आरी,बरछी,कुल्हाड़ी और कटती शाखों की चीखों से आज सुबह नींद खुली ...बिस्तर पर लेटे-लेटे खिड़की की तरफ निगाह गई .. सूखा पॉपुलर अपनी जगह पर था लेकिन आज कुछ सहमा हुआ था .. रोज सुबह बैठी चहकने वाली गौरैया, बुलबुल का जोड़ा भी नहीं था !
मैं भागकर बालकनी में गई ... कुछ लोग हरे-भरे पेड़ काटने में लगे हुए थे ... नीचे जाकर उन्हें रोका तो सारी पड़ोसन घर से बाहर आ गई .. पूछने पर कि क्यों पेड़ कटवा रही हैं आप लोग ? उनका कहना था कि सर्दी में खिड़कियों से धूप नहीं आती और पेड़ों के पत्तों से बहुत कूड़ा होता है ! मेहंदी और शहतूत का पेड़ पूरा क्यों कटवा दिया और केले में तो फल लगा था ? पूछने पर जवाब मिला कि मेहँदी के पेड़ पर भूत रहता है और गर्मियों में झुग्गी के बच्चे शहतूत तोड़ने बाउंड्री की दीवार फांदकर अन्दर आ जातें हैं !
मेरे लिए अजीब विचलित करने वाला दृश्य था ... सूखे पॉपुलर को काटने से मना किया तो सभी औरतें कहने लगीं ये सूखा पेड़ है .. सुबह-सुबह नज़र पड़ ही जाती है ... सूखा पेड़ देखना शुभ नहीं होता है .. मैंने कहा - "मैं तो रोज सुबह सबसे पहले इस सूखे पेड़ को ही देखती हूँ और इस पर इतनी प्यारी-प्यारी चिड़िया बैठती हैं . मेरे साथ तो कुछ भी अशुभ नहीं हुआ ?"
लेकिन मेज़ोरिटी जीतती है .. खूब पेड़ काटे गए .. मेरा सूखा पॉपुलर भी काटा गया .. काटने के बाद उसके टुकड़े -टुकड़े किये गए .. छोटी डंडियों के गट्ठर बाँधकर कुछ लोग ले गए ! सूखी लकड़ियों से चूल्हा जलते तो खूब देखा है लेकिन इस सूखे पेड़ से ना जाने क्यों बहुत लगाव हो गया था .. ये मेरी प्यारी चिड़ियों का बसेरा था ... इसी पर मैंने कितनी ही बार नीलकंठ देखा था .. !
खैर ....
आज कार्तिक पूर्णिमा के दिन ये अशुभ कृत्य करवाने के लिए दूसरे समुदायों के लोगों को बुलाया गया था ... पेड़ों के पूजनेे वाले लोगों के फरमान पर पेड़ काट दिए गए ... लेकिन मेरी नज़र में 'वो' पेड़ काटने वालों से ज्यादा दोषी हैं ..!
रात में खिड़की के बाहर कार्तिक पूर्णिमा के चाँद की छटा बिखरी हुई दिख रही है .. लेकिन इसी खिड़की से मेरा जो सूखा पॉपुलर रात में मुझे सोता नज़र आता था उस जगह का आसमान पूनम की चाँदनी में भीगा उदास है ....................
'वक़्त' को तो गुज़र ही जाना होता है .. लेकिन 'रिश्ते' !!!
... और उससे जुड़ी यादें दिल से कब जाती हैं भला ? महत्वाकांक्षाएं इतनी कि हम लगातार भागते रहें उपलब्धियों के पीछे .. ? इस बात से बेखबर कि भागते हुए हम कितने ही रिश्ते अपने पैरों तले कुचलते जा रहे हैं ..
ऐसी दौड़ में शामिल होने के न्योते एक नहीं हज़ारों हैं... साफ़ ,सपाट,चिकनी राह पकड़कर अगर दौड़ने का तनिक भी हुनर है तो कोई भी उपलब्धियां हासिल कर ले .. लेकिन रिश्ते ?
इस भागदौड़ में रिश्ते तो कही पीछे छूट जातें हैं ... रिश्ते तो व्यवहार में ठहराव चाहतें हैं .. धैर्य चाहतें हैं ...
वो कहाँ हैं .... कभी सोचा है आपने ....? या फिर आप रिश्तों का महत्व ही नहीं समझते ...
... और उससे जुड़ी यादें दिल से कब जाती हैं भला ? महत्वाकांक्षाएं इतनी कि हम लगातार भागते रहें उपलब्धियों के पीछे .. ? इस बात से बेखबर कि भागते हुए हम कितने ही रिश्ते अपने पैरों तले कुचलते जा रहे हैं ..
ऐसी दौड़ में शामिल होने के न्योते एक नहीं हज़ारों हैं... साफ़ ,सपाट,चिकनी राह पकड़कर अगर दौड़ने का तनिक भी हुनर है तो कोई भी उपलब्धियां हासिल कर ले .. लेकिन रिश्ते ?
इस भागदौड़ में रिश्ते तो कही पीछे छूट जातें हैं ... रिश्ते तो व्यवहार में ठहराव चाहतें हैं .. धैर्य चाहतें हैं ...
वो कहाँ हैं .... कभी सोचा है आपने ....? या फिर आप रिश्तों का महत्व ही नहीं समझते ...