Thursday, March 31, 2011

वात्सल्य की प्रथम अनुभूति



 नींद में भी तुम्हारे करिश्में देखने को
सारी -सारी रात मैं जगती रहती
कभी नींद में तुम हलके से मुस्कुराते
तो मैं भी मुस्कुरा पड़ती
कभी अचानक ही तुम सिसकियाँ भरने लगते
तो मैं सहम जाती
याद है मुझे आज भी वो तुम्हारा पहला संकेत
जब तुमने अपने होने का अहसास मुझमे जगाया
रोम-रोम मेरा पुलकित हुआ
एक अलग अहसास तुमने मुझे दिया
अंकवार में जब-जब तुम्हें भरती हूँ

बस ... क्या कहूँ ?
 किस दुनिया में मैं होती हूँ !!!!

शोभा 

No comments:

Post a Comment