बहुत विराट हूँ
नदी हूँ मैं
अभी तो थमीं हूँ मैं
बहुत ही शीतल हूँ
बहुत याचना से , घोर तपस्या से आयीं हूँ
तुम मोल न मेरा समझ सके
जब बुझा ली तुमने तृष्णा अपनी ..
पाप भी अपने धोने लगे
जब-जब गगरी भरी पाप की ..
लाकर मुझमें ही डुबोने लगे
धो-धो कर पाप तुम्हारे
मैली हो गयीं हूँ मैं !
नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं
उफ़न पड़ी तो सम्हल न पाओगे
वेग मेरा कैसे सह पाओगे ?
संताप मेरा डुबो देगा तुम्हें
शंकर नहीं हो ..
जो जटाओं में सम्हाल लोगे !
नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं
धो-धोकर तुम्हारेपाप को
खुद से घृणित हो गयीं हूँ
सिमट रही हूँ अब तो
खो दूंगी वजूद को अपने
तुम सोचो
क्या करोगे ?
तृष्णा तो अपनी भूल जाओ
तर्पण को भी तरस जाओगे !
नदी हूँ मैं
अभी तो थमी हूँ मैं ....
Shobha
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