Thursday, February 24, 2011

क्यों छलिया बन कर छलते हो ..





क्यों छलिया बन कर छलते हो ..


क्यों दर - दर मुझे भटकाते हो ..


बस एक बार अपनी शरण में ले लो ..


मुझे सारे गिले- शिकवे दूर कर लेने दो ..


मेरे अंतर्मन की आवाज़ तुम सुन लो ..


मानती हूँ ,मीरा सी दीवानी नहीं मैं ..


राधा सी प्यारी भी नहीं मैं ..


हृदय में न सही ,


अपने चरणों की दासी ही समझ लो ..


अब और नहीं भटकाओ मुझे ..


अब और नहीं तरसाओ मुझे ..


मैं तुम्हारी हूँ , बस तुम्हारी हूँ ..


अपने में ही रच - बस जाने दो मुझे .. !!!


            शोभा


No comments:

Post a Comment