सखी जब तुम वापस आना
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उगते हुए ताम्बई सूरज की चमक
अपनी बिंदिया में सजा लाना
दुपहरिया के धूप की तपन
अपनी साड़ी में सोख लाना
मंदिर के बाहर के पीपल की थोड़ी छाँव
अपनी चोटी में गूँथ लाना
तारों के नीचे सोते हुये
उनकी गिनती लिख बटुए में लेती आना
सुनना "रामबिरिक्ष" की कहानियाँ
मीठे सपनों में सुनहरे,मखमली पंखों से
सहलायेंगी तुम्हें रात भर परियाँ
वो नर्म अहसास अपनी बांहों में भर लाना
अमवारी की खट्टी हवाएं
अपनी साँसों में भर लाना
कोयल की मीठी कूक
अपनी आवाज़ में उतार लाना
पगडंडियों की धूल से अपने पाँव सान लाना
नानी के आंसुओं से अपनी पलकें भिगो लाना
और भी बहुत कुछ ला सको तो लाना
तुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
जहां आँगन नही होता, न मुंडेर
जहाँ काँव काँव करता कौवा भी नही लाता कोई सनेस
सखी तुम आना, तुममे मैं देखूँगी वो अतीत
जो कभी तीत लगता ही नहीं ..... ( शोभा )
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उगते हुए ताम्बई सूरज की चमक
अपनी बिंदिया में सजा लाना
दुपहरिया के धूप की तपन
अपनी साड़ी में सोख लाना
मंदिर के बाहर के पीपल की थोड़ी छाँव
अपनी चोटी में गूँथ लाना
तारों के नीचे सोते हुये
उनकी गिनती लिख बटुए में लेती आना
सुनना "रामबिरिक्ष" की कहानियाँ
मीठे सपनों में सुनहरे,मखमली पंखों से
सहलायेंगी तुम्हें रात भर परियाँ
वो नर्म अहसास अपनी बांहों में भर लाना
अमवारी की खट्टी हवाएं
अपनी साँसों में भर लाना
कोयल की मीठी कूक
अपनी आवाज़ में उतार लाना
पगडंडियों की धूल से अपने पाँव सान लाना
नानी के आंसुओं से अपनी पलकें भिगो लाना
और भी बहुत कुछ ला सको तो लाना
तुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
जहां आँगन नही होता, न मुंडेर
जहाँ काँव काँव करता कौवा भी नही लाता कोई सनेस
सखी तुम आना, तुममे मैं देखूँगी वो अतीत
जो कभी तीत लगता ही नहीं ..... ( शोभा )
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ReplyDeleteभूल सुधार ---
ReplyDeleteकल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
साधु-साधु
ReplyDeleteगाँव के हर बिम्ब से श्रृंगार की नूतन कल्पना, बधाई.
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeletegaon ki yad dilati bahut hi khoobsurat rachna !
ReplyDeletewww.bebkoof.blogspot.com
नानी के आंसुओं से अपनी पलकें भिगो लाना
ReplyDeleteऔर भी बहुत कुछ ला सको तो लाना
तुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
जहां आँगन नही होता, न मुंडेर
बहुत सुंदर...भावभीनी रचना...
सादर
Behtareen....
ReplyDeleteअति सुन्दर ...
ReplyDeleteओ सखी मेरा भी उसे सलाम देना उस बीते अतीत कि यादों को मेरे साथ भी बाँट लेना | सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ..भाव विभोर करती रचना....
ReplyDeleteगांव की याद साझा करती खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई इस प्रस्तुति के लिये..
बहुत खूबसूरत खयाल ....
ReplyDeleteतुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
ReplyDeleteजहां आँगन नही होता, न मुंडेर
जहाँ काँव काँव करता कौवा भी नही लाता कोई सनेस
सखी तुम आना, तुममे मैं देखूँगी वो अतीत
जो कभी तीत लगता ही नहीं ...
yahi to hai aaj ka sach.....
aap sabhi ka hardik aabhaar !!!
ReplyDeleteसुरमय लेखनी ...बहुत खूब
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ReplyDeleteसखी की वापसी कितनी भोली उम्मीदों पर टिकी है .. ...
ReplyDeleteतुम्हारे आने में , आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
भण्डार है आपके पास आंचलिक ग्राम्य जीवन की शब्दावली का .जिसका बहुत सुन्दर सहज इस्तेमाल करती है आप
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशोभा मिश्रा जी का परीचय फरगुदिया से हुआ था... बेहतरीन कलमकार.... अपनी अभिव्यक्ति में खुद डूबकर लिखती हैं.... यहाँ आकर बड़ी खुशी हुई... - पंकज त्रिवेदी
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