Friday, December 28, 2012

दामिनी है

रोई नहीं थी
तड़पी नहीं थी
बेबस  नहीं थी

न दर्द
न कराह
वो लड़ रही थी

दुस्साहसियों के साहस
पस्त कर रही थी
चीख नहीं
फ़रियाद नहीं
एक ललकार थी
अब सब जाग जाओ
पुकार थी

देह नहीं
दामिनी है
भीतर कुछ मरा था
वहाँ जिन्दा है
कहीं गयी नहीं
जाने भी मत देना
उसे जिन्दा रखना
सब मिलकर
खुद से एक वादा करना .....

Monday, December 10, 2012

अनुभूति

दिल्ली में अक्सर रोड रेज़ की घटनाओं की खबर देख सुनकर डर सा लगता है लेकिन आज जब मैं ऑटो से घर आ रही थी तो रेड लाइट पर तीन महिलाओं को आपस झगड़ते देखकर बस यूँ ही मुस्कुरा पड़ी, बस के लिए वेट कर रही तीनों महिलाऐं परिधान से उ.प्र के गाँव की लग रहीं थी, दो महिलाऐं बैठी थी , एक महिला खड़ी थी,  जो महिला खड़ी थी वो बैठी हुई महिलाओं की तरफ बार-बार झुक कर अपने दोनों हाथों को सुखोई जहाज़ के कलाबाजियों की तरह घुमा-घुमाकर कुछ कह रही थी, बैठी हुई महिलाऐं भी कभी एक दूसरे की तरफ देखकर अपनी गर्दन कठपुतली की तरह हिला-हिलाकर कुछ कहती , कभी सामने खड़ी महिला की तरफ कुछ यूँ उचककर  आगे बढ़ जातीं जैसे उसे अभी पीट देंगी  .
     इस झगडे में सबसे अच्छी बात मुझे उनका कभी चिड़िया के पंख  की तरह हाथ हिलाना और कभी बौराई गाय की तरह सर झटकना लग रहा था. हमारे उत्तर प्रदेश में जब लड़की का विवाह होता है तब विवाह संपन्न हो जाने के बाद लड़के पक्ष के पुरुष मंडप  का बंधन खोलतें हैं जिसे माड़ो हिलाना भी कहा जाता है, उस समय घर की महिलाऐं गारी (गाली)गातीं हैं, गारी गाते समय उन महिलाओं का हाथ भी बस स्टॉप पर झगड़ती महिलाओं के हाथ की तरह ही नाचता हुआ नज़र आता है.
   जब ट्रैफिक लाइट का सिग्नल ग्रीन हुआ,  ऑटो आगे बढ़ा तो मैंने महसूस किया कि मैं उन्हें देखकर कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी, बगल में मर्सडीज़ कार में बैठे एक सज्जन पर मेरी निगाह गयी , वो मुझे कुछ आश्चर्य भरी नज़रों से देख रहे थे, जिसमें मैं बैठी थी वो ऑटो अपनी रफ़्तार पकड़ चुका था , ऑटो के साइड मिरर से मैंने देखा उन महिलाओं की भी बस आ गयी थी और वे सभी जल्दी-जल्दी उसमें बैठ रहीं थीं ....:) 

Thursday, December 6, 2012

चहक

अदृश्य है
विलुप्त नहीं हुई हैं
बस उड़ गयीं हैं एक मुंडेर से
किसी आँगन के पेड़ से
संकेत बुरे हैं उस मकां के लिए
उस पेड़ के लिए
तिनका-तिनका जोड़कर
जिसमें बनाया था उसने आशियाँ

चहक कहीं गूँज रही है
एक गाँव की हर मुंडेर आबाद है
हर पेड़ पर उनका  चंबा है
उनका अपना आसमाँ
और ऊँची उड़ान है 

Saturday, November 24, 2012

तपती धूप में छाँव

हम कभी-कभी अपनी निजी ज़िन्दगी में इतने व्यस्त हो जातें हैं कि अपनी माँ को भी फ़ोन करना भूल जातें हैं , आज पूरा दिन   कुछ उलझनों .. दुविधाओं भरा बीता, शाम होते-होते लगा कि जल्दी से मम्मी से बात करूँ, कुछ काम निपटाकर बात करने कि सोच ही रही थी कि तभी मम्मी का ही फ़ोन आ गया, बहुत कुछ आँखों  में छिपाकर  उनसे  बात करती रही और बार-बार उन्हें यही कहती रही कि कुछ दिन के लिए आप मेरे पास आ जाइए, उनसे बात करते हुए यही सोच रही थी कि काश ... अब भी मैं छोटी बच्ची  ही होती ( छोटे बच्चे अपनी माँ से सब भावनाएं व्यक्त कर लेतें हैं, जैसे रोना,जिद करना) .
   मम्मी से बात  करने  के  बाद  फेसबुक लॉगइन किया  तो एक प्यारे दोस्त का प्यारा सा संदेस  देखकर मन खुश हो गया, फिर कुछ देर हम दोनों .... "ओक्का--बोक्का तीन -तडओक्का "
"अटकन-चटकन दही-चटाकन"
"चिउंटी के झगडा छोडाहिया बड़का मामा"
...वाला खेल खेले ..:)
गाँव में जब घर में नया धान  लाया जाता है तो उसे कूटकर  उस चावल के आंटे में दाल की पीठी भरकर  भपारी   देके गाँव एक व्यंजन बनता  है, उसे हमारे गाँव में 'गोझा-पीठा' कहतें हैं , उसके गाँव में चेउआ कहतें हैं ...   हमने उस व्यंजन की बात की.
लिट्टी-चोखा की बात की.
अनाज रखने के लिए मिटटी की बड़ी-बड़ी डेहरी की फोटो देखकर उसके पीछे छिपकर आइस-पाइस खेलना याद आ गया
उस प्यारे दोस्त ने मुझे शहर की घुटन भरे वातावरण में ...गाँव की ताज़ी, खुली हवा की सैर करा दी ...

