मेरी छोटी छोटी गलतियों पर
तुम हमेशा मुझसे नाराज़ हो जाती
जहाँ जाओगी ऐसे ही करोगी ..?
कभी प्यार से मेरी चोटी बनाते हुए
कभी खाना खिलाते हुए
कभी मेरा सर अपनी गोद में रखकर
थपकी देकर सुलाते हुए
तुम मुझमें बूँद बूँद करके
संस्कारों का सागर भरती रही
और एक दिन
मुझे गुड़ियों की तरह सजाकर
उस दुनिया में भेज दिया
जहाँ भेजने की बात
तुम अक्सर करती थी
तुम्हारे दिए संस्कारों के सागर की
एक एक बूँद से मैंने
उस दुनिया को भिगों दिया
तुम्हारी दुनिया से दूर होकर भी
तुमसे जुडी हूँ
किसी से सुना है
तुम भी मेरी ही तरह
यूँ ही रूठ जाया करती हो
बेवजह जिद करती हो
जिन संस्कारों की बूंदों से
तुमने मुझमें एक सागर भर दिया था
उसकी कुछ बूंदों से
तुम्हें भी भिगोना चाहती हूँ
इंतजार कर रही हूँ
कोई तो कहे
जहाँ से आई हो
वहाँ कोई तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है .......

शोभा











Friday, November 18, 2011

आँखें





जब गढ़ा होगा खुदा ने तुम्हें

गढ़ते वक़्त तुम्हारी आँखें

रोशन हुई होंगी उसकी आँखें

क्या गढ़ लिया तुमने इन आँखों में

देखकर इन्हें सहमी , डरी

कभी जमीं , तो कभी आसमाँ में

पनाह माँगती हैं,मेरी आँखें .... ( शोभा )

Wednesday, November 16, 2011

आपके जिगर से दूर न हो जाए कहीं आपके जिगर का टुकड़ा

आजकल  टीन एज  बच्चों की आत्महत्या की ख़बरें आम बात हो गयीं हैं ! टीवी और समाचार पत्रों में आये दिन ये ख़बरें हम पढतें सुनतें हैं ! फिर एक दुसरे से और खुद से प्रश्न करते हैं ......
उसने ऐसा क्यों किया ...?
ऐसा करने से पहले उसने एक बार अपने माता-पिता के बारे में क्यों नहीं सोचा ...?
उसे किसी से किसी तरह की परेशानी थी तो उसने घर में किसी से उसका जिक्र क्यों नहीं किया ..?


दोषी कौन ...?

ये सारे प्रश्न वाजिब भी हैं लेकिन ऐसी स्थिति आई क्यों , अभिवावकों को इस प्रश्न पर गंभीरता से सोचने की जरुरत है ! कहीं माँ-बाप बच्चों से जरुरत से ज्यादा आकंछायें और उम्मीद तो नहीं लगा बैठते और पूरा न हो पाने पर बच्चे को उसके लिए दोषी तो नहीं ठहराते ..?
आज एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्प्रधा सब पर हावी हो रही है ! इसका असर मासूम बचपन पर भी पड़ा है ! माँ-बाप पड़ोसियों और अपने मित्रों के बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते देख , उसका उदहारण अपने बच्चे को देकर अनजाने में कहीं न कहीं व्यंग करके अपने ही बच्चे के दिल को चोट पहुचातें हैं ! अगर इम्तहान में बच्चे के अंक कम आतें हैं उसके लिए भी उसे इतना दोषी ठहराया जाता है जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो ! अभिवावकों को इन सब बातों से ऊपर उठाना होगा और ये समझना होगा की उनके फूल से , जिगर के टुकड़े उनका  स्टेटस सिंबल मात्र नहीं हैं !


बच्चे में हार्मोनल चेंजेज़

आमतौर पर लड़कियों में 8  वर्ष और लड़कों में 12  वर्ष की आयु में  हार्मोनल चेंजेज़ आने लगतें हैं ! अपने  में अचानक आये शारीरिक और निजी बदलाव के कारन बच्चा चिडचिडा और विद्रोही हो जाता है ! मन में इस बदलाव से जुड़े प्रश्नों का आना भी स्वाभाविक है ! ऐसे में अगर अभिवावक का व्यवहार बच्चे से मित्रता पूर्वक नहीं है तो वो या तो अकेले ही घुटता रहेगा या फिर अपने मित्रों से ये बातें शेयर करेगा ! ऐसे में मित्र को ही अपना सबसे बड़ा करीबी मानने लगेगा ! अभिवकों को चाहिए की अपने बच्चे के अच्छे मित्र बने जिससे वो किसी भी तरह की बात आपसे बेहिचक शेयर कर सके ! स्कूल और कॉलेज में बच्चे को सभी मित्र ऐसे नहीं मिलेंगें को वो उसे सही सलाह ही दें ! कुछ मित्र बच्चे को भ्रमित भी कर सकतें हैं जिससे बच्चा किसी बुरी लत का शिकार भी हो सकता है !


बच्चों को समय दें

 आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की कमीं सभी के पास है ! माता-पिता अगर दोनों नौकरीपेशा वालें हैं तो बच्चों के लिए वक़्त निकलना और भी मुश्किल हो जाता है ! फिर भी जिगर के टुकड़ों के जीवन से बढ़कर तो कुछ नहीं है ! कितनी भी व्यस्तता हो बच्चों को समय जरुर दें और ये समय आप रात के खाने के वक़्त और टीवी देखते हुए भी दे सकतें हैं ! उनसे मित्रतापूर्वक बात करें और उनकी पूरे दिन की गतिविधियों की जानकारी लें ! उनके कितने दोस्त हैं उनके भी रहन-सहन और विचारों की जानकारी लें ! उचित-अनुचित बहुत प्यार से बच्चे को समझाएं ! दिन में भी एक दो बार बच्चे को फ़ोन करके उनसे उनका हाल-चाल जरुर पूछें !


