पहले तालीम से डरे
नन्ही गुड़िया की कलम से डरे
हुकूमतें तुम्हारी क्यों हिलने लगी ?
नहीं बंद रही वो
घर की दहलीज़ के भीतर
नहीं रही सिमटी
तुम्हारे बिस्तरों के सिलवटों में
विस्तार दे रही थी
अपने पंखों को
मिशाल बन रही थी
घोसले में सहमी फर्गुदियाओं के लिए
तुम्हारी सत्ता को ललकार नहीं रही थी
अपने वजूद का निर्माण कर रही थी
बुज़दिल !
छिपकर निशाना साधते हुए
रूह न कांपी तुम्हारी
क्या कुसूर था उसका ?
अमन पसंद उसने कलम से आवाज़ उठाई
आग उगलती गोलियों से
कर सकोगे उसकी आवाज़ बंद ?
स्याह अक्षरों ने आगाज़ किया है
तुम्हारा वजूद स्याह करने के लिए ..!!!
(शोभा)
नन्ही गुड़िया की कलम से डरे
हुकूमतें तुम्हारी क्यों हिलने लगी ?
नहीं बंद रही वो
घर की दहलीज़ के भीतर
नहीं रही सिमटी
तुम्हारे बिस्तरों के सिलवटों में
विस्तार दे रही थी
अपने पंखों को
मिशाल बन रही थी
घोसले में सहमी फर्गुदियाओं के लिए
तुम्हारी सत्ता को ललकार नहीं रही थी
अपने वजूद का निर्माण कर रही थी
बुज़दिल !
छिपकर निशाना साधते हुए
रूह न कांपी तुम्हारी
क्या कुसूर था उसका ?
अमन पसंद उसने कलम से आवाज़ उठाई
आग उगलती गोलियों से
कर सकोगे उसकी आवाज़ बंद ?
स्याह अक्षरों ने आगाज़ किया है
तुम्हारा वजूद स्याह करने के लिए ..!!!
(शोभा)
आग उगलती गोलियों से
ReplyDeleteकर सकोगे उसकी आवाज़ बंद ?
स्याह अक्षरों ने आगाज़ किया है
तुम्हारा वजूद स्याह करने के लिए ..!!!
बिल्कुल सही कहा
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteक्या बात
बहुत सुन्दर रचना शोभा जी
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