Wednesday, June 22, 2011

एक माँ की अपनी बेटी को सीख


बहुत मन्नतों से मिली हो तुम
मेरे आँगन की कली हो तुम

पलक झपकते ही समय बीता
इतनी जल्दी तुम बड़ी हो गयी

कुछ सीख देती हूँ तुम्हे
याद हमेशा तुम इसे रखना

जब भी अकेली बाहर जाना
भीड़ से जरा बचकर रहना

भ्रमित बुद्धि वालों पर
 आवाज़ अगर उठाओगी

शर्मिंदा आप ही हो जाओगी


ठोकर तुम्हे लगे कभी
सर से पहले वस्त्र सम्हालना

विदाई भी इक दिन होगी तुम्हारी
पति की सेवा , बड़ो का सम्मान ...
छोटों को प्यार भरपूर देना
स्वयं भूखी सो जाना ...
पर किसी को भूखे न सोने देना
स्त्री ही तो रसोई है
ये याद जरुर रखना
कभी किसी की आँखों में आँसू न आने देना
अपने आँसुओं को तुम स्वयं ही पोछ लेना

नहीं चाहूँगी ये कभी ..
बेटी की तुम माँ बनो
फिर भी अगर तुम बेटी की माँ बनना
उसको भी यही सीख देना


अगर सीख मेरी  याद रखोगी तुम
सबकी आँखों का तारा बनोगी तुम ..... शोभा



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