Thursday, April 26, 2012

आपबीती


शनिवार को मेरे साथ एक छोटी सी कुछ डरावनी( मेरे लिए डरावनी थी ) घटना घटी | वरिष्ठ कवि शिवमंगल सिद्धांतकार के घर में एक छोटी सी काव्य संगोष्ठी थी , मैं भी वहां गयी थी , आदरणीय कवि सिद्धांतकार जी को सुनना मेरे लिए अपने आप में एक सुखद अनुभव था |
अब उस डरावनी घटना के बारे में आप सबको बताती हूँ , गोष्ठी शाम के 6 बजे तक चली , वापसी में कवित्री रेनू हुसैन जी ने मुझे पंजाबी बाग तक अपनी गाड़ी से छोड़ दिया , वहां से बस से मैं मायापुरी चौक आई , मायापुरी चौक से लगभग १०० मीटर की दूरी पर ही मेरा घर है मैं पैदल ही घर की तरफ चल पड़ी .. तब तक 7 बज चुके थे और अँधेरा भी हो गया था .. मैं अभी घर से कुछ ही दूरी पर थी की एक गंदे से आदमी ने साईकिल मेरे बिलकुल बगल से लहराते हुए निकाली और शायद कुछ कहा भी ... मैं तुरंत समझ गयी की ये कोई सिरफिरा है .. मन में बहुत से बुरे विचार आ गए ... सबसे पहले अपनी बेटी का ध्यान आया क्योकि उसे भी कभी कभी कॉलेज से लौटने में देर हो जाती है ... उसके बाद अपने सोने के जेवरों पर ध्यान गया .. मैंने सिर्फ एक अंगूठी और कानों में टॉप्स पहन रखा था .. दूसरे ही क्षण अपने पर्स का ख्याल आया .. उसमें कुछ 2000 रुपये थे ... सबसे ज्यादा जान का खतरा लगा ... अक्सर समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल्स में महिलाओं और लड़कियों पर ऐसे सिरफिरों द्वारा चाकू और दुसरे धारदार हथियारों से हमले की बातें देखतीं सुनती रहतीं हूँ ...चंद सेकेण्ड में ही इतने सारे बुरे ख़याल मेरे मन में आ गए ... मैं मन ही मन बहुत डरी हुई थी लेकिन चेहरे पर मैंने ये भाव प्रकट नहीं होने दिया ... मैं अपनी सहज मुस्कराहट के साथ आगे बढती जा रही थी ... कुछ कदम की दूरी पर जाकर उस आदमी ने साईकिल रोकी और मुझे देखने लगा .. मैंने भी उससे पूछ ही लिया " तुम क्या कह रहे थे ..? " ... "कुछ भी तो नहीं " उसने जवाब दिया और आगे बढ़ गया ... लेकिन वो फिर रुका और मुझसे बोला की मेरे पास गाड़ी नहीं है नहीं तो आपको बैठा लेता ... इतना सुनना था की मेरे अन्दर एक क्रोध की ज्वालाग्नी फूट पड़ी ... लेकिन मैंने उससे मुस्कुराकर कहा की थोडा आगे चलो ... मैं तुम्हारी साईकिल पर ही बैठ लूँगी ... मैंने मन ही मन उसे सबक सिखाने की ठान ली थी ...वो कुत्सित बुद्धि वाला आदमी भी शायद कुछ समझकर डर रहा था ... वो एक बार फिर रुका लेकिन फिर जल्दी ही साईकिल पर सवार होकर तेजी से आगे बढ़ने लगा ... मैंने थोडा प्यार से उसे आवाज़ लगायी और उससे रुकने के लिए कहा ... वो भी डर रहा था लेकिन मेरे आवाज़ देने पर रुक गया ... उसे उम्मीद भी नहीं होगी की उसके साथ क्या होने वाला है ... मैं उसके पास खड़ी हो गयी ... और गुस्से में उससे कहा की 'तू मुझे साईकिल पर बैठायेगा ..? ' .. मेरा गुस्सा देखकर वो साईकिल लेकर भागने की फिराक में था ... लेकिन मुझमें पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत और ताकत आई .. मैंने उसकी साईकिल पीछे से पकड़कर उसे साईकिल समेत नीचे जमीन पर गिरा दिया ...और उसके गालों पर पता नहीं कितने थप्पड़ रसीद कर दिए .... उसे मैंने पीटना तब बंद किया जब मैंने उसके होंठों से खून निकलता देखा ... एक स्कूटर सवार सज्जन ये सारा माज़रा शरू से देख रहे थे ... कुछ और लोग भी आ गए ... सबने मुझसे यही कहा की इसे छोड़ दीजिये और जाने दीजिये ... वो आदमी मुझे माताजी और बहनजी कहकर हाथ जोड़कर लगातार रो रहा था और माफ़ी मांग रहा था ....लेकिन उस कुत्सित मानसिक वाले व्यक्ति का अपराध इतना बड़ा नहीं था की उसे पिटाई से ज्यादा कोई और सजा दी जाए |
ये कहानी लिखकर बताने में इतनी बड़ी लग रही है ... लेकिन ये सारा वाकया घटित होने में सिर्फ 4 या 5 मिनट ही लगे होंगें | मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा है की मैंने ये सब किया लेकिन इस घटना के बाद मुझमें एक अलग तरह के आत्मविश्वाश की वृद्धि हुई है ...

