गुल्लक जो फूटेंगे
लाल माटी से सने
सिक्कों की चमक हम
आँखों में भर लेंगें
नन्ही अंजुरियों में
सीपियाँ खनकायेंगे
नन्ही हथेलियों में
रेखाएं पसीजेंगीदिलों के मेले में
भटकेंगे, भागेंगे
माटी के खिलौनों से
सपनों के घर सजेंगे
देखो लुका-छिपी में
त्यौहारों के मौसम ये
यूं ही बीत जाएंगे
.....
उम्दा रचना
ReplyDeleteआपकी रचना को शामिल किया गया "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" दिन शुक्रवार ११ अक्तूबर
कृपया अव्लोकानार्थ पधारे
प्रेम की सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह मेरे ब्लॉग में समल्लित हों
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in