मैं एक स्त्री हूँ - स्त्री जीवन के विभिन्न चरण
by Shobha Mishra on Wednesday, January 5, 2011 at 9:52pm
....जन्म....
लो जी मेरा जन्म हुआ..
माहौल कहीं कुछ ग़मगीन हुआ..
किसी ने कहा लक्ष्मी जी आई हैं ...
खुशियों की सौगात साथ लायी हैं !
घर में थी इक बूढी माता ...
तिरछी निगाह करके उन्होंने माँ को डांटा !
माँ की कोख को कोसने लगी ...
मुझे मेरे पिता के सिर का बोझ कहने लगी !
.....बचपन.....
अब कुछ बड़ी हो गयी हूँ ...
कुछ-कुछ बातें अब समझने लगी हूँ..
माँ मुझे धूप में खेलने नहीं देती...
काली हो जाओगी , फिर शादी नहीं होगी ये कहती...
भइया तो दिन भर अकेला घूमता..
मुझे मेरी माँ ने कभी न अकेला छोड़ा...
रहते थे एक सज्जन पड़ोस में...
इक दिन माँ ने मुझे देखा उनकी गोद में...
घर लाकर मुझे इक थप्पड़ लगाया..
बाद में मुझे फिर गले से लगाया...
मेरी नाम आँखों ने माँ से प्रश्न किया..
मेरी आँखों को मेरी माँ ने समझ लिया..
गंदे हैं वो बेटा , मुझसे माँ ने ये कहा..
नहीं समझी मैं उनकी बात..
पर माँ पर था मुझे पूरा विश्वास !
.. युवा वस्था ....
अब मैं यौवन की देहलीज पे हूँ..
अच्छा-बुरा बहुत कुछ जान गयी हूँ..
कुछ अरमान हैं दिल में, मन ही मन कुछ नया करने की सोच रही हूँ...
माँ ने सिखाई कढाई-बुनाई ...
और सिखाया पकवान बनाना ...
तुम तो हो पराया धन तुम्हे है दूजे घर जाना...
करती गयी मैं सब उनके मन की..
दबाती गयी इच्छाएं अपने मन की !
...... विदाई ....
चलो ये भी घडी अब आई ...
होने लगी अब मेरी विदाई ...
बचपन से सुनती आई थी...
जिस 'अपने' घर के बारे में....
चली हूँ आज उस 'अपने' घर में..
सासू जी को मैंने माँ माना ...
ससुर जी को मैंने पिता माना ...
देवर लगा मुझे प्यारा भाई जैसा ..
ननद को मैंने बहन माना ...
पति को मैंने परमेश्वर माना ...
तन-मन-धन सब उन पर वारा !
......मातृत्व .....
सबसे सुखद घड़ी अब आई ....
आँचल में मेरे एक गुड़िया आई ....
फूली नहीं समाई मैं उसे देखकर...
ममता क्या होती है, जान गयी उसे पाकर...
सोये हुए अरमान एक बार फिर जागे .......
संकल्प लिया मन में, जाने दूँगी उसे बहुत आगे ...
सच हुआ मेरा सपना अब तो...
कड़ी है अपने पैरों पर अब वो ....
.... प्रौढ़ावस्था ...
उम्र कुछ ढलने लगी अब तो ...
कुछ अकेलापन भी लगने लगा अब तो ...
आँखें भी कुछ धुंधला गयी हैं ..
झुर्रियां भी कुछ चेहरे पे आ गयी हैं...
जो कभी पास थे मेरे, वो अब दूर होने लगे हैं ...
तनहाइयों में मुझे अकेला वो सब छोड़ने लगे हैं...
हद तो तब हो गयी जब मैंने ये सुना...
जिन के लिए न्योछावर तन-मन किया....
उन्होंने ही मुझसे ये प्रश्न किया ..
की तुमने मेरे लिए क्या है किया...
थक गयी हूँ, हार गयी हूँ मैं अब...
बहुत ही निराश हो गयी हूँ मैं अब...
मुड जो देखती हूँ पीछे ..
मजबूर हो जाती हूँ ये सोचने पर ..
कौन थी मैं?कौन हूँ मैं?क्या है मेरा वजूद?
यही सोच-सोच कर अब इस दुनिया से चली बहुत दूर !
**** शोभा
नारी जीवन की विडम्बना को सुन्दरता से प्रस्तुत किया है.
ReplyDeleteबधाई.
Ati sunder...nari ka har pehloo bahot he garv se.aur sahajta se pesh kiya didu.....naye prayash k liye dher sari shubhkamna.love u:)))
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