Saturday, April 16, 2011

गौरैया




मैं पंछी हूँ

हाँ मैं गौरैया हूँ

शाम को क्या ..

अब सुबह को भी नहीं आउंगी

भूल जाओ आँगन में उतरने की बात 

अब तो तुम्हारे छज्जे पर भी नहीं बैठूंगी

 पहचानती थी तुम्हारे आँगन के हर कोने को

 अब वो आँगन ही नहीं रहा

बदल लिया है तुमने घर का नक्शा

 बनवाया है तुमने एक नया घर


संगमरमर से तराशा

बहुत खूबसूरत है ये घर

पर अब आँगन नहीं है तुम्हारे घर में 

बहुत छोटे हैं कमरे भी

नहीं है कोई झरोखा भी

जगह है जो थोड़ी सी

खूबसूरत सजावट की मूर्तियाँ सजा रखी हैं उसमें तुमने

घोसला तो अब बनता ही नहीं

एक तिनका भी रखती हूँ ..

तो टिकता नहीं

तुम कहते हो आया करो

कैसे आऊँ ?

कहाँ बैठाओगे आ भी गयी तो?

आँगन तो अब रहा नहीं

बंद कर दिए झरोखे भी तुमने

मत देखना अब तुम रास्ता मेरा

नहीं आउंगी मैं अब 

आने के मेरे सारे रास्ते..

बंद कर दिए तुमने ही  

हाँ , यही सच है

नहीं  आउंगी मैं अब ...!!! शोभा

6 comments:

  1. baat me dam hai dard hai aur kai tarah k arth hai...aapne gaurayya k madhyam se badi saphai se bahut kuch kah diya....sangmarmari farsh sunder dikhne me avashya hota hai ,par us par prem k tinke ka ghosla nahi ban sakta....atyant dil ko chhu janewali baat..SHOBHAJI aapko sadhuwad

    ReplyDelete
  2. आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया ....

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया..............सुन्दर .....................शोभा जी..

    ReplyDelete
  4. achhi koshish hai shobha.. gaureyya ke madhyam se prkriti se tootta hamara naata khoob dikhaya hai.. badhai

    ReplyDelete