" तपती धूप में छाँव है
 तुम   हो   तो
 शहर में भी गाँव है "

(शोभा )

Friday, November 16, 2012

इंसान कहाँ था

दिल ने जो महसूस किया
वो .....सच था
आँखों ने जो देखा
वो...... विश्वास था
दिमाग़ ने कुछ समझा
वो थी ....दुविधा

क्या गलत था ..!!!

जो महसूस किया
या .... जो देखा

इस देखने
सोचने
समझने में
इंसान कहाँ था .... !!!
( शोभा )

Monday, November 12, 2012

तेरी वफ़ा



1- 

Sunday, October 14, 2012

एक मिसाल -मलाला

पहले तालीम से  डरे
नन्ही गुड़िया की कलम से डरे

हुकूमतें तुम्हारी क्यों हिलने लगी ?
नहीं बंद रही वो
घर की दहलीज़ के भीतर
नहीं रही  सिमटी
तुम्हारे बिस्तरों के सिलवटों में

विस्तार दे रही थी 
अपने पंखों को
मिशाल बन रही थी
घोसले में सहमी फर्गुदियाओं के लिए
तुम्हारी सत्ता को ललकार नहीं रही थी
अपने वजूद का निर्माण कर रही थी

बुज़दिल !
छिपकर निशाना साधते हुए
रूह न कांपी तुम्हारी
क्या कुसूर था उसका ?
अमन पसंद उसने कलम से आवाज़ उठाई
आग उगलती गोलियों से
कर सकोगे उसकी आवाज़ बंद ?
स्याह अक्षरों ने आगाज़ किया है
तुम्हारा वजूद स्याह करने के लिए ..!!!

(शोभा)

रंग



मेरे ख्वाबों के रंग से

तुमने रंग दी हैं घर की दीवारें

तुम्हारी शर्ट और दीवारों का रंग एक ही है

हल्का आसमानी .. छोटे चेक वाली शर्ट

शर्ट का रंग भी तो मैंने ही पसंद किया था

इन्द्रधनुष के रंग के फ्रेम में मढ़कर

हमारी मुस्कुराती हुई तस्वीरें भी सजा देना

तुलसी,रातरानी,पाम और मनीप्लांट के गमले

बालकनी में करीने से सजा देना

मेरे जीवन की पहली दिवाली

खूब रौशनी करके इस 'घर' को देखूंगी

मेरे ख्वाबों के घर को तुमने जो सजाया है ....

Saturday, October 13, 2012

महफ़िल



सजतीं हैं महफ़िल

चमक उठतें हैं कुछ चेहरे रौशनी में

चमकते सितारे आसमाँ में नज़र आतें हैं

सूनी ..महफ़िल...अंधेरों में .. वीरान.. रह जाती है ..!!

Wednesday, October 10, 2012

"गौरईया"

गौरैया

उसी शहतूत का पेड़ पर जिसके  आस-पास  पापुलर, मेहँदी, आम के पेड़ भी हैं !  एक धीमी आवाज़ सुनाई दे रही है कभी - कभी लेकिन वो नज़र नही आई ! 
कुछ साल पहले वो सुबह शाम आती  थी अपने झुण्ड के साथ ! खूब मधुर कलरव सुनाई देता था !   सुबह रसोई की व्यस्तता के साथ ही मैं चहकने लगती थी उनकी चहक सुनकर !   उनके लुकाछिपी के खेल में मैं भी शामिल हो जाती !  कभी वो सभी ऐसे शांत हो जातीं जैसे छिप गयीं  हों अपनी अलग अलग कोई शाख ढूंढकर !  फिर अचानक ही जोर से ऐसे  चहचहाने लगतीं मानो लुकाछिपी के खेल में किसी  शाख के पीछे से  अपनी सखी को ढूंढ  लिया हो और बाकी सारी सखियाँ फुदक-फुदककर खुश हो रहीं हों ! कभी वो एक साथ  धीमी आवाज़  में कुछ ऐसे बातें करतीं जैसे अपनी  दिनचर्या तय कर रहीं हों ! कुछ देर यूँ ही हरे - भरे शहतूत पर खेलकर  और शरारतें करके वो एक साथ कहीं उड़ जातीं !  उनके जाने के बाद शहतूत का पेड़ नौनिहालों  के खेलकर जाने के बाद बिखरे  आँगन - सा  खुश नज़र आता !
   अब अक्सर शहतूत के पेड़ पर उनमें से किसी की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन वो  नज़र नहीं आती  !  आज फिर उसकी आवाज़ सुनाई दी !  गौर से देखने पर वो अपने एक साथी के साथ नज़र आई लेकिन बहुत  उदास  लग रही थी !  शाख-शाख पर घूमकर वो और उसका  साथी कुछ देर कुछ ढूंढते रहे ! ठूंठ हो चुकें पापुलर के पेड़ से एक गिलहरी भी उन्हें निहारती रही, कुछ कहती रही ! शहतूत के पेड़ के ऊपर के आसमान से  कुछ कौवे उड़ते हुए उन्हें निहारते रहे ! बुलबुल का एक जोड़ा भी चुपचाप उन्हें उत्साहपूर्वक देखता रहा ! कुछ देर बाद शहतूत के पेड़ पर फिर वही उदासी छा गई  ! वो अपने साथी के साथ उड़ गई !  गिलहरी,कौवे,बुलबुल भी कहीं चले गए .....
  हाँ .... आज सुबह एक गौरैया आई थी अपने साथी के साथ दूसरे साथियों को तलाशने,  उसी शहतूत के पेड़ पर जो मेरी खिड़की से नज़र आता  है ..........