स्पर्श का महत्व

 बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए उसे कभी कभी प्यार से स्पर्श जरुर करिए ! अगर बेटा है तो कभी प्यार से उसका सर अपनी गोद में रखें उसके बालों में उंगलिया फिराएं इसी तरह बेटी को भी कभी अचानक ही गले लगायें , प्यार से उसके माथे पर किस करें ! उन्हें ये अहसास दिलाइये की वो कितने ख़ास हैं आपके लिए ! कभी-कभी दिल में बहुत प्यार होते हुए भी अभिवावक बच्चों से व्यक्त नहीं करते हैं ! जब भी वक़्त मिले अपने प्यार में बच्चे को भिगों दीजिये !
यकीन मानिये ये सब सावधानिया अभिवावक बरतेंगें तो कभी भी उनके जिगर के टुकड़े उनसे दूर जाने की भी नहीं सोचेंगें भी नहीं !
(शोभा)

Friday, October 28, 2011

'टिकुली'



ब्रह्म मुहूर्त का प्रहर
पास 'पोखर' से आती
'भुजैटें' की आवाज़
चौखट के अन्दर से आती
'पायल' की झुन झुन

भक्तिमय मन्त्रों के ..
उच्चारण की गुन-गुन
'कुचिया ' से बुहार की आवाज़
चूल्हे से आती लेप की सुगंध
हल्का उजाला क्षितिज पर
अम्बर के माथे नहीं सजा
अभी नूरानी सूरज
आँगन में एक सखी के
माथे पे चमकती "टिकुली "
मंद मंद मुस्काती
इक माँ अन्नपूर्णा
'अदहन' धरने लगी चूल्हे पर
संग संग उनकी मधुर आवाज़
मैं सुनती रही गुन-गुन
उफ्फ़ ! ये कैसी कर्कश
गाड़ियों के हार्न की आवाज़ ?
मैं घबरा के उठ बैठी , जिसे सुन
महानगरों के शोर में
गाँव के सुन्दर ख्वाब रही थी बुन ......

~ ~ शोभा ~ ~


'भुजैटें' = पंक्षी
'कूची '= झाड़ू
'टिकुली' = बिंदी

Tuesday, October 11, 2011

एक कविता अधूरी सी




एक कविता अधूरी सी है


शब्दों में ढली थी मुस्कुराकर


उदित हुई थी भोर की लाली लेकर


मध्य में आकर थमीं सी है


कुछ शब्द चहके थे चिड़ियों से


अंधियारों में वो चहक खोयी सी है


रात रात भर भटक रहे


ठहरते नहीं एक भी


शब्द वो कहाँ से लाऊं


खोजती ये आँखें


कई रातों से सोयी नहीं है


एक कविता अधूरी सी है .........






शोभा


हाँ, मैं चोरनी हूँ ..:)




हाँ, मैं चोरनी हूँ ..:)


चुपके से कुछ खूबसूरत पल


चुरा लेतीं हूँ ...






जब भी देखे तुमने ,


मेरी आँखों के भीगे कोर


हर बार ही तुमने अनदेखा किया


एक बार जो देखा मुस्कुराते हुए


चौंक गए थे तुम


और मैं सहम गयी थी






भूल गयी थी मुस्कुराना


फूलों संग खिलखिलाना


चिड़ियों संग आसमाँ में उड़ना


तितलियों के पीछे भागना






चुपके से ही सही


सुबह की धूप देखकर मुस्कुरातीं हूँ


फूलों संग खिलखिलातीं हूँ


उन्हीं के जैसी महकती हूँ


चिड़ियों संग उड़तीं हूँ


उन्हीं के जैसी चहकती हूँ


तितलियों के पीछे भागतीं हूँ


उन्हीं के रंगों में रंग जाती हूँ






हाँ , मैं चोरनी हूँ ...:)


चुपके से कुछ खूबसूरत पल


चुरा लेतीं हूँ ...






~ ~ शोभा ~ ~

 ·  ·  · Share · Delete

Saturday, September 17, 2011

जब से प्रिय संग




पुलकित नयन


हिय हर्षित


निशा सुहाई


हिय प्रीत समायी


जब से प्रिय संग


नेह लगायी






हृदयांगन


पुष्प खिले


रैन चाँदनी


देख शरमाई


जब से प्रिय संग


नेह लगायी ....


Tuesday, August 16, 2011

प्रिय ! ऐसा तुम क्यों कहती हो ?

प्रिय ! ऐसा तुम क्यों कहती हो ?

by Shobha Mishra on Tuesday, August 9, 2011 at 4:11pm
मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो?

जननी हो
बहन हो
अर्धांगिनी हो
बेटी हो तुम
सच में
ममता का तुम सागर हो

मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो?

तुम ही नहीं
मैं भी माँ के आँचल से दूर हुआ
माँ की थपकी
वो प्यार भरी लोरी
सुनी थी कब ?
यादों में बस रह गयी वो

मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो?

आँसू बहाकर अपनी पीड़ा
मुझसे तुम बाँट लेती हो
मैं अपनी पीड़ा जब्त कर
आँसू अपने स्वयं पीकर
मुस्कुराता रहता हूँ
ह्रदय की पीड़ा तुम समझो

मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो?

पुरुष ही नहीं
पिता भी हूँ
भाई भी हूँ
जीवन साथी
एक प्यारा दोस्त भी हूँ
न समझो खुद को बंधन में
प्यार से मुझे ये मान तो दो

मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो?

चलो एक वादा करें
हम एक दुसरे पर ममता बरसाएंगे
संग  खेलकर  बचपन  जियेंगे
दुःख-सुख  बाँटकर दोस्त  बनेगें
सदा एक दुसरे का साथ देंगें
मुश्किलें चाहे जितनी भी हो

मैं पुरुष
बस पुरुष ही रहा
पत्थर दिल हूँ मैं
प्रिय !
ऐसा तुम क्यों कहती हो ?

शोभा

फरगुदिया

फरगुदिया

by Shobha Mishra on Sunday, August 7, 2011 at 8:51am
आज भी याद है वो दिन , जब मामा जी का पत्र पढ़कर मेरी माँ ने मेरी बड़ी दीदी को आवाज़ लगायी ! वो कुछ घबरायी और डरी हुई भी थी ! मैं भी माँ की आवाज़ सुनकर भाग कर उनके पास गयी  ! दीदी भी भाग कर माँ के पास आई और प्रश्न भरी नजरों से माँ की तरह देखा , माँ ने मामा जी का पत्र उनकी तरफ बढ़ाते हुए उनसे जो कहा वो सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी ! उन्होंने कहा "फरगुदिया अब नहीं रही" !!!!  उसके बाद माँ और दीदी में क्या बातें हुई वो उनके पास खड़ी होने पर भी मैं सुन नहीं सकी ! ये खबर सुनकर माँ और दीदी को दुःख से ज्यादा हैरानी हो रही थी ! वो फरगुदिया की मृत्यु के बारें में कुछ दबी जुबान से बात कर रहीं थी , जो मैं समझ न सकी और न ही समझ सकने की स्थिति में थी ! मैं रो नहीं रही थी , लेकिन मेरी  पीड़ा मैं ही समझ सकती थी ! जब ये घटना घटी , तब मेरी उम्र लगभग १४ वर्ष थी और मेरी हम उम्र थी फरगुदिया ! फरगुदिया से जुडी यादें मेरे आँखों के सामने चलचित्र की तरह दौड़ गयीं ...

