Wednesday, June 22, 2011

प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान ~ ~ ~ ~






प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान
जीवन नईया है बीच मजधार ,

अनगिनत दुस्सासनों के फिर बढ़ रहे हाथ
द्रौपदी  के वस्त्र को करने तार तार
सखा बनकर आओ प्रभु ..
फिर से बचाओ उनकी लाज ,

कंस रुपी राक्षसों ने, एक बार फिर से चली है चाल
अब तो अवतार लो प्रभु , करो इनका संहार ,

गउओं का भी तुम्हारी देखो, हो रहा अपमान
फिर से चरवाहा बन आओ ...
वापस दिलाओ इनका सम्मान ,

फिर जहरीली हुई है तुम्हारी पवित्र यमुना
फिर तुम आओ ...
देख तुम्हें होगा नतमस्तक कालिया नाग ,

तुम बिन देखो , गोपियाँ हो गयीं उदास
देख तुम्हें,फिर होगी किसी राधा के होठों पर मुस्कान
फिर बज उठेगी किसी मीरा के वीणा की तान ,

फिर एक बार आओ प्रभु ...
करा दो प्रेम रस की कुछ बूंदों का पान ,

प्रभु फिर से छेड़ो मुरली की तान ........


1 comment:

  1. काफी दिनों बाद आपके ब्लाग पर आया हूं। सभी रचनाएं एक से बढकर एक हैं। लेकिन अब माहौल ठीक नहीं है

    कलियुग में अब ना आने रे मेरे प्यार कृष्ण कन्हैया.....

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