(गौरैया के साथ कभी एक सुबह ) 
  (  मेरे घर की खिड़की से नज़र आता दृश्य ... जो कभी चहकता था ... आज उदास नज़र आता है )

शोभा
११/१०/२०१२ 

Monday, October 8, 2012

"रेड लाइट पर बिलखती भूख"




तथाकथित कवयित्री

असफल प्रयास करती है

गरीबी पर कविता लिखने का




ए सी रूम से निकलकर

ए सी गाड़ी में बैठकर

कविता-पाठ करने वाली

कवयित्री लिख नहीं पाती है

जेठ की धूप में रिक्शा चलाते


रिक्शेवाले का दर्द




बर्गर , पिज्ज़ा की शौक़ीन कवयित्री

नहीं लिख पाती

खाली बटुली से गरीब के पेट में

भूख से खदबदाता

पेंदी में बचा पाव भर अदहन




मखमली बिस्तर पर

गहरी नींद बेसुध सोने वाली कवयित्री

नहीं लिख पाती

फुटपाथ पर करवट बदलते

नौनिहालों की जागती रातें




एक भूख से बिलखता अपाहिज

याचना करता रहा चार पैसों के लिए

उसे फटकारती

अपनी कार के शीशे चढ़ाती

घर जाकर लिख देती है

एक सफल कविता




"रेड लाइट पर बिलखती भूख "


(शोभा) 

Sunday, September 30, 2012

'कृतिम' 'चाँद'



तुम्हारा दावा है

सात फेरों वाली

तुम्हारी कविता

तुम्हारी सात बेड़ियों में

सुरक्षित है




सात परतों में उसे छिपा

तुम सराहते हो उन्हें

जो तुम्हारी नज़रों में

'निरंकुश' कविता है





सराही जाती है तुम्हारी

दोहरे मानसिकता वाली कविता

'कृतिम' 'चाँद' के रूप में ..!!

Friday, September 28, 2012

बात कुछ भी नहीं थी

बात कुछ भी नहीं थी
बस ..
आस-पास का माहौल
...कुछ ठीक नहीं था
हर तरफ
धोखे की कहानियों सा
कुछ बिखरा हुआ था
कुछ देर की तुम्हारी चुप्पी
कहानी के बेवफा किरदार की
झलक सी दिखाई दी

शायद तुम जान गए थे
इस उदासी की वजह
तभी तो तुमने चुप्पी तोड़ी
क्या करते हम गिला -शिकवा
चुप ही रहे
तुम्हारे भीतर कुछ भीग गया
उदासी की वजह हम बने
शायद इस बार भी
आख़िरी न हो
फिर भी
एक और बार
कर दो
मेरे गुनाह माफ़ ..

Wednesday, September 26, 2012

सुन री सखी !

सुन री सखी !

आज भी याद है मुझे
स्कूल यूनिफ़ॉर्म की
मटमैली शर्ट
बिना प्रेस की नीली स्कर्ट
सर पर बकरी के सिंग की तरह
चोटी में लगा उधरा हुआ लाल रिबन
क्लास की सबसे आगे की सीट पर
विराजती थी तुम पढ़ाकू  बनकर
 पीछे वाली सीट पर बैठकर
तुम्हारी शर्ट पर मैंने चिड़िया..कौवा
और तुम्हारा ही कार्टून खूब बनाया
लंच टाइम में तुम्हारी शर्ट देखकर
आँखों ही आँखों में इशारा कर
खूब हँसती थी सब सखियाँ
लाख पूछने पर भी कोई मेरा नाम नहीं लेती थी
दबंगयीं से हमारी डरती जो थी
खुर्राट मैडम कक्कड़ से
मुझे डांट पिलाने की
तुम्हारी सारी कोशिशें बेकार जाती
बिना सुबूत छोड़े तुम्हें छेड़ने का
एक भी मौका मैं नहीं छोड़ती
सच .. मुझे कितना मज़ा आता था
तुम्हारा हताश झुंझलाया हुआ चेहरा देखकर
तुम आँखों ही आँखों में मुझसे कह देती थी
"कभी तो तुम्हें ढंग से मज़ा चखाकर ही रहूंगी"
मैं भी शरारती मुस्कान उछालकर
अपनी आँखें गोल-गोल नचाकर
तुम्हारा चलेंज़ स्वीकार कर लेती
हमारे शीतयुद्ध के चर्चे
अक्सर स्कूल में होते रहते
लड़ते -झगड़ते हम जरुर थे
लेकिन मन से  जुड़े थे
एक के स्कूल न आने पर
दूसरा कुछ खालीपन जरुर महसूस करता था