     हम हर साल गर्मीं की छुट्टियों में मामा जी के घर गाँव जाया करते थे ! बाग़- बगीचे , खेत -खलिहान , चिड़ियों की चहचहाहट के साथ सुबह का सूरज ... प्राकृतिक छटाओं से भरपूर है हमारे मामाजी का गाँव ! जब भी हम गाँव जाते ... गाँव के बाहर से ही लोग हमें , खासतौर  पर औरतें और बच्चे हमें ऐसे घूरते जैसे हम  दूसरे लोक के प्राणी हों ! कुछ तो हमारे  साथ-साथ चलकर मामा जी के घर तक भी आ जाते .. और भीड़ लगाकर हमें आश्चर्यचकित नजरों से देखते रहते ! मुझे उन सबका हमारी तरफ इस तरह देखना बहुत ही अजीब लगता था , मैंने नानीजी से इसका जिक्र भी किया की ये हमें इस तरह क्यों देखतें हैं ? नानी जी ने मुस्कुराते हुए मुझे पुचकार कर कहा  की ये तुम्हारे खिलौनें देखने आतें हैं .....

लेकिन उस भीड़ में मुझे मेरी ही हमउम्र की लड़की के चेहरे ने आकर्षित किया ,हम दोनों की उम्र उस समय लगभग ८ वर्ष रही होगी !  वो भीड़ में छिपी मुझे देख रही थी , मेरी निगाह जब उस पर पड़ती , तो वो दूसरे लोगों के पीछे छिप जाती थी ! दोपहर तक सभी जा चुके थे और वो लड़की भी ! हम सब ने भी दोपहर के भोजन के बाद कुछ देर आराम करके रात भर के सफ़र की थकान मिटाई !
    शाम को फिर वही लड़की एक महिला के साथ घर आयी ! महिला मामाजी के घर साफ़ -सफाई का काम करती थी और रसोई के काम में मामीजी की  मदद भी करती थी ! उस लड़की का नाम फरगुदिया था  ! वो एक साधारण नयन- नक्श वाली मासूम लड़की थी ! वो बहुत कम बोलती थी लेकिन उसकी आँखें बहुत कुछ कहती थी , और शायद मैं उसकी आँखें पढ़ भी सकती थी ! मेरी गुड़िया और दूसरे खिलौने उसे बहुत अच्छे लगते थे लेकिन वो अपनी ये इक्छा किसी से या मुझसे जाहिर नहीं करती थी !  उससे बातचीत की पहल मैंने ही की ! धीरे धीरे हम दोनों आपस में बहुत घुल-मिल गए और एक साथ खेलने भी लगे ! कभी आम के बगीचे में हम लुकाछिपी का खेल खेलते और कभी घर की छत के किसी कोने में बैठकर अपनी गुड़िया और बर्तन से खेलते ! ऐसे ही १० दिन कैसे बीत गए ... पता ही नहीं चला ! अब वापस हमें कानपुर आना था ! माँ से पूछकर मैंने उसे अपनी क्लिप्स , रुमाल और अपनी एक ड्रेस भी दी ! ये सब पाकर वो बहुत खुश थी लेकिन उसे मेरे जाने का दुःख भी था ! " अगली बार जब आउंगी तो तुम्हारे लिए बहुत अच्छे अच्छे खिलौने लेकर आउंगी " उसे ये दिलासा देकर माँ के साथ मैं वापस कानपुर लौट आयी ! हँसती मुस्कुराती फरगुदिया ने मुझे विदा किया था ... मुझे आज भी याद है ...
       करीब छः वर्षों में सात आठ बार गाँव जाने पर मेरी मुलाकात फरगुदिया से हुई ! गाँव जाने पर हफ्ते ,दस दिन कैसे गुजर जाते ... पता ही नहीं चलता ...
अब हम दोनों बड़ी भी हो चुकी थी हम दोनों में चंचलता अब भी थी लेकिन फरगुदिया वक़्त से पहले ही कुछ ज्यादा ही परिपक्व हो गयी थी ! अक्सर वो अपने आप में खोयी खोयी सी रहती थी ! कुछ पूछने पर बस मुस्कुरा भर देती थी ...कहती कुछ भी नहीं थी !
   उसके जीवन में जो भी कमियाँ थी ...उन्हें पूरा करने के बारे में मैं बहुत कुछ सोचती थी ! जब भी मैं कानपुर में होती थी तो मामाजी का  पत्र आने पर उसमे फरगुदिया का जिक्र ढूंढती थी , लेकिन कभी भी उसका जिक्र नहीं पाती थी !
   लेकिन पहली और आखिरी बार मामाजी के पत्र में उसके दुनिया में न होने के जिक्र ने मुझे झकझोर के रख दिया ! उसकी मृत्यु का कारण जानने की जिज्ञासा मेरे मन में बहुत थी ! माँ और दीदी से जब भी उसकी मृत्यु के कारण के बारे में प्रश्न करती तो उनसे कभी भी मुझे संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता था ! कुछ महीने बाद जब फिर से गाँव जाना हुआ तो सबकी बातों से ये जान सकी की वो ( फरगुदिया ) गर्भवती थी और उसकी अनपढ़ माँ ने उसका गर्भपात  कराने के लिए , दाई के कहने पर उसे पता नहीं कौन सी दवाई दी जिसे खाने के बाद उसकी दर्दनाक मौत हो गयी !
    गाँव के बाहर एक पुराना पीपल का पेड़ है ! गाँव वालों का कहना  है की उस पेड़ पर फरगुदिया की आत्मा है ! रात तो क्या ...दिन में भी लोग इस पेड़ के पास से गुजरने में डरतें हैं !
  वो सहमी , मासूम जो जीते जी अपनी रक्षा न कर सकी ....उसकी मृत्यु के बाद लोग उससे डरतें हैं ! आज भी जब गाँव जाती हूँ तो सबसे छुपकर उस पेड़ से लिपट कर उसकी खिलखिलाहट और उसे महसूस करती हूँ ................

