पोस्टरों, नारों, कविता, कहानियों,
अखबारों ,फेसबुक अपडेट्स
की राजनीती शुरू होती है
किसी की चीखों के मौन के साथ
कुछ चेहरे, कुछ टोलियाँ
अपनी पहचान बनाने में जुट जातीं हैं
कौन था.. किसने किया ये अपराध ..?
आवाजें उठनी शुरू होतीं हैं
हर दूसरी गली में
होतें हैं सरेआम अपराध
तब सब मौन रहतें हैं
कौन आगे आये
सभी चुप हैं तो हम भी चुप रहें
या दूसरों पर दोष मढें
कोई कुछ करता ही नहीं
तुम अपराध देखकर चुप हो
तो सबसे बड़े दोषी हो
व्यवस्था कृष्ण नहीं हैं
ना ही कानून द्रौपदी के वस्त्र
कब जागोगे..?
कब रोकोगे..?
हर उस अपराध को
जो हो रहा है हर रोज
तुम्हारी नज़रों के सामने
बन रही है हर रोज
दामिनी... निर्भया ... फर्गुदिया ......