Thursday, February 27, 2014

school

बौराए आम और फागुन के रंगों के दिनों में कोर्स की किताबें पढ़ना बहुत तनाव देता था... बोर्ड के एग्जाम थे ना चाहते हुए भी किताबों में डूबे रहो .. पढ़ो चाहे भले ना अम्मा को लगना चाहिए कि बिटिया पढ़ रही है ... कितनी भी कोशिश कर लो दोपहरिया के दो बजते ही चाचा चौधरी, पिंकी, साबू, और कॉमिक्स के दूसरे किरदारों की याद सताने लगती ... उन्हें रोज कुछ देर पढ़ना-देखना मानो एक नशे की लत की तरह था ! 
गुल्लक में जो अट्ठन्नी-चवन्नी की रेजगारी होती थी उसे अम्मा बक्से में ताला लगाकर रखती थी लेकिन इस बात की उन्हें जानकारी नहीं थी कि चवन्नी में एक घंटे के लिए रेंट पर मिलने वाली कॉमिक्स भरी हुई रद्दी कॉपी के बदलें भी मिल जाती थी ... सबसे छिपकर डरते-डरते किसी तरह जुगाड़ करके कॉमिक्स ले ही आते और पूरी तरह डूबकर एक घंटे में दो-तीन कॉमिक्स पढ़कर जो तृप्ति मिलती थी उसके बारे में क्या कहें ! कभी-कभी पकड़े भी जाते .. खूब जमकर धुनाई होती थी !
कॉमिक्स के अलावा एक और नशा था रेडियो पर भूले-बिसरे गीत और 'हवामहल' सुनने का .... गीत ना भी सुने लेकिन हवामहल सुने बिना चैन नहीं आता था ... नौ बजते ही मर्फी रेडियों चद्दर में छिपाकर स्लो वॉल्यूम में हवामहल की कहानियों में खो जाते .. कभी-कभी उसी बीच लाइट चली जाती ... रेडियो की धीमी आवाज़ भी अम्मा तक पहुँचते ही पोल खुल जाती और उसके बाद ताबड़तोड़ चांटों से गाल और कनपटी लाल हो जाते थे  ....................................
अतीत की यादों से .... Devesh Tripathi