Tuesday, March 13, 2012

कलयुग का रावण

हे सीते !
ये कलयुग का रावण है
तुलनीय नहीं है ये त्रेतायुग के रावण से
दस मुख नहीं दिखेंगें तुम्हें इस रावण के
अपने अदृश्य सहस्रों मुखों वाला
ये रावण दिखने में राम जैसा है

हे सीते !
अपमानित नहीं है ये
अपनी बहन के अपमान से
अहम् विचलित है इसका
तुम्हें बिन लक्ष्मण रेखा के
अपनी कुटिया से बाहर विचरते देख

हे सीते !
नहीं बदलेगा ये ऋषि सा भेष
न भिक्षा मांगने आएगा
तुम्हारी कुटिया के बाहर
अपना ऋषितुल्य आचरण दिखायेगा
और तुम , भाव विह्वल होकर
लांघ जाओगी मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा
स्वेक्षा से खिंची चली जाओगी उसके मोहपाश में

हे सीते !
धैर्यहीन है ये रावण
बस देह मात्र है स्त्री इसके लिए
तुम्हें मान -सामान देकर
अर्धांगिनी बनाकर
शरण नहीं देगा अ-शोक वाटिका में
अपने भीतर छिपे दैत्य को शांत कर
जीवनपर्यन्त संग रहने का वचन देकर
विदा ले लेगा तुमसे हमेशा के लिए

हे सीते !
कलयुग है ये
रावण द्वारा छली गयी
ये व्यथा सिर्फ तुम्हारी अपनी है
राम भी अनभिज्ञ है
तुम्हारी दुविधा से
नहीं ली जायेगी तुम्हारी अग्नि परीक्षा
न ही आश्रय ले सकती हो तुम
धरती के गर्भ में

डर है तुम्हें
पवित्र होते हुए भी
अपवित्र ना कही जाओ
इतिहास के पन्नों पर ...............

( शोभा )