Friday, April 5, 2013

कुछ यादें

"अपना मोबाईल ऑफ करके क्यों नहीं सोते ??? कभी भी कोई तुम्हें कॉल कैसे कर लेता ?? टाइम देखा तुमने अभी सुबह के पांच बजे हैं ??" सुबह सुबह मोबाइल की घंटी की आवाज़ सुनकर उसने गुस्से में एक साथ कई सवाल कर दिए उससे ... वो नंबर देखकर घबरा गया .. कुछ सचेत होकर बोला "अरे मेरी माँ चुप हो जाओ पैंथर 1 की कॉल है "
उसकी आवाज़ धीमी हो गयी लेकिन वो लगातार बड़बड़ाती हुई उठकर किचेन में काम करने चली गयी " घर के लिए जनाब के पास कभी टाइम नहीं है और अगर कभी मिले भी तो लगातार मोबाइल पर ऑफिस, पैंथर 1 ,2 ,3 , प्रेस रिलीज़, कौन सी मेल आई ...कौन सी भेजी .. बस यही सब !!!! "
"मेरे बच्चे नौकरी ही ऐसी है क्या करूँ ? " कॉल रिसीव करने के बाद ये कहते हुए वो तकिये को बाहों में भींचकर फिर सो गया ... सात बजते ही उसने फिर फटकारने वाले अंदाज़ में उसे जगाते हुए कहा "बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जाना क्या ??"
वो जल्दी से उठा .. सीधे बाथरूम में गया .. आँखों पर पानी के छींटे मारे और गाडी की चाभी उठाकर कुछ गुनगुनाता हुआ बच्चों को स्कूल छोड़ने चला गया ..
बच्चों को स्कूल छोड़कर वापस आया तो उसे न जाने क्या हुआ .... इस बार वो गुस्से में था ... "गुड्डू की डायरी घर में ही छूट गयी ... तुम करती क्या हो यार ?? तुमने डायरी साइन करके उसके बैग में क्यों नहीं रख दिया ? वो दूध भी पूरा पीकर नहीं गया है !! "
"अरे तो इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो ? ऑफिस जाते समय उसकी डायरी देते हुए चले जाना ... और पूरा दूध नहीं पीकर गया तो इसके लिए मैं क्या करूँ ? क्या क्या ध्यान रखूं ? "
इस बार दोनों ही थोड़े तनाव में थे ... दस मिनट तक यूँ ही दोनों एक दूसरे को कुछ न कुछ उलाहने देते रहे .. वो घर के काम करती रही .... वो टी. वी देखने लगा ... चैनल बदलते हुए 9x चैनल पर एक पुरानी फिल्म का गीत देखकर रुक गया .... लव -इन टोकियो फिल्म का गीत था ... ' ओ मेरे साहे खुबां ... ओ मेरी जाने जाना ना ... तुम मेरे पास होते हो ..'
गीत सुनते ही उसे ना जाने क्या हुआ ... किचेन में गया और उसके सामने जाकर घुटनों के बल बैठकर .. दोनों बाहें फैलाकर.. मुस्कराता हुआ वही गीत गुनगुनाने लगा ..
' ओ मेरे साहे खुबां ... ओ मेरी जाने जाना ना ... तुम मेरे पास होते हो ..'
वो गुस्से में दिखने का असफल प्रयास करती रही ..... वो लगातार गीत गुनगुनाता रहा ... आखिरकार उसके होठों पर मुस्कराहट आ ही गयी ..... मन ही मन खीज भी रही थी .. कि क्यों इतनी जल्दी उसे हँसी आ गयी .. थोड़ी देर और नाराज़ रहती ... कितनी चुभती हुई बातें कही है उसने ..
वो तिरछी निगाहों से उसे देखता हुआ .. गुनगुनाता हुआ .. सेविंग करता रहा .. और वो मुस्कराती हुई उसके लिए ब्रेकफास्ट तैयार करने लगी ..

कुछ यादें ~~ क्रमशः जारी

Tuesday, April 2, 2013

माँ

क्या हुआ ..?
हिचकियाँ तो आयीं नहीं होंगी
शायद भीग गया होगा आंचल
तभी तो
कलप उठा तुम्हारा मन
चौंक कर जाग गयीं
पुकारने लगी मुझे

अब हथेलियों को रोको मत
यहाँ कुछ भी सूखेगा नहीं
बरस रहा है लगातार
मेरे गालों से होकर
तुम्हारे हृदय तक पहुँच गया

अपनी नाभि की लतर से फिर जोड़ लो
भूख, प्यास, उजाले  से अनजान
शायद जीवित भी नहीं हूँ
फिर जीवन दो
आहार दो
अँधेरे में सांस लेने दो .............