शोभा


Friday, July 8, 2011

तुम बस मेरे लिए हो

स्याह रात में
चमकते तुम सबके लिए हो
तुम्हारी चाँदनी में नहाई "मैं" धरा
जानती हूँ तुम बस मेरे लिए हो .. !!!
शोभा

Wednesday, June 22, 2011

मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ

सफ़र है कठिन
आसान इसे तुम्हें स्वयं ही करना होगा
इन् बाधाओं से तुम्हें अकेले ही लड़ना होगा
न बनो इतने लाचार
ढेरो खुशियाँ फूल बनी बिखरी हैं राहों में
कुछ चुनकर इनमें से ..
महका लो अपना जीवन
कर लो अपने अधूरे सपने को साकार
खता नहीं है कोई ,फूलों से सुगंध चुराना ...
और बादल का इक टुकड़ा अपनाकर उसमें भीग जाना
मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ
इनको हासिल कर ..
अपने जीवन के हर पल को ..
जी भरकर जी लो .......
 शोभा

सब करेंगें शिकवा

न सागर में नमीं रही, न नदियों में
घुमड़ आयें हैं ये बदरा  ..
कुछ नमीं लेकर मेरी अँखियों से
गर,बरस गये तो सैलाब लायेंगें
सब करेंगें शिकवा, मेरी अँखियों से .....शोभा

एक माँ की अपनी बेटी को सीख


बहुत मन्नतों से मिली हो तुम
मेरे आँगन की कली हो तुम

पलक झपकते ही समय बीता
इतनी जल्दी तुम बड़ी हो गयी

कुछ सीख देती हूँ तुम्हे
याद हमेशा तुम इसे रखना

जब भी अकेली बाहर जाना
भीड़ से जरा बचकर रहना

भ्रमित बुद्धि वालों पर
 आवाज़ अगर उठाओगी

शर्मिंदा आप ही हो जाओगी


ठोकर तुम्हे लगे कभी
सर से पहले वस्त्र सम्हालना

विदाई भी इक दिन होगी तुम्हारी
पति की सेवा , बड़ो का सम्मान ...
छोटों को प्यार भरपूर देना
स्वयं भूखी सो जाना ...
पर किसी को भूखे न सोने देना
स्त्री ही तो रसोई है
ये याद जरुर रखना
कभी किसी की आँखों में आँसू न आने देना
अपने आँसुओं को तुम स्वयं ही पोछ लेना

नहीं चाहूँगी ये कभी ..
बेटी की तुम माँ बनो
फिर भी अगर तुम बेटी की माँ बनना
उसको भी यही सीख देना


अगर सीख मेरी  याद रखोगी तुम
सबकी आँखों का तारा बनोगी तुम ..... शोभा



प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान ~ ~ ~ ~






प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान
जीवन नईया है बीच मजधार ,

अनगिनत दुस्सासनों के फिर बढ़ रहे हाथ
द्रौपदी  के वस्त्र को करने तार तार
सखा बनकर आओ प्रभु ..
फिर से बचाओ उनकी लाज ,

कंस रुपी राक्षसों ने, एक बार फिर से चली है चाल
अब तो अवतार लो प्रभु , करो इनका संहार ,

गउओं का भी तुम्हारी देखो, हो रहा अपमान
फिर से चरवाहा बन आओ ...
वापस दिलाओ इनका सम्मान ,

फिर जहरीली हुई है तुम्हारी पवित्र यमुना
फिर तुम आओ ...
देख तुम्हें होगा नतमस्तक कालिया नाग ,

तुम बिन देखो , गोपियाँ हो गयीं उदास
देख तुम्हें,फिर होगी किसी राधा के होठों पर मुस्कान
फिर बज उठेगी किसी मीरा के वीणा की तान ,

फिर एक बार आओ प्रभु ...
करा दो प्रेम रस की कुछ बूंदों का पान ,

प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान ........


Thursday, May 19, 2011

पिया मिलन

हर पल तरसी
दर दर भटकी
पिया की एक झलक को मैं निसदिन तरसी
थकी हारी जो एक पल को ठहरी
हलचल कुछ मेरे भीतर ही हुई
पिया छुपे थे मुझमें ही
कैसे ये मैं भूल गयी
देख सन्मुख उस 'साकार' को
झर झर मेरी अँखियाँ बरसी ...:))) shobha

Friday, May 6, 2011

~ ~चिर निद्रा की चाह ~ ~

  


यूँ तो जब भी कभी थक जाती हूँ
माँ गोद की चाह कर बैठती हूँ
नर्म गुदगुदी गोद पाकर माँ की
कुछ देर विश्राम कर लेती हूँ

जीवन पथ पर चलते -चलते ..
जब बहुत ज्यादा थक जाती हूँ
तब सुर्ख लाल, नर्म ,गुदगुदी , मखमली ...
गोद , उज्जवल, स्वच्छ , बिछौने ..
और चिर निद्रा की चाह कर बैठती हूँ ...!!!
 ~ ~ शोभा ~ ~

Saturday, April 30, 2011

नटखट कान्हा

नटखट कान्हा की छवि मन भायी
देख मनमोहक मुस्कान कान्हा की ..
व्याकुल हुआ है ये मन
आँख मिचौली न खेल अब कान्हा
दर्शन दे तब चैन मिले
मेरी अँखियों को रैन मिले ...!!! शोभा

Monday, April 25, 2011

छोटी सी ख्वाहिश




1-
 बस एक छोटी सी ख्वाहिश है, मेरी हथेली में चाँद हो ...
और जी भरकर मैं उसका दीदार करूँ .... :):):):)

2-
तो क्या हुआ अगर खंडित मूरत हैं तुम्हारी यादें ... ? मन के मंदिर में न सही स्मृतियों की नदी में निरंतर प्रवाहित हो रहीं हैं ....


3-
माँ की और तुम्हारी दुआएँ एक जैसी हैं ... उदासी के आने से पहले माथे पर नर्म, सुर्ख मुस्कराहट रख जातीं हैं ...
4-
सूखे रंग
जो दिखे
दूर ...................
बहुत दूर होते गए !

पलकें बंद हुई
भीगे रंग
जो नहीं दिखे
.................... पास
बहुत पास आते गए ...

