ये तुम्हारे शब्दों की जादूगरी थी
जिसमें मैं खो गयी थी
मैं तो मौन थी ,
इन शब्दों के मायने भी नहीं समझती थी
कुछ नए शब्द सिखा दिए थे तुमने
तुम्हारे खूबसूरत और अनोखे शब्दों की बारिश ...
मेरे अंतर्मन को भिगोने लगी थी
तुम्हें शिकायत थी
कि
मैं कुछ बोलती नहीं
अब तुम खुश थे
तुम्हारे शब्द मैं भी बोल पड़ी थी
तुम्हारे एक -एक शब्द को मैं अपनाने लगी थी
पर शायद जो शब्द
मेरे लिए खूबसूरत और अनोखे थे ..
वो तुम्हारे लिए सिर्फ एक खेल थे
तुम्हारे ही शब्दों को मैं बार-बार ...
तुमसे कहना चाहती हूँ
अब तुम क्यूँ नहीं सुनना चाहते ?
करवट बदलते तुम्हारे शब्द ...
बहाने बनाते तुम्हारे शब्द ..
मुझसे ही नजरें चुराते तुम्हारे शब्द
अब तो तुम मौन हो
तुम्हारा मौन मुझे विचलित करने लगा है
मेरे अंतर्मन को झकझोरने लगा है तुम्हारा मौन....
शोभा