Thursday, April 21, 2011

तुम्हारे आने से ...


तुम्हारे आने से ...

भ्रमों के काले बादल हट गए
नयनों से जो नीर बहे..
अंतर्मन पर पड़ी गर्त ...
धुल गयी उस नीर से
देख तेजस्वी छवि तुम्हारी
रोम-रोम मेरा पुलकित हुआ
भाव-विभोर हुआ है मन
कौन हो तुम ?
कहाँ से आए हो ?
कभी सूक्ष्म हो तुम ..
कभी विराट हो तुम ..
जो भी हो ..
बस एक तुम्ही सच हो
तुम्ही सच हो ... !!!! शोभा

1 comment:

  1. वाह ! शोभा जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

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