फिर वो भी दिन आया
एक नयी दुनिया में हम अलग-अलग रहने लगे
गृहस्त जीवन .. परिवार .. बच्चे
हमारी सोच परिपक्व हो गयी थी
सखियों- सहेलियों से मिलना सपने की बात थी
हाँ .. एक दूसरे को याद बहुत करते थे
बचपन के शरारती झगड़ों को यादकर
खुश हो लेते थे
काश .. कि एक बार मिलते
तो पुराने गिले-शिकवे दूर कर लेते
मैं यही सोचती थी
शायद .. तुम भी

लेकिन हमें तो मिलना ही था
एक दिन एक नयी किताब मिली
चेहरे - चेहरे खेलने वाली
उस किताब में तुम भी नज़र आई
हम दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था
पढाई की बातें .. घर-परिवार की बातें
कुछ दिन होती रही
चेहरे की किताब पर .. लिख-लिखकर
लेकिन  हम  साथ  हों
और शरारत भरे झगड़ें न हों
ये कैसे हो सकता है
इस बार झगडे की वजह बनी
वो भिंडी की सब्जी
जो परोस दी थी तुमने
चेहरे की किताब पर
वैसे ....सच बताएं
दिखने में टेस्टी तो बहुत लग रही थी
लेकिन राजस्थानी भिंडी की बुराई हमने
तुम्हें छेड़ने के लिए की थी
तुम अपनी पुरानी आदत के अनुसार
छिड़ भी गयीं ...:)
फिर क्या था ..
सबको दिखाने के लिए हम खुश होकर
लिख -लिखकर भिंडी का स्वाद लेते रहे
और पिछली गली(इन्बोक्स) में
जमकर लड़ते रहे
चटपटी भिंडी जैसे झगड़े के स्वाद को
बीच में ही छोड़कर
अपने "उनके" आने का
बहाना करके
और फिर कभी मुझसे बात न करने की
धमकी देकर चली गयी
और मैं बस मुस्कुरा भर दी
सच कहूँ ..
तुम्हें देखते ही
शरारत सूझ जाती है
फिर एक बार
बहुत दिन से तुमसे मुलाकात नहीं हुई है
वो झगड़े वाली मुलाकात
कब होगी ..
बताना तो ..:)

शोभा 

Saturday, September 22, 2012

निमिया चिरईया

फूलों की क्यारियाँ
लताओं,बेलों से ढंके दरख्त
महकती हवाएं
पत्तों की सरसराहट ...
हठात,
'इसकी' चहक सुनकर
दो जोड़ी आँखें भी चहकी
और एक हो गयीं
बरबस ही ........
उनकी हाथों की उंगलियाँ
आपस में उलझ गयीं
ईश्श्श्श ..... की एक मधुर आवाज़
फिजाओं में गूंज  गयी
अपने 'प्रिय' के होठों पर
ऊँगली रख
बस वो निहारती रही
~ ~ ~ "इसे" अपलक
(शोभा)

23/9/12

Thursday, September 6, 2012

तुम्हारे खत




अचानक से हाथ लगे आज खत तुम्हारे
खुले तो मानो एक दुनिया खुल गयी मेरे सामने 
गुजरे वक्त के समंदर लांघ 
जाने कब पहुँच गयी बीते अ -तीत में
खत में तुम हो 
तुम्हारा गुस्सा है 
शिकायतें हैं
सबसे ज्यादा हैं विरह के नुक्ते और प्यार के हर्फ
खत रंगा है अलग अलग भाव से
सारे भाव पढ़ते मेरे होठों पर बस मुस्कुराहट है
आखिरी खत की तारीख देख
भीग गयीं पलकें
सुनो ..
एक खत फिर लिख के भेजो न !

शोभा
६/८/12

Monday, August 27, 2012

आत्मविश्वास

वो घर में अकेली खुद को अवसाद की स्थिति से निकलने की कोशिश कर रही थी ..... सुबह की भागदौड़ .. एक छोटी सी गलती पर इतने चुभते हुए शब्द उसे सुनने पड़े .. एक उम्र गुजार दी उसने उन दीवारों में जिसमें से वो सुबह के सूरज की नर्म धूप तो शायद ही कभी महसूस कर पाती थी .. हाँ ... चूल्हे की विचलित कर देने वाली ताप ..छौंक की घुटन और कुछ देर बाद ही अपने शरीर से निकले पसीने की दुर्गन्ध से उसका रोज ही साक्षात्कार हो
 जाता था ..
सुबह का समय .. सबके अपने अपने लक्ष्य निर्धारित थे .. मशीन बने सब अपने लक्ष्य की ओर भाग रहे थे .. किसे फिक्र थी उसकी .. माइग्रेन की मरीज़ उसने दिन चढ़े ग्यारह बजे तक कुछ खाया नहीं .. उसके खाली पेट में जब तेज़ाब बनेगा उसकी तीव्र जलन उसके सर तक पहुंचेगी .. तब या तो वो अकेली उससे जूझेगी ...या खा लेगी वो गोली जो उसे सर दर्द से तो छुटकारा देगी .. लेकिन उसकी खाली आँतों में एक नासूर भी जन्म देकर जाएगी ...
खाली घर .. अकेली कुछ देर सुस्ताते हुए उसने उसे फ़ोन किया ... उसके भी एक एक शब्द उसे यूँ लगे जैसे उसका उसके प्रति प्यार नहीं ..एक असहाय .. दुखयारी औरत के प्रति अपनी संवेदनाये जता रहें हो ... अपने प्रति मन में घृणा का भाव लिए ये सोचती हुई क्या तलाश कर रही है अपने लिए .. वो सब कुछ तो है उसके पास जो देखकर समाज उसे सुखी समझता है ... जो खालीपन और दुःख उसके जीवन में है वो तो खुद वो ही महसूस कर सकती है ... किसी को दिखा नहीं सकती ...? यही सब सोचते हुए वो उनींदी में चली जाती है ..
डोरबेल की आवाज़ से उसकी नींद खुलती है .. दरवाजा खोलती है .. सामने कुरियर वाले को देखकर ये सोचते हुए लिफाफा उसके हाथ से ले लेती है कि फ़ोन का बिल होगा .. लेकिन लिफाफे पर सेंडर का नाम देखकर हर्ष और चकित कर देने वाला भाव अपने चेहरे से छिपाते हुए जल्दी से रिसीप्ट पर सिग्नेचर करती है और दरवाजा बंद करके जल्दी जल्दी लिफाफा खोलती है ..ये कुरियर उसी के लिए था ...लिफाफा खोलते ही एक ख़ुशी खाली घर में ज़ोर की आवाज़ के साथ गूंजती है ...उसी घर में जहां कुछ देर पहले मृत्युतुल्य सन्नाटा फैला हुआ था ... वो खुद को जवाब देती है तुम्हारा अपना अस्तित्व है .. तुम्हारा भी अपना एक लक्ष्य है .. कोई हो न हो समय तुम्हारे साथ है ... अपना आत्मविश्वास मत डोलने देना .. लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढती जाओ ....

