चिड़ियों जैसी चहकती थी तू ..
हिरनी जैसी चंचल थी तू ...
जब भी दस्तक दी मैंने तेरे दर पे ...
द्वार खोला तूने मुस्कान भर-भर के ...
उफ़ ये कैसी संकट की घड़ी आई ..
उदासी तेरे चेहरे पर लायी ...
मानती हूँ दुःख की घड़ी है ये बहुत ..
उम्मीदों का दामन फिर भी थामे रखना सख्त ...
मैंने न जाना बाबुल का प्यार कभी ..
दुआ है इश्वर से फिर भी यही ..
दूर न हो तुझसे तेरे बाबुल कभी ..
...शोभा ...
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