Sunday, April 17, 2011

गुड्डे - गुड़ियों का खेल


मुद्दतों बाद वो गुड्डे - गुड़ियों का खेल याद आया
मेले से खरीदा गया वो रसोई के बर्तनों का सेट याद आया
टक-टक करती , उन् खिलौनों में एक गाड़ी भी थी
डोर उस गाड़ी की तुम खीचा करते
और मैं पीछे - पीछे खुश होकर दौड़ती आती
...एक पी-पी पिपिहरा बाजा भी था
किसका बाजा तेज बजे ....
इस होड़ में हम शोर खूब मचाते
पड़ती थी तब हमें माँ की डाट
मार भी न पड़ जाए ..
इस डर से हम घर के बाहर भाग जाते ....:)))) शोभा

4 comments:

  1. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने

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  2. आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया ....

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