( ज़िन्दगी में दुःख ..धूप छाँव की तरह हैं .. समय समय पर वो ताप और शीतलता का अहसास देती रहती है )

Sunday, August 12, 2012

"चलो, लौट चलें.."



Saturday, July 14, 2012

******* एक थीं भंडारिन *******


******* एक थीं भंडारिन *******

आज बिरझन बहुत सहमा हुआ था,उसके लिए बड़ी असमंजस की स्थिति खड़ी हो गयी थी, पिटहौरा गाँव के ज़मींदार महावीर प्रसाद राय ने उन्हें इस बार धमकी दे डाली की उनकी बेटी शकुंतला का रिश्ता  जल्द ही उसने रणवीर शाही  के बेटे से तय नहीं करवाया तो गाँव में उसका और उसके परिवार का जीना हराम कर दिया जाएगा |  
भूमिहारों, ठाकुरों, ब्राह्मणों के घर के रिश्ते तय करवाना बिरझन का काम है, देवघाट गाँव के लोग उसे बिचवानी कहकर संबोधित करतें हैं, ठाकुर रणवीर  शाही देवघाट के बहुत ही समृद्ध जमींदार हैं बिरझन भी इसी गाँव में रहता है , नज़दीक के गाँव पिटहौरा के ज़मींदार महावीर प्रसाद अपनी बेटी के विवाह को लेकर काफी चिंतित थे  क्योकि उनकी बेटी का रंग थोडा सांवला था , हलाकि बेटी शकुंतला की उम्र अभी ज्यादा नहीं थी लेकिन आज से सौ साल पहले गाँव के समृद्ध ज़मींदार और धनि लोग इस उम्र तक अपनी बेटियों को ब्याह देने में ही अपनी शान और इज्जत समझते थे , कई गाँवों से बहुत से रिश्ते आये लेकिन बेटी का रंग सांवला होने की वजह से हर तरफ से इनकार ही सुनने को मिला , विवाह भी अपनी हैसियत के बराबर वालों में ही करना था , ऐसे में किसी ने उन्हें देवघाट के ज़मींदार रणवीर शाही के बेटे चन्द्रकेश साही का नाम सुझाया , अपने बराबर की हैसियत रखने वाले रणवीर शाही के बेटे का रिश्ता महावीर प्रसाद को अपनी बेटी के लिए बहुत अच्छा लगा, इस बार वो किसी भी सूरत में ये रिश्ता हाथ से गंवाना नहीं चाहते थे, रिश्ते की बात आगे बढ़ने के लिए बिचौलिए का होना बहुत जरुरी होता है इसलिए उन्होंने देवघाट के बिचौलिए  बिरझन का पता करवाया और उसपर दवाब डाला की हर हाल में वो ये रिश्ता तय करवाए , पहले तो बिरझन ने इनकार किया, फिर उसे महावीर प्रसाद के लठैतों द्वारा धमकाया गया, अपने परिवार के जान की सलामती के लिए मजबूरन बिरझन ने विवाह की बात पक्की करवाने की सहमती दे दी और महावीर शाही की बेटी के रिश्ते की बात लेकर रणवीर शाही के घर गया, एक ही बार में रणवीर शाही को अपने बेटे के लिए महावीर प्रसाद की बेटी का रिश्ता पसंद आ गया, अब बारी थी बहु देखने की |
       आज से सौ साल पहले ( गाँव में कहीं कहीं आज भी ) गाँव में लड़के वालो द्वारा सीधे सीधे लड़की देखने की प्रथा नहीं थी , लड़के वालों का कोई करीबी जानकार या खुद बिचौलिया भिक्षुक या गडरिये का भेष बदलकर लड़की देख आते थे | महावीर प्रसाद की बेटी को देखने की जिम्मेदारी बिरझन को दी गयी, बिरझन जिसे सब कुछ पहले से ही पता था, फिर भी भीखारी का वेश धरकर वो लड़की देखने गया और वापस आकर उसने रणवीर शाही को ये ही कहा की लड़की बहुत सुन्दर और सुशील है, रणवीर शाही के बेटे चंद्रकेत शाही ने भी बिरझन से अकेले में ये प्रश्न किया की लड़की कैसी है , उनको भी बिरझन ने यही जवाब दिया की लड़की बहुत सुन्दर और सर्वगुण संपन्न है |
          सब कुछ तय हो गया , विवाह की तैयारियाँ जोर शोर से होने लगीं , दो ज़मींदार रिश्ते में बंध रहे थे, विवाह की तैयारी में दोनों परिवार अपनी शान-शौकत दिखने की होड़ में लग गए , दोनों के गाँव में विवाह की खबर फ़ैल गयी |
चन्द्रकेश शाही के सामने एक सुन्दर, सुघड़ लड़की का चेहरा उभर आया , उनके बचपन  के दोस्त रबिन्द्र राय का अभी हाल ही में ब्याह हुआ था , अक्सर रबिंदर उससे अपनी दुल्हिन की सुन्दरता की बात करता था, चन्द्रकेश की माँ रबिंदर की दुल्हिन देखकर आयीं थीं तो चन्द्रकेश से उन्होंने दुल्हिन के  रूप का बखान कुछ इस तरह किया था .....  
