बहुत मन्नतों से मिली हो तुम
मेरे आँगन की कली हो तुम
पलक झपकते ही समय बीता
इतनी जल्दी तुम बड़ी हो गयी
कुछ सीख देती हूँ तुम्हे
याद हमेशा तुम इसे रखना
जब भी अकेली बाहर जाना
भीड़ से जरा बचकर रहना
भ्रमित बुद्धि वालों पर
आवाज़ अगर उठाओगी
शर्मिंदा आप ही हो जाओगी
ठोकर तुम्हे लगे कभी
सर से पहले वस्त्र सम्हालना
विदाई भी इक दिन होगी तुम्हारी
पति की सेवा , बड़ो का सम्मान ...
छोटों को प्यार भरपूर देना
स्वयं भूखी सो जाना ...
पर किसी को भूखे न सोने देना
स्त्री ही तो रसोई है
ये याद जरुर रखना
कभी किसी की आँखों में आँसू न आने देना
अपने आँसुओं को तुम स्वयं ही पोछ लेना
नहीं चाहूँगी ये कभी ..
बेटी की तुम माँ बनो
फिर भी अगर तुम बेटी की माँ बनना
उसको भी यही सीख देना
अगर सीख मेरी याद रखोगी तुम
सबकी आँखों का तारा बनोगी तुम ..... शोभा
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