Sunday, October 14, 2012

एक मिसाल -मलाला

पहले तालीम से  डरे
नन्ही गुड़िया की कलम से डरे

हुकूमतें तुम्हारी क्यों हिलने लगी ?
नहीं बंद रही वो
घर की दहलीज़ के भीतर
नहीं रही  सिमटी
तुम्हारे बिस्तरों के सिलवटों में

विस्तार दे रही थी 
अपने पंखों को
मिशाल बन रही थी
घोसले में सहमी फर्गुदियाओं के लिए
तुम्हारी सत्ता को ललकार नहीं रही थी
अपने वजूद का निर्माण कर रही थी

बुज़दिल !
छिपकर निशाना साधते हुए
रूह न कांपी तुम्हारी
क्या कुसूर था उसका ?
अमन पसंद उसने कलम से आवाज़ उठाई
आग उगलती गोलियों से
कर सकोगे उसकी आवाज़ बंद ?
स्याह अक्षरों ने आगाज़ किया है
तुम्हारा वजूद स्याह करने के लिए ..!!!

(शोभा)

रंग



मेरे ख्वाबों के रंग से

तुमने रंग दी हैं घर की दीवारें

तुम्हारी शर्ट और दीवारों का रंग एक ही है

हल्का आसमानी .. छोटे चेक वाली शर्ट

शर्ट का रंग भी तो मैंने ही पसंद किया था

इन्द्रधनुष के रंग के फ्रेम में मढ़कर

हमारी मुस्कुराती हुई तस्वीरें भी सजा देना

तुलसी,रातरानी,पाम और मनीप्लांट के गमले

बालकनी में करीने से सजा देना

मेरे जीवन की पहली दिवाली

खूब रौशनी करके इस 'घर' को देखूंगी

मेरे ख्वाबों के घर को तुमने जो सजाया है ....

Saturday, October 13, 2012

महफ़िल



सजतीं हैं महफ़िल

चमक उठतें हैं कुछ चेहरे रौशनी में

चमकते सितारे आसमाँ में नज़र आतें हैं

सूनी ..महफ़िल...अंधेरों में .. वीरान.. रह जाती है ..!!

Wednesday, October 10, 2012

"गौरईया"

गौरैया

उसी शहतूत का पेड़ पर जिसके  आस-पास  पापुलर, मेहँदी, आम के पेड़ भी हैं !  एक धीमी आवाज़ सुनाई दे रही है कभी - कभी लेकिन वो नज़र नही आई ! 
कुछ साल पहले वो सुबह शाम आती  थी अपने झुण्ड के साथ ! खूब मधुर कलरव सुनाई देता था !   सुबह रसोई की व्यस्तता के साथ ही मैं चहकने लगती थी उनकी चहक सुनकर !   उनके लुकाछिपी के खेल में मैं भी शामिल हो जाती !  कभी वो सभी ऐसे शांत हो जातीं जैसे छिप गयीं  हों अपनी अलग अलग कोई शाख ढूंढकर !  फिर अचानक ही जोर से ऐसे  चहचहाने लगतीं मानो लुकाछिपी के खेल में किसी  शाख के पीछे से  अपनी सखी को ढूंढ  लिया हो और बाकी सारी सखियाँ फुदक-फुदककर खुश हो रहीं हों ! कभी वो एक साथ  धीमी आवाज़  में कुछ ऐसे बातें करतीं जैसे अपनी  दिनचर्या तय कर रहीं हों ! कुछ देर यूँ ही हरे - भरे शहतूत पर खेलकर  और शरारतें करके वो एक साथ कहीं उड़ जातीं !  उनके जाने के बाद शहतूत का पेड़ नौनिहालों  के खेलकर जाने के बाद बिखरे  आँगन - सा  खुश नज़र आता !
   अब अक्सर शहतूत के पेड़ पर उनमें से किसी की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन वो  नज़र नहीं आती  !  आज फिर उसकी आवाज़ सुनाई दी !  गौर से देखने पर वो अपने एक साथी के साथ नज़र आई लेकिन बहुत  उदास  लग रही थी !  शाख-शाख पर घूमकर वो और उसका  साथी कुछ देर कुछ ढूंढते रहे ! ठूंठ हो चुकें पापुलर के पेड़ से एक गिलहरी भी उन्हें निहारती रही, कुछ कहती रही ! शहतूत के पेड़ के ऊपर के आसमान से  कुछ कौवे उड़ते हुए उन्हें निहारते रहे ! बुलबुल का एक जोड़ा भी चुपचाप उन्हें उत्साहपूर्वक देखता रहा ! कुछ देर बाद शहतूत के पेड़ पर फिर वही उदासी छा गई  ! वो अपने साथी के साथ उड़ गई !  गिलहरी,कौवे,बुलबुल भी कहीं चले गए .....
  हाँ .... आज सुबह एक गौरैया आई थी अपने साथी के साथ दूसरे साथियों को तलाशने,  उसी शहतूत के पेड़ पर जो मेरी खिड़की से नज़र आता  है ..........

(गौरैया के साथ कभी एक सुबह ) 
  (  मेरे घर की खिड़की से नज़र आता दृश्य ... जो कभी चहकता था ... आज उदास नज़र आता है )

शोभा
११/१०/२०१२ 

Monday, October 8, 2012

"रेड लाइट पर बिलखती भूख"




तथाकथित कवयित्री

असफल प्रयास करती है

गरीबी पर कविता लिखने का




ए सी रूम से निकलकर

ए सी गाड़ी में बैठकर

कविता-पाठ करने वाली

कवयित्री लिख नहीं पाती है

जेठ की धूप में रिक्शा चलाते


रिक्शेवाले का दर्द




बर्गर , पिज्ज़ा की शौक़ीन कवयित्री

नहीं लिख पाती

खाली बटुली से गरीब के पेट में

भूख से खदबदाता

पेंदी में बचा पाव भर अदहन




मखमली बिस्तर पर

गहरी नींद बेसुध सोने वाली कवयित्री

नहीं लिख पाती

फुटपाथ पर करवट बदलते

नौनिहालों की जागती रातें




एक भूख से बिलखता अपाहिज

याचना करता रहा चार पैसों के लिए

उसे फटकारती

अपनी कार के शीशे चढ़ाती

घर जाकर लिख देती है

एक सफल कविता




"रेड लाइट पर बिलखती भूख "


(शोभा)