Tuesday, April 17, 2012

नीले निशान

वो फिर आज आई
अपनी देह पर सैकड़ों
नीले निशान लेकर
रूखे,बिखरे बाल
माथे पर उभरा नीला निशान
गालों पर छपी हुई नीली उंगलियाँ
गर्दन और पीठ पर
नाखूनों के खरोंच का निशान
बाहों पर निलयिपन लिए कत्थई निशान
कलाई पर चूड़ियों के जख्म
अपने चेहरे के दयनीय भाव को ..
छिपाने का असफल प्रयास करते हुए
और दिखाते हुए झूठा विद्रोहाना अंदाज़
वो घुटी हुई आवाज़ में चीखकर बोल रही थी
कुछ अपशब्द
" बीबी जी ! मांग धोये लिए आज हम
विधवा हैं हम आज से
दुई दिन निवाला मुह में न जाई
ता ओका होश ठिकाने आ जाई "
कांपती हुई आवाज़ में बडबडाती हुई
बेरहमीं से गुस्से में अपने जख्मी..
गालों पर से आँसूं पोंछ देती हैं
खुद पर हुई बर्बरता मुझे सुनाकर वो चली गयी
उसके जाने के बाद
मैंने महसूस किये अपने पैरों के कंपन
और बढ़ी हुई धड़कन को !
फिर आई वो दूसरे दिन
कुछ लजाती, मुस्कुराती हुई
सितारों से चमकती लाल साड़ी पहनकर
आज कुछ हलके पड़ गए थे
उसके जख्मों के निशान
आज बस इतना ही कह सकी थी वो
" उसने हमसे माफ़ी मांग ली है "
कुछ गुनगुनाती हुई
करती रही वो घर की सफाई
और मैं सोचती रही
उसके क्षणिक सुख के बारे में
और खोजती रही
इस प्रश्न का उत्तर
"क्या अपना जीवन यूँही बिता देगी
"वो" "उसे" माफ़ करते करते" .....? ( शोभा )

Tuesday, April 10, 2012

पीला पुराना एल्बम

अब मैं
तुम्हारे लिए बस
एक पुराने एल्बम की
कुछ पीली पड़ी तस्वीरें..
भर बनकर रह गयीं हूँ
बहुत प्रिय है तुम्हें
कुछ - कुछ फटे
प्लास्टिक कवर वाला ये एल्बम
इसलिए तो तुमने रखा है इसे
बड़े जतन से अपनी दूसरी
यादगार वस्तुओं के साथ ..
अपने पुराने बक्से में
उकता जाते हो जब कभी-कभी
अपने डिजिटल कैमरे से खींची हुई
आधुनिकता से भरी
नए-नए चेहरों वाली
तस्वीरों की भरमार से
अंततः उब जाते हो
जब उन कृत्रिम मुस्कानों से
तब याद आता है तुम्हें
वो पीला पुराना एल्बम
बहुत सुकून मिलता है तुम्हें
उस पुराने , फटे कवर वाली
एल्बम की पीली पड़ गयी
तस्वीरों में मुझे मुस्कुराते हुए देखकर
हो जाता है तुम्हारा थका चेहरा गुलाबी
सुस्ताकर उस पुराने एल्बम के साथ
महसूस करते हो तुम खुद को नया सा
और तैयार हो जाते हो नयी उर्जा के साथ
फिर से खुद को थकाने और उलझाने
उन्हीं नयी आधुनिक तस्वीरों में
मुझे यूँही सहेजकर रख देते हो
फिर से उसी पुराने बक्से में .....................

( शोभा )