5- 
एक बेबस
भूखी
गरीब
अपमानित
सिसकते अक्षरों वाली
स्त्री-जीवन पर लिखी कविता
महफ़िलों की रौनक
तालियों की गूँज से आनंदित
पुरस्कारों से सम्मानित
अपने आलीशान महल में
आराम फरमाती रही !

वास्तविक जीवन में
एक वैसी ही स्त्री
आंसू बहाती
महफ़िलों की रौनक वाली
कविताओं के बीच
अकेली भटकती रही .........

ऐ चाँद !


ऐ चाँद !
तुम क्यूँ इतना करीब आये ?
विशाल समंदर मेरे भीतर ठहरा हुआ था
तुम उसको छलका गए ....!!! शोभा

Sunday, April 24, 2011

मेरा 'सच'




तुम क्यों हो मुझसे दूर ??

'तुम्हारे बिना'.. मैं कुछ भी नहीं
आरोपों की 'गठरी' बन के रह गई हूँ
बस , अब 'देर न हो जाये कही'...
'जो' अभी हूँ , वो मैं नहीं हूँ
मिलने के बाद तुमसे ...
'जो'.. हो जाऊँगी , वही मेरा 'सच' होगा
अपने रंग में रंग लो मुझे

तुम भी... 'अपना सच' बना लो मुझे...~शोभा

Thursday, April 21, 2011

तुम्हारे आने से ...


तुम्हारे आने से ...

भ्रमों के काले बादल हट गए
नयनों से जो नीर बहे..
अंतर्मन पर पड़ी गर्त ...
धुल गयी उस नीर से
देख तेजस्वी छवि तुम्हारी
रोम-रोम मेरा पुलकित हुआ
भाव-विभोर हुआ है मन
कौन हो तुम ?
कहाँ से आए हो ?
कभी सूक्ष्म हो तुम ..
कभी विराट हो तुम ..
जो भी हो ..
बस एक तुम्ही सच हो
तुम्ही सच हो ... !!!! शोभा

Sunday, April 17, 2011

गुड्डे - गुड़ियों का खेल


मुद्दतों बाद वो गुड्डे - गुड़ियों का खेल याद आया
मेले से खरीदा गया वो रसोई के बर्तनों का सेट याद आया
टक-टक करती , उन् खिलौनों में एक गाड़ी भी थी
डोर उस गाड़ी की तुम खीचा करते
और मैं पीछे - पीछे खुश होकर दौड़ती आती
...एक पी-पी पिपिहरा बाजा भी था
किसका बाजा तेज बजे ....
इस होड़ में हम शोर खूब मचाते
पड़ती थी तब हमें माँ की डाट
मार भी न पड़ जाए ..
इस डर से हम घर के बाहर भाग जाते ....:)))) शोभा

ये खूबसूरत चाँद

ये खूबसूरत चाँद
पूरा पूनम का चाँद
खामोश रातों का ये हमसफ़र चाँद
धरा के रोम-रोम को ..
रौशनी से सराबोर करता ये चाँद
दीदार तो हमने कर लिया जी भर के
अब ख्वाहिश ये जागी है ..
के एक बार छू लूँ ये चाँद
इसके काले दाग को ..
अपनी आँखों का काजल बना लूँ
 करीब तो ये पहले भी था
अब इसे अपनी पलकों में छिपा लूँ
और बस,
इसकी शीतल तपिश को महसूस करूँ

Saturday, April 16, 2011

गौरैया




मैं पंछी हूँ

हाँ मैं गौरैया हूँ

शाम को क्या ..

अब सुबह को भी नहीं आउंगी

भूल जाओ आँगन में उतरने की बात 

अब तो तुम्हारे छज्जे पर भी नहीं बैठूंगी

 पहचानती थी तुम्हारे आँगन के हर कोने को

 अब वो आँगन ही नहीं रहा

बदल लिया है तुमने घर का नक्शा

 बनवाया है तुमने एक नया घर


संगमरमर से तराशा

बहुत खूबसूरत है ये घर

पर अब आँगन नहीं है तुम्हारे घर में 

बहुत छोटे हैं कमरे भी

नहीं है कोई झरोखा भी

जगह है जो थोड़ी सी

खूबसूरत सजावट की मूर्तियाँ सजा रखी हैं उसमें तुमने

घोसला तो अब बनता ही नहीं

एक तिनका भी रखती हूँ ..

तो टिकता नहीं

तुम कहते हो आया करो

कैसे आऊँ ?

कहाँ बैठाओगे आ भी गयी तो?

आँगन तो अब रहा नहीं

बंद कर दिए झरोखे भी तुमने

मत देखना अब तुम रास्ता मेरा

नहीं आउंगी मैं अब 

आने के मेरे सारे रास्ते..

बंद कर दिए तुमने ही  

हाँ , यही सच है

नहीं  आउंगी मैं अब ...!!! शोभा

वजूद

खुद को फ़ना कर
हम बस उन्ही में खो गए
होश में तब आए..
जब वो ही दामन झटक कर चल दिए
अपने वजूद का एक कतरा भी..
अब हमें तलाशने से नहीं मिलता !!! शोभा

बहुत विराट हूँ मैं ...नदी हूँ मैं


बहुत विराट हूँ
नदी हूँ मैं
अभी तो थमीं हूँ मैं

बहुत ही शीतल हूँ
बहुत याचना से , घोर तपस्या से आयीं हूँ
तुम मोल न मेरा समझ सके
जब बुझा ली तुमने तृष्णा अपनी ..
पाप भी अपने धोने लगे
जब-जब गगरी भरी पाप की ..
लाकर मुझमें ही डुबोने लगे
धो-धो कर पाप तुम्हारे
मैली हो गयीं हूँ मैं !

नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं
उफ़न पड़ी तो सम्हल न पाओगे
वेग मेरा कैसे सह पाओगे ?
संताप मेरा डुबो देगा तुम्हें
शंकर नहीं हो ..
जो जटाओं में सम्हाल लोगे !

नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं
धो-धोकर तुम्हारेपाप को
खुद से घृणित  हो गयीं हूँ
सिमट रही हूँ अब तो
खो दूंगी वजूद को अपने
तुम सोचो
क्या करोगे ?
तृष्णा तो अपनी भूल जाओ
तर्पण को भी तरस जाओगे !

नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं ....
Shobha

Monday, April 11, 2011

तुम्हारे शब्दों की जादूगरी


ये तुम्हारे शब्दों की जादूगरी थी
जिसमें मैं खो गयी  थी

मैं तो मौन थी ,
इन शब्दों के मायने भी नहीं समझती थी
कुछ नए शब्द सिखा दिए थे तुमने
तुम्हारे खूबसूरत और अनोखे शब्दों की बारिश ...
मेरे अंतर्मन को भिगोने लगी थी

तुम्हें शिकायत थी
कि
मैं कुछ बोलती नहीं
अब तुम खुश थे
तुम्हारे शब्द मैं भी बोल पड़ी थी
तुम्हारे एक -एक शब्द को मैं अपनाने लगी थी

पर शायद जो शब्द
मेरे लिए खूबसूरत और अनोखे थे ..
वो तुम्हारे लिए सिर्फ एक खेल थे

तुम्हारे ही शब्दों को मैं बार-बार ...
तुमसे कहना चाहती हूँ
अब तुम क्यूँ नहीं सुनना चाहते ?

करवट बदलते तुम्हारे शब्द ...
बहाने बनाते तुम्हारे शब्द ..
मुझसे ही नजरें चुराते तुम्हारे शब्द

अब तो तुम मौन हो
तुम्हारा मौन मुझे विचलित करने लगा है
मेरे अंतर्मन को झकझोरने लगा है तुम्हारा मौन....

शोभा

Thursday, March 31, 2011

कोरा कागज




कोरा कागज था ये दिल मेरा..
लिख कर तुमने दो प्यार भरी बातें..
क्यों मिटा दी तुमने वो सारी बातें ,
स्याही को भी तुमने सूखने न दिया ..
धब्बा बन बैठी हैं वो सारी बातें ,
अब तो ये मिटाए न मिटती हैं ..
गर लिखता भी है कोई कुछ .
तो मुझे ही न दिखती है ..!!
    **** शोभा ****

धरती के सीने जैसा दिल है हमारा

धरती के सीने जैसा दिल है हमारा
अघात तुम्हारे सह कर भी ..
हम अनमोल खजाना तुम्हें देतें हैं
हमने ही संवारा तुमको सदा
हर पल तुम्हें सहारा देतें हैं
मेरे लिए न सही,अपने लिए ही
सहेज लो मुझे,सम्हाल लो मुझे ..!!! शोभा

किसके लिए ????




जब से होश सम्हाला है
तुम्हारे लिए ही जीती आई हूँ
सोती हूँ , तुम्हें ही सोच कर
जगती हूँ . तुम्हें ही देखकर
हर पल बस तुम्हारा ही ख़याल रहा
तुम्हारे कहने से पहले ही ..
तुम्हारे दिल की बात समझ लेती हूँ
हर पल मैं छाया बनकर रही तुम्हारी
कभी ये सोचा ही नहीं ..
की तुमसे अलग भी हूँ मैं
तुम्हारे हर ख्वाबों को पूरा होने का ..
मैं ख्वाब देखती हूँ !

लेकिन आज मुझे अचानक ये क्या ख़याल आया
शायद तितलियों को देखकर ..
फूलों की ख्वाहिश मुझे भी हुई
शायद पंछियों को देखर उड़ने का दिल मेरा भी हुआ
उन्ही की तरह चहकने का दिल मेरा भी हुआ
शायद यही एक मुझसे गुनाह हुआ
तभी तो तुमने मुझसे ये प्रश्न किया
किसके लिए ????


शोभा

प्रीत की अगन



पनघट गयी थी मैं तो पनियां भरन
बरबस ही तू मोहे टकरायो रे !

बहियाँ मरोड़ी , राह भी रोकी
आँचल मोरा सरकायो रे

आँख तरेरी मैंने , बाहँ भी झटकी
नटखट फिर भी तू बाज न आयो रे !

स्याम वर्ण तोरा , कजरारी अँखियाँ

घुँघर बाल ,तोरी ठिठोली बतियाँ
बहुत ही मोरे मन भायो रे !
झिझकी रही मैं , तोसे कैसे कहूँ ?
ये कैसो रोग तूने लगायो रे !
देख ये अपना सिंदूरी रंग
खुद पर ही मैं इतरायो रे !
शाम ढले मोहे पनघट पर
काहें तू रोज़ मोहें बुलायो रे !
सुध -बुध बिसरायी
मोहें लाज न आयी
बरबस ही मैं खिंची चली आयो रे !
लुका-छिपी न अब खेल तू
अब तो तू मोहें दरश दिखायो रे !
लोक -लाज सब बिसरायी
सारे बंधन मैं तोड़ के आयी !

प्रीत की अगन ,जो तूने लगायी

अब कौन उसे बुझायो रे ?
सब डगरिया मैं भूल गयी
बस , तोरी ही डगरिया मोहे भायो रे !
अब तो तू गरवा लगा ले मोहे
अब और न मोहे तू तरसायो रे !
एक बार जो मिलन हो तोसे

भव-सागर तर जायो रे !!! शोभा



गुलाब



 मेरी डायरी में एक गुलाब है
ये एक खूबसूरत सौगात है
भेंट किया था किसी ने कभी
तब ये कितना खिला हुआ था
रंग भी इसका सुर्ख लाल था
अब ये सूख चुका है
खुशबु फिर भी इसकी ..
मेरे जेहन में अब भी ताज़ा है
जान से भी ज्यादा अज़ीज़ है ये मुझे
जब कभी भी डायरी खोलती हूँ ..
खूबसूरत ख्यालों में खो जाती हूँ
इस डर से की ,बिखर न जाये इसकी पंखुड़ियां कहीं ...
डायरी के पन्ने आहिस्ता से पलटती हूँ ...:):) <3 <3  शोभा

वात्सल्य की प्रथम अनुभूति



 नींद में भी तुम्हारे करिश्में देखने को
सारी -सारी रात मैं जगती रहती
कभी नींद में तुम हलके से मुस्कुराते
तो मैं भी मुस्कुरा पड़ती
कभी अचानक ही तुम सिसकियाँ भरने लगते
तो मैं सहम जाती
याद है मुझे आज भी वो तुम्हारा पहला संकेत
जब तुमने अपने होने का अहसास मुझमे जगाया
रोम-रोम मेरा पुलकित हुआ
एक अलग अहसास तुमने मुझे दिया
अंकवार में जब-जब तुम्हें भरती हूँ

बस ... क्या कहूँ ?
 किस दुनिया में मैं होती हूँ !!!!

