Thursday, February 24, 2011

चाह अब भी .. उस आँचल की छाँव की ...

याद है मुझे अब भी
जब मैं छोटी थी
अक्सर डर जाया करती थी
भाग कर आती थी तुम्हारे पास
तुम मुझे छुपा लेती थी आगोश में
तब मैं अपने आप को,
बहुत सुरक्षित महसूस करती थी !

एक बार फिर मैं अकेली हूँ
बहुत डरी हुई भी हूँ
जरुरत है फिर मुझे तुम्हारे आगोश की
छिपा लो मुझे फिर एक बार..
उसी आगोश में !

नन्हें पाँव से जब चलना सीखा मैंने
लडखडाती थी मैं कई बार
हर बार तुम मुझे सहारा देती थी !

माना अब मेरे पाँव बहुत मजबूत हैं
ठोकरे मेरी पग-पग पर और ज्यादा हैं
एक बार फिर मुझे..
तुम्हारे सहारे की जरुरत है !

जब बचपन में सखी ने मेरे खिलौने तोड़े थे
मैं बहुत रोई थी
तुमने जब मुझे आलिंगन किया
भूल गयी थी मैं सारे गम !

अब तो हर पल दिल टूटता है मेरा
फिर से एक बार मुझे आलिंगन करो
फिर से मेरे माथे पर,
अपने होठों से स्पर्श करो !

बचपन में
तुम्हारी प्यारी भरी थपकी
और लोरी सुने बगैर ,
मैं सोती नहीं थी !

अब नींद मेरी आँखों से उड़ चुकी है
रातें मैं जाग कर बिताती हूँ
एक बार फिर मुझे तुम लोरी सुना दो
थपकी देकर मुझे सुला दो !

मैं बड़ी ही कब हुई थी
अब तो अपने आप को,
और भी छोटी महसूस करती हूँ !

मुझे फिर से एक बार दे दो
वही आँचल की छाँव
मुझे फिर से दे दो वही .
प्यार भरा स्पर्श,

अब मुझे तुम्हारी,
और भी ज्यादा जरुरत है
बहुत ज्यादा ...................

शोभा

(कविता नहीं बस 'माँ' के लिए मन के भाव हैं .. याद नहीं कब लिखा था )

4 comments:

  1. मुझे फिर से एक बार दे दो ..
    वही आँचल की छाँव,
    मुझे फिर से दे दो वही .
    प्यार भरा स्पर्श,

    वाह!!! शोभा सुन्दर भावपूर्ण एवं मन को छूती हुई रचना ......

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  2. माँ ...
    हर 'बेदना' में...
    'संवेदना' बन कर उभर आती हो..
    कराहते हुए भी जब मैंने 'तुम्हे' पुकारा है..
    एक मंत्र कि भांति अनवरत ....माँ -माँ

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  3. touching .......very tching ...............

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  4. dil ko chu lene waali kavita shobha ji ,keep it up.....bahut aage jaayengi aap .

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