" ए बाबू ! दुल्हिन के रंग ता ईसन बा जैसे दूधे में चुटकी भर सेनुर छीट दिहल गईल हो, मोट-मोट आँख , पातर ओठ , आ बाल कमर तक " , हम अपने जीवन में एतना सुन्दर दुल्हिन पहिली बार देखले बानी "  
ये सोचकर चन्द्रकेश शाही बहुत खुश थे की अब उनकी दुल्हिन गाँव की सबसे सुन्दर बहुरिया होगी, परिवार और दोस्तों से अलग अब चन्द्रकेश शाही हर समय एकांत ढूँढने लगे , रात को छत पर अकेले सोते और अपनी भावी पत्नी की कल्पना में खोये रहते , दिन में बिरझन को तलाशते रहते और मिलने पर किसी न किसी बहाने से शकुन्तला की बात करते |
     नाबालिक भावी वधु  भी बहुत खुश थे , बेटी शकुंतला तो अपने पिता की ख़ुशी से खुश थी क्योकि अपने आपको स्वयं भी वो अपने पिता की बहुत बड़ी जिम्मेदारी समझती थी, वो खुश थी की उसके पिता अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेंगें |
       वो दिन भी आ गया जब विवाह होना था, गाजे-बाजे से सजे भव्य बारातियों और दुल्हे के साथ रणवीर शाही बारात लेकर महावीर प्रसाद के घर गए, विवाह की रस्में शुरू हुईं , द्वारचार के बाद दुल्हे को घर के आँगन में बने मंडप में ले जाया गया, कन्यादान और विवाह की दूसरी रस्मों के बाद सिंदूरदान की रस्म अदायगी करते समय दुल्हे चन्द्रकेश शाही ने दुल्हन शकुंतला का पहले हाथ और फिर हलकी सी झलक उसके चेहरे की भी देख ली , चन्द्रकेश शाही स्तब्ध रह गए उनसे न मंडप में बैठते बन रहा था न वहाँ से उठते, लेकिन मन ही मन वो कुछ संकल्प ले बैठे थे , विवाह संपन्न होने के बाद बिना दुल्हन के ही रणवीर शाही और बाराती गाँव देवघाट आ गए , दुल्हन को विदा कराकर इसलिए नहीं लाये क्योकि अभी गौने की रस्म बाकी थी जो की विवाह के तीन वर्ष बाद होनी तय हुई थी |
     घर वापस आकर चन्द्रकेश शाही ने जब अपने पिता को ये बात बताई की शकुंतला का रंग सांवला है तो रणवीर शाही के साथ साथ घर के सभी सदस्यों की त्योरियां चढ़ गयीं , सभी बिरझन को कोसने लगे , बिरझन का तो रणवीर सिंह  के लठैतों  ने बुरा हाल किया, लेकिन अब वो करते भी क्या , विवाह तो हो चुका था , अब शकुंतला उनके घर की बहु थी |
इधर जिद्दी चन्द्रकेश शाही ने घर के सभी सदस्यों को अपना फैसला सुना दिया की शादी तो उन्होंने कर ली है लेकिन गौना करवाने वो नहीं जायेंगें और किसी भी कीमत पर वो शकुंतला को अपनी पत्नी नहीं मानेंगें, घर के सभी सदस्यों ने उन्हें बहुत समझाया की अब वो जैसी भी है तुम्हारी पत्नी है लेकिन उन्होंने एक की भी नहीं सुनी, बाद में रणवीर सिंह ने अपने बेटे को यही कहकर शांत किया की "गौने को अभी बहुत साल है .. देखा जाएगा .. तुम अभी से दिल छोटा मत करो "रणवीर सिंह ने सोचा की कुछ दिन में वो अपने बेटे को समझा लेंगें समय बीतता गया, विवाह को दो साल हो गए थे , अपने गौने के दिन करीब आता  देख शकुंतला बहुत खुश थी , अक्सर उसकी  सखियाँ उसके दुल्हे की बात लेकर उसे छेड़ा करतीं |
   एक रात चन्द्रकेश शाही की तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ गयी, उनके पेट में बहुत जोर का दर्द उठा , पूरी रात उनको कुछ घरेलु और आयुर्वेदिक दवाइयां दी जाती रहीं, उनको अस्पताल ले जाने के लिए सभी को भोर होने का इंतज़ार था लेकिन भोर होने तक चन्द्रकेश शाही जीवित नहीं रहे ..उनकी अकस्मात् मृत्यु हो गयी, अकस्मात् आई इस विपदा से पूरा घर स्तब्ध था |
        चन्द्रकेश शाही की मृत्यु की खबर महावीर प्रसाद के घर पहुंचाई गयी, सभी के लिए ये बहुत विकत की घडी थी , शकुंतला तो न रो सकी और न ही अपनी व्यथा किसी से कह सकीएक तरह से अब वो बिन ब्याही विधवा थी |

