ब्रह्म मुहूर्त का प्रहर
पास 'पोखर' से आती
'भुजैटें' की आवाज़
चौखट के अन्दर से आती
'पायल' की झुन झुन
भक्तिमय मन्त्रों के ..
उच्चारण की गुन-गुन
'कुचिया ' से बुहार की आवाज़
चूल्हे से आती लेप की सुगंध
हल्का उजाला क्षितिज पर
अम्बर के माथे नहीं सजा
अभी नूरानी सूरज
आँगन में एक सखी के
माथे पे चमकती "टिकुली "
मंद मंद मुस्काती
इक माँ अन्नपूर्णा
'अदहन' धरने लगी चूल्हे पर
संग संग उनकी मधुर आवाज़
मैं सुनती रही गुन-गुन
उफ्फ़ ! ये कैसी कर्कश
गाड़ियों के हार्न की आवाज़ ?
मैं घबरा के उठ बैठी , जिसे सुन
महानगरों के शोर में
गाँव के सुन्दर ख्वाब रही थी बुन ......
~ ~ शोभा ~ ~
'भुजैटें' = पंक्षी
'कूची '= झाड़ू
'टिकुली' = बिंदी
mahanagron me ganw ke khwaab ... shayad ganw kee taraf mann ke saath panw bhi badhen
ReplyDelete..बहुत प्रभावशाली रचना ...बेहतरीन अंदाज़ बात कहने का
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी....बरवस बहुत कुछ यादें ताजी हो गयी आपकी रचना पढ़ कर !
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
वाह...
ReplyDeleteगाँव की मीठी याद....
बहुत सुन्दर.
ha sahi kaha ye shahero ka kolahal..ichcha hoti hai ki bahg jaye yaha se kahi dur...
ReplyDelete