तथाकथित कवयित्री
असफल प्रयास करती है
गरीबी पर कविता लिखने का
ए सी रूम से निकलकर
ए सी गाड़ी में बैठकर
कविता-पाठ करने वाली
कवयित्री लिख नहीं पाती है
जेठ की धूप में रिक्शा चलाते
रिक्शेवाले का दर्द
बर्गर , पिज्ज़ा की शौक़ीन कवयित्री
नहीं लिख पाती
खाली बटुली से गरीब के पेट में
भूख से खदबदाता
पेंदी में बचा पाव भर अदहन
मखमली बिस्तर पर
गहरी नींद बेसुध सोने वाली कवयित्री
नहीं लिख पाती
फुटपाथ पर करवट बदलते
नौनिहालों की जागती रातें
एक भूख से बिलखता अपाहिज
याचना करता रहा चार पैसों के लिए
उसे फटकारती
अपनी कार के शीशे चढ़ाती
घर जाकर लिख देती है
एक सफल कविता
"रेड लाइट पर बिलखती भूख "
(शोभा)
भूख से बिलखते अपाहिज को देख कर कार के शीशे चढ़ा लेने वाला व्यक्ति एक कविता तो नहीं रच सकता. और रच भी ले तो वो कविता राग और कोमल अहसासों से रिक्त होगी, 'सफल' नहीं हो सकती .
ReplyDeleteकविता वो अहसास, दर्द और मीठे भाव होते हैं जो किन्ही कारणों से व्यक्त नहीं हो पाते.
बहुत गंभीर कविता, पर अफसोस इन्हीं कावियत्री जी रचना नाम कमाती है..
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और चोट करती रचना
ReplyDeleteए सी रूम से निकल
ए सी गाड़ी में बैठ
कविता-पाठ करने वाली
कवयित्री लिख नहीं पाती
जेठ की धूप में ईंट ढोती
मजदूरन का दर्द
सच है...
कुछ अलग..गहरे एहसास लिए हुई कविता|बहुत खूब...|
ReplyDeleteसुंदर और मार्मिक रचना.
ReplyDeleteसार्थक , सशक्त नए रूप रंग से भरी रचना ले जाती है यथार्थ के समक्ष !!!
ReplyDeleteमखमली बिस्तर पर
ReplyDeleteबेसुध गहरी नींद सोती कवयित्री
नहीं लिख पाती
फुटपाथ पर करवट बदलते
नौनिहालों की जागती रातें
....sach hai !!!
भावनाओ को धुए मे उड़ाती ऐसी कवियत्रियों पर करारा व्यंग लिखा है आपने
ReplyDeleteकरार चोट ....यही यथार्थ है ..बहुत खूब
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