Wednesday, October 9, 2013

दिलों के मेले


गुल्लक जो फूटेंगे
लाल माटी से सने
सिक्कों की चमक हम
आँखों में भर लेंगें

नन्ही अंजुरियों में
सीपियाँ खनकायेंगे
नन्ही हथेलियों में
रेखाएं पसीजेंगी

दिलों के मेले में
धूल ढके पाँव अपने
भटकेंगे, भागेंगे
माटी के खिलौनों से
सपनों के घर सजेंगे

देखो लुका-छिपी में
त्यौहारों के मौसम ये
यूं ही बीत जाएंगे
.....

2 comments:

  1. उम्दा रचना
    आपकी रचना को शामिल किया गया "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" दिन शुक्रवार ११ अक्तूबर
    कृपया अव्लोकानार्थ पधारे

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  2. प्रेम की सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    आग्रह मेरे ब्लॉग में समल्लित हों
    पीड़ाओं का आग्रह---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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