Thursday, March 31, 2011

कोरा कागज




कोरा कागज था ये दिल मेरा..
लिख कर तुमने दो प्यार भरी बातें..
क्यों मिटा दी तुमने वो सारी बातें ,
स्याही को भी तुमने सूखने न दिया ..
धब्बा बन बैठी हैं वो सारी बातें ,
अब तो ये मिटाए न मिटती हैं ..
गर लिखता भी है कोई कुछ .
तो मुझे ही न दिखती है ..!!
    **** शोभा ****

धरती के सीने जैसा दिल है हमारा

धरती के सीने जैसा दिल है हमारा
अघात तुम्हारे सह कर भी ..
हम अनमोल खजाना तुम्हें देतें हैं
हमने ही संवारा तुमको सदा
हर पल तुम्हें सहारा देतें हैं
मेरे लिए न सही,अपने लिए ही
सहेज लो मुझे,सम्हाल लो मुझे ..!!! शोभा

किसके लिए ????




जब से होश सम्हाला है
तुम्हारे लिए ही जीती आई हूँ
सोती हूँ , तुम्हें ही सोच कर
जगती हूँ . तुम्हें ही देखकर
हर पल बस तुम्हारा ही ख़याल रहा
तुम्हारे कहने से पहले ही ..
तुम्हारे दिल की बात समझ लेती हूँ
हर पल मैं छाया बनकर रही तुम्हारी
कभी ये सोचा ही नहीं ..
की तुमसे अलग भी हूँ मैं
तुम्हारे हर ख्वाबों को पूरा होने का ..
मैं ख्वाब देखती हूँ !

लेकिन आज मुझे अचानक ये क्या ख़याल आया
शायद तितलियों को देखकर ..
फूलों की ख्वाहिश मुझे भी हुई
शायद पंछियों को देखर उड़ने का दिल मेरा भी हुआ
उन्ही की तरह चहकने का दिल मेरा भी हुआ
शायद यही एक मुझसे गुनाह हुआ
तभी तो तुमने मुझसे ये प्रश्न किया
किसके लिए ????


शोभा

प्रीत की अगन



पनघट गयी थी मैं तो पनियां भरन
बरबस ही तू मोहे टकरायो रे !

बहियाँ मरोड़ी , राह भी रोकी
आँचल मोरा सरकायो रे

आँख तरेरी मैंने , बाहँ भी झटकी
नटखट फिर भी तू बाज न आयो रे !

स्याम वर्ण तोरा , कजरारी अँखियाँ

घुँघर बाल ,तोरी ठिठोली बतियाँ
बहुत ही मोरे मन भायो रे !
झिझकी रही मैं , तोसे कैसे कहूँ ?
ये कैसो रोग तूने लगायो रे !
देख ये अपना सिंदूरी रंग
खुद पर ही मैं इतरायो रे !
शाम ढले मोहे पनघट पर
काहें तू रोज़ मोहें बुलायो रे !
सुध -बुध बिसरायी
मोहें लाज न आयी
बरबस ही मैं खिंची चली आयो रे !
लुका-छिपी न अब खेल तू
अब तो तू मोहें दरश दिखायो रे !
लोक -लाज सब बिसरायी
सारे बंधन मैं तोड़ के आयी !

प्रीत की अगन ,जो तूने लगायी

अब कौन उसे बुझायो रे ?
सब डगरिया मैं भूल गयी
बस , तोरी ही डगरिया मोहे भायो रे !
अब तो तू गरवा लगा ले मोहे
अब और न मोहे तू तरसायो रे !
एक बार जो मिलन हो तोसे

भव-सागर तर जायो रे !!! शोभा



गुलाब



 मेरी डायरी में एक गुलाब है
ये एक खूबसूरत सौगात है
भेंट किया था किसी ने कभी
तब ये कितना खिला हुआ था
रंग भी इसका सुर्ख लाल था
अब ये सूख चुका है
खुशबु फिर भी इसकी ..
मेरे जेहन में अब भी ताज़ा है
जान से भी ज्यादा अज़ीज़ है ये मुझे
जब कभी भी डायरी खोलती हूँ ..
खूबसूरत ख्यालों में खो जाती हूँ
इस डर से की ,बिखर न जाये इसकी पंखुड़ियां कहीं ...
डायरी के पन्ने आहिस्ता से पलटती हूँ ...:):) <3 <3  शोभा

वात्सल्य की प्रथम अनुभूति



 नींद में भी तुम्हारे करिश्में देखने को
सारी -सारी रात मैं जगती रहती
कभी नींद में तुम हलके से मुस्कुराते
तो मैं भी मुस्कुरा पड़ती
कभी अचानक ही तुम सिसकियाँ भरने लगते
तो मैं सहम जाती
याद है मुझे आज भी वो तुम्हारा पहला संकेत
जब तुमने अपने होने का अहसास मुझमे जगाया
रोम-रोम मेरा पुलकित हुआ
एक अलग अहसास तुमने मुझे दिया
अंकवार में जब-जब तुम्हें भरती हूँ

बस ... क्या कहूँ ?
 किस दुनिया में मैं होती हूँ !!!!

शोभा