     शकुंतला का संघर्ष
चन्द्रकेश शाही तो पहले ही गौने के लिए इनकार कर चुके थे, रणवीर सिंह ने भी अब शकुंतला के गौने के बारे में सोचना बंद कर दिया था , और एक लम्बी चुप्पी साध कर बैठ गए थे |
उधर महावीर प्रसाद के घर में इस बात को लेकर विचार- विमर्श होने लगा की शकुंतला का गौना कराकर उसे ससुराल भेजा जाए या नहीं, घर की स्त्रियाँ शकुंतला का गौना करवाने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन पुरुषों का ये कहना था की अगर गौना नहीं करवाया गया तो सारी ज़िन्दगी उसे घर में कैसे बिठाये रखेंगें , गाँव के लोग क्या कहेंगें .. उनके गाँव और आस-पास के गाँव में घर बिठाये बेटी की वजह से उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे में कमिं आ जायेगी |
    एक दिन महावीर प्रसाद और रणवीर शाही ने मिलकर ये निर्णय ले ही लिया की शकुंतला का गौना होगा, अपनों द्वारा अपने भाग्य और भविष्य का फैसला शकुंतला छिप-छिपकर सुनती,देखती रही .. इस फैसले में  किसी ने भी उसकी राय लेना उचित नहीं समझा |
      रणवीर शाही कुछ लोगों को साथ लेकर पिटहौरा गाँव गए और बहुत ही सादे ढंग से शकुंतला का गौना कराकर अपने घर ले आये | पति की मृत्यु के बाद एक कलश से गठबंधन कर शकुंतला का गौना करवाया गया , वो लाल जोड़े में विदा नहीं हुई, एक साधारण सी हलके रंग की साड़ी पहनाकर कलश से गाँठ बांधकर उसे उसके अपनों ने इस तरह घर की चौखट के बाहर धकेल दिया जैसे घर की सफाई के बाद घर की गन्दगी से भरे भारी बोरे को बाहर घसीटकर फेंका जाता है|
शकुंतला की माँ मुह में साड़ी का पल्लू ठूंसकर अपनी हिचकियाँ रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी, बिटिया शकुंतला की  कलशे से गाँठ बांधते हुए उसकी भाभी और सखियाँ भी अपनी सिसकियाँ दबाने की भरसक कोशिश कर रही थी | पत्थर जैसी बुत बनी शकुंतला को मटमैले रंग के किनारे वाली सूती साड़ी पहनाई जा रही थी| सुनी मांग , आँखें लगातार शुन्य में कहीं ताकते हुए काले स्याह घेरे से घिरी आँखें मानों किसी से लगातार पूछ रही हो की ये कैसी विदाई है ..? ना दूल्हा ,ना डोली , ना कंहार, ना लाल जोड़ा ..| कहाँ जा रही है वो विदा होकर ...? किसके भरोसे अपना जीवन यापन करेगी ..?
     आखिरकार जब उसे चौखट की देहलीज लंघवाया जाने लगा तब उसके सब्र का बाँध टूट पडा, पीछे मुड़कर अपनी माँ को देखकर को दहाड़े मारकर रोने लगी, माँ राजलक्ष्मी का कलेजा भी फट पड़ा, जिन हिचकियों को वो रोकने की कोशिश कर रही थी वो एक दर्द भरी चीत्कार में बदल चुकी थी | भाभी , सखियाँ और गाँव की औरतें सभी एक साथ हृदयविदारक रुंदन करने लगीं , रोटी बिलखती शकुंतला को उसके भाई और पिता संभालकर  ले गए और जीप में बैठाकर उसे विदा किया|
 वो रोती बिलखती अपने ससुराल आ गयी, घर की दूसरी औरतों को उसके साथ पूरी सहानुभूति थी लेकिन उन सभी की नज़रों में वो अपशगुनी थी, रसोईघर के पास भंडारघर में शकुंतला का बिस्तर लगा दिया गया और खाने के लिए सूखी रोटी और बिना छौंकी दाल दी गयी |
सामने रखी खाने की थाली को देखती , अपने भाग्य पर आंसू बहाती , बिना पति के ये कैसा विवाह है ..? किसके भरोसे वो इस घर में रहेगी ..? कुंवारी , ब्याही या विधवा .. क्या समझे अपने आपको ..? खुद से यही सवाल करती रही और पता नहीं कब शकुंतला को नींद आ गयी |
     करीब हफ्ते भर बाद घर की बड़ी बूढी औरतों द्वारा शकुंतला को भंडारघर और रसोई के बारे में समझाया गया , शकुंतला ने रसोईघर संभाल लिया , अब तो शकुंतला का सारा दिन रसोईघर में परिवार के पंद्रह बीस लोगों का खाना बनाने में बीतने लगा , रात को भंडारघर के कच्ची मिटटी के फर्श पर चटाई बिछाकर वो सो जातीं, घर में सभी उन्हें भंडारिन कहकर संबोधित करने लगे, धीरे- धीरे करीबी रिश्तेदार उसके बाद गाँव के सभी लोग उन्हें भंडारिन नाम से ही जानने लगे , उनका वास्तविक नाम कोई नहीं जनता था |
     समय बीतता गया .. मायके से बोझ समझकर निकाली गयी भंडारिन का ससुराल में आसरा भी बोझ संझ्कर ही मिला, घर उनकी स्थिति किसी नौकर से कम नहीं थी रसोई सँभालने में उनका पूरा दिन निकल जाता था, उनके बाद घर में दो तीन और भी बाहें ब्याह कर लायी गयीं ..उन्हें रसोई का दर्शन तक नहीं करवाया गया, नयी बहुत की रसोई छुवाई रस्म  के बाद उन  बहुओं ने कभी  भी रसोई का मुँह नहीं देखा, बिना किसी शिकायत के भंडारिन अपना फ़र्ज़ निभातीं रहीं |
   घर की बड़ी बहु का दर्ज़ा और इज्जत तो कभी उन्हें मिली ही नहीं | देवरानियों के बच्चे बड़े हो चुके थे, वो भंडारिन के साथ खेलते थे, मातृत्व सुख क्या होता है .. ये तो भंडारिन जानतीं नहीं थी लेकिन देवरानियों के बच्चों पर अपना सारी ममता लुटा देती थीं, कई बार खेल -खेल में बच्चे भंडारिन का बाल पुरुषों की तरह काट देते , वो कुछ नहीं कहतीं .. बच्चों को खुश देखकर वो भी बहुत खुश होतीं थीं |
    बुजुर्ग सास लीलावती की बीमारी की अवस्था में भंडारिन ने उनकी बहुत सेवा की, वो बिस्तर पर ही मल-मूत्र  त्याग करने लगीं थीं , उनकी साफ़- सफाई भंडारिन ही करतीं थीं |
 अपनी  शारीरिक क्षमता से बढ़कर अपने कर्म से उन्होंने घर की बड़ी बहु होने का फ़र्ज़ बहुत ही ईमानदारी से निभाया... लेकिन रणवीर शाही और उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें एक नौकर से ज्यादा कुछ नहीं समझा |
     जब भंडारिन की उम्र ढलने लगी और वो रसोई सँभालने में असमर्थ हो गयीं तब अनमने मन से उनका इलाज करवाया जाने लगा और दबी जुबान से घर में ये बातें होने लगीं की ये मर जातीं तो ही ठीक था |
  जब  एक हादसे में घर की छोटी बहु की मृत्यु हो गयी तो रोते - रोते घर की दूसरी बहुओं ने भंडारिन के सामने ही ये बात कह दी की " ये बुढ़िया अभी जिंदा है , भगवान को उठाना ही था तो इन्हें उठा लेते " .. ये सब सुनकर उस रात भंडारिन खूब रोई थीं |
   पिच्चानबे वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी , उनकी मृत्यु पर शायद ही किसी ने आंसू बहाए हों , अंत्येष्टि में भी कुछ लोग ही शामिल हुए .. सभी ने यही कहा की चलो इन्हें मुक्ति मिली .......!!!
     ईश्वर मनुष्य को पता नहीं कितने हजार कीड़े -मकोड़ों की योनियों के बाद मनुष्य योनी में जन्म देता है , भंडारिन का जन्म दो प्रतिष्ठित ज़मींदारों के झूठे मान -सम्मान और सामाजिक मर्याओं की भेंट चढ़ गया ...................................... !!!!