शोभा 

Thursday, February 24, 2011

दुआ

 ''सूखे हुए दरख्त से जो नाउममीद नहीं हो तुम, ये दुआ भी करो कि छांव दूर तक साथ चले''

करिश्मे

13 hours ago · Edit · Discard

आज की सुबह कुछ नई सी है..
हवाओं में खुशबु सी तेरी आने लगी है..
तेरी आँखों से देखी ये इक नयी दुनिया ..
इन् आँखों में ख़ुशी की नमी सी है..
हर ख्वाहिश तेरी पूरी खुदा करे..
...तेरी किस्मत में करिश्मे ये खूबसूरत होते रहें ..
खुदा से अब दुआ मांगी यही है ...!!!

पाक मोहब्बत

पाक मोहब्बत

खुदा के तोहफे को समझ न सके वो ..
मेरी पाक मोहब्बत का मखौल उड़ाते रहे ..
रजा गर जख्म देने में है उनकी ..
खुदा का नायाब तोहफा समझ कर ..
उनके दिए हर जख्म को दिल से लगाकर रक्खेंगें ...!!! शोभा

जय हिंद , जय जवान , वंदेमातरम

जय हिंद , जय जवान , वंदेमातरम

by Shobha Mishra on Tuesday, January 25, 2011 at 2:05pm




















हिमालयकी तरह तुम रहना शान से ...
इसी तरह सर ऊँचा रखना गुमान से !

मुश्किलों को रखना तुम अपनी ठोकरों पर ..
बढ़ते जाना यूहीं आगे सीना तान के !

डरना नहीं तुम दुश्मन की गोलियों की बौछार से ..
हिंद की आन को बचाने के लिए ,
खुद को न्योछावार कर देना शान से !

इन्कलाब के उदघोश को बुलंद इतना करना ..
थर्रा जाये दुश्मन उसकी गूँज से !

फिर आ सकते हैं वो दरिन्दे खेलने खून की होली ..
तुम सजग रहना उनकी चाल से !

गर्व है हमें तुम वीरों पर ..
 मातृभूमि के पूतों पर ..
हो सके तो एक बार घर भी आना ..
रास्ता देख रहा है कोई तुम्हारा बड़े अरमान से ...!!!

      **** शोभा ****

प्रेम की पाती

प्रेम की पाती










प्रेम की पाती लिख लिख ..
सहेज रखी हूँ ढेर ..
प्रियतम का पता न ढूढ़ सकी ..
केहि विधि भेजूं सन्देश ...!!! शोभा

तेरे लब पे खेलता वो तबस्सुम ..

तेरे लब पे खेलता वो तबस्सुम ..
मेरे कत्ल की वजह ही बन गया ..
मेरा वजूद फ़ना, उस मासूम अदा पे...
और मुस्कराहट तेरी कायम है लगातार ... !!! शोभा

2-
गुज़रा वक़्त लौट आया था
भ्रम था कि थमा हुआ है 
बेवफा नहीं था
वो वक़्त था
एक बार फिर गुज़र गया .. ........

3- 
कच्ची नींव थी ..इमारत ढहनी ही थी ..और कुछ नहीं ..बेसब्रों की ख़त्म कहानी यूँ ही हुआ करती है

मुबारक

मुबारक

जमाना मुबारक हो तुम्हें बेशक नया ..
पर भूल ना जाना तुम जो गुजर गया..
वो गलियां पुरानी..
वो खंडहर मकां..
वो जर्जर दरोदीवार..
उसमे शामिल तुम्हारा अहसास बाकी...
जैसे जर्द पत्तों में है कुछ जान बाकी..
हो सके तो वक्त फुरसत कभी...
रूख करना जरा..
जिधर है तुम्हारे नक्शे पा बाकी..!!!

shobha

क्यों छलिया बन कर छलते हो ..





क्यों छलिया बन कर छलते हो ..


क्यों दर - दर मुझे भटकाते हो ..


बस एक बार अपनी शरण में ले लो ..


मुझे सारे गिले- शिकवे दूर कर लेने दो ..


मेरे अंतर्मन की आवाज़ तुम सुन लो ..


मानती हूँ ,मीरा सी दीवानी नहीं मैं ..


राधा सी प्यारी भी नहीं मैं ..


हृदय में न सही ,


अपने चरणों की दासी ही समझ लो ..


अब और नहीं भटकाओ मुझे ..


अब और नहीं तरसाओ मुझे ..


मैं तुम्हारी हूँ , बस तुम्हारी हूँ ..


अपने में ही रच - बस जाने दो मुझे .. !!!


            शोभा


चाह अब भी .. उस आँचल की छाँव की ...

याद है मुझे अब भी
जब मैं छोटी थी
अक्सर डर जाया करती थी
भाग कर आती थी तुम्हारे पास
तुम मुझे छुपा लेती थी आगोश में
तब मैं अपने आप को,
बहुत सुरक्षित महसूस करती थी !

एक बार फिर मैं अकेली हूँ
बहुत डरी हुई भी हूँ
जरुरत है फिर मुझे तुम्हारे आगोश की
छिपा लो मुझे फिर एक बार..
उसी आगोश में !

नन्हें पाँव से जब चलना सीखा मैंने
लडखडाती थी मैं कई बार
हर बार तुम मुझे सहारा देती थी !

माना अब मेरे पाँव बहुत मजबूत हैं
ठोकरे मेरी पग-पग पर और ज्यादा हैं
एक बार फिर मुझे..
तुम्हारे सहारे की जरुरत है !

जब बचपन में सखी ने मेरे खिलौने तोड़े थे
मैं बहुत रोई थी
तुमने जब मुझे आलिंगन किया
भूल गयी थी मैं सारे गम !

अब तो हर पल दिल टूटता है मेरा
फिर से एक बार मुझे आलिंगन करो
फिर से मेरे माथे पर,
अपने होठों से स्पर्श करो !

बचपन में
तुम्हारी प्यारी भरी थपकी
और लोरी सुने बगैर ,
मैं सोती नहीं थी !

अब नींद मेरी आँखों से उड़ चुकी है
रातें मैं जाग कर बिताती हूँ
एक बार फिर मुझे तुम लोरी सुना दो
थपकी देकर मुझे सुला दो !

मैं बड़ी ही कब हुई थी
अब तो अपने आप को,
और भी छोटी महसूस करती हूँ !

मुझे फिर से एक बार दे दो
वही आँचल की छाँव
मुझे फिर से दे दो वही .
प्यार भरा स्पर्श,

अब मुझे तुम्हारी,
और भी ज्यादा जरुरत है
बहुत ज्यादा ...................

शोभा

(कविता नहीं बस 'माँ' के लिए मन के भाव हैं .. याद नहीं कब लिखा था )

Saturday, January 8, 2011

**** शुभ प्रभात ****

by Shobha Mishra on Saturday, January 8, 2011 at 8:14am










रु-ब-रु जो तुझ से हुई !
खुद से मेरा सामना हुआ !!
रंगी हूँ अब तो तेरे रंग में !
गुमान खुद पर मुझे खूब हुआ !!

     **** शोभा ****




Thursday, January 6, 2011

Photos from संकट की इस घडी में अनीता को आप सब की दुआओं की बहुत जरुरत है ...

Photo 1 of 1   Back to Note · See All Photos


I feel good...... -A creation by my younger daughter Pragati when she was 10....

by Shobha Mishra on Friday, December 24, 2010 at 9:48pm











 I am born after so many struggles,
                                                      I feel good......
I am in the lap of my mother,
                                                 I feel good.......
I have started speaking,
                                        I feel good........
From toddling I am walking,
                                      I feel good............
I am able to go to school,
                                         I feel good................
I am now intelligent, smart and good looking,
                                                    I feel good.............
I am a college student now,
                                             I feel good.............
My ambition is fulfilled, I am adult now,
                                                    I feel good..............
I am married and have a family,
                                                 I feel good...............
My children are again living the same life like me,
                                                        I feel good...............
But....After their ambition is fulfilled they left me,I am not broken,I am strong,
                                                                I feel good..................
My life has come to an end, nobody feels good, even i would also miss these 12 steps in which I led my life...
           I n just 12 steps I led my life.......
           Thanks god for giving me such a wonderful life of sorrows and happiness because...
                           <span>SORROWS + HAPPINESS = LIFE.......</span>
<span> </span>                                                                                           I STILL FEEL GOOD...........












मैं एक स्त्री हूँ - स्त्री जीवन के विभिन्न चरण

by Shobha Mishra on Wednesday, January 5, 2011 at 9:52pm














....जन्म....

लो जी मेरा जन्म हुआ..
माहौल कहीं कुछ ग़मगीन हुआ..
किसी ने कहा लक्ष्मी जी आई हैं ...
खुशियों की सौगात साथ लायी हैं !
घर में थी इक बूढी माता ...
तिरछी निगाह करके उन्होंने माँ को डांटा !
माँ की कोख को कोसने लगी ...
मुझे मेरे पिता के सिर का बोझ कहने लगी !

.....बचपन.....

अब कुछ बड़ी हो गयी हूँ ...
कुछ-कुछ बातें अब समझने लगी हूँ..
माँ मुझे धूप में खेलने नहीं देती...
काली हो जाओगी , फिर शादी नहीं होगी ये कहती...
भइया तो दिन भर अकेला घूमता..
मुझे मेरी माँ ने कभी न अकेला छोड़ा...
रहते थे एक सज्जन पड़ोस में...
इक दिन माँ ने मुझे देखा उनकी गोद में...
घर लाकर मुझे इक थप्पड़ लगाया..
बाद में मुझे फिर गले से लगाया...
मेरी नाम आँखों ने माँ से प्रश्न किया..
मेरी आँखों को मेरी माँ ने समझ लिया..
गंदे हैं वो बेटा , मुझसे माँ ने ये कहा..
नहीं समझी मैं उनकी बात..
पर माँ पर था मुझे पूरा विश्वास !

.. युवा वस्था ....

अब मैं यौवन की देहलीज पे हूँ..
अच्छा-बुरा बहुत कुछ जान गयी हूँ..
कुछ अरमान हैं दिल में, मन ही मन कुछ नया करने की सोच रही हूँ...
माँ ने सिखाई कढाई-बुनाई ...
और सिखाया पकवान बनाना ...
तुम तो हो पराया धन तुम्हे है दूजे घर जाना...
करती गयी मैं सब उनके मन की..
दबाती गयी इच्छाएं अपने मन की !

...... विदाई ....

चलो ये भी घडी अब आई ...
होने लगी अब मेरी विदाई ...
बचपन से सुनती आई थी...
जिस 'अपने' घर के बारे में....
चली हूँ आज उस 'अपने' घर में..
सासू जी को मैंने माँ माना ...
ससुर जी को मैंने पिता माना ...
देवर लगा मुझे प्यारा भाई जैसा ..
ननद को मैंने बहन माना ...
पति को मैंने परमेश्वर माना ...
तन-मन-धन सब उन पर वारा !

......मातृत्व .....

सबसे सुखद घड़ी अब आई ....
आँचल में मेरे एक गुड़िया आई ....
फूली नहीं समाई मैं उसे देखकर...
ममता क्या होती है, जान गयी उसे पाकर...
सोये हुए अरमान एक बार फिर जागे .......
संकल्प लिया मन में, जाने दूँगी उसे बहुत आगे ...
सच हुआ मेरा सपना अब तो...
कड़ी है अपने पैरों पर अब वो ....

.... प्रौढ़ावस्था ...

उम्र कुछ ढलने लगी अब तो ...
कुछ अकेलापन भी लगने लगा अब तो ...
आँखें भी कुछ धुंधला गयी हैं ..
झुर्रियां भी कुछ चेहरे पे आ गयी हैं...
जो कभी पास थे मेरे, वो अब दूर होने लगे हैं ...
तनहाइयों में मुझे अकेला वो सब छोड़ने लगे हैं...
हद तो तब हो गयी जब मैंने ये सुना...
जिन के लिए न्योछावर तन-मन किया....
उन्होंने ही मुझसे ये प्रश्न किया ..
की तुमने मेरे लिए क्या है किया...
थक गयी हूँ, हार गयी हूँ मैं अब...
बहुत ही निराश हो गयी हूँ मैं अब...
मुड जो देखती हूँ पीछे ..
मजबूर हो जाती हूँ ये सोचने पर ..
कौन थी मैं?कौन हूँ मैं?क्या है मेरा वजूद?
यही सोच-सोच कर अब इस दुनिया से चली बहुत दूर !

**** शोभा