शोभा मिश्रा,  11/6/12 

Monday, June 4, 2012

चेहरे

कभी भीड़ से
कभी अकेले से
कभी धुंधले से
कभी दूर से
कभी करीब से
कभी अजनबी से
कभी अपने से
मिलते,बिछड़ते चेहरे
कई बार..
आँखों से ओझल हुए
बहुत चेहरे
कुछ अपने से ....!!!!

( शोभा )

गुलमोहर

गुलमोहर!
तुम प्राणवायु हो
शीतल छाया हो
लाल फूलों से सजे
तुम बहुत लुभावने हो

और 'मैं'
मर्यादा से बंधी
वो पवित्र धागा हूँ
जो किस्तों में कई बार बाँधी जाती हूँ
कभी बरगद,कभी पीपल के तने से
मैं बंधी हूँ
परम्पराओं की मजबूत डोर से

काश !
मैं एक अनजाने
सघन वन के कंद का बीज होती
रोप लेती खुद को
तुम्हारी जड़ों में
धीरे धीरे एक लता बन
तुम्हारे तने
तुम्हारी कोमल टहनियों
पर छा जाती
तुम्हारी हरी पत्तियों
और लाल फूलों के गुच्छों
से एकाकार हो जाती
सारी मर्यादों,परम्पराओं से मुक्त
अमरबेल बन बंध जाती
तुम संग
सदा के लिए .....!!!
शोभा मिश्रा
4/ 6/ 12

Saturday, June 2, 2012

संडे


Shobha Mishra
April 23
आज पूरा संडे यूँही तुमने
बिस्तर पर उंघते
चैनल बदलते बिता दिया
ऐसी भी क्या छुट्टी मनाना
न शेविंग , न नहाना
जरा आईने में अपनी सूरत देखो
खुद ही डर जाओगे
कितने आलसी हो तुम ........

मेरी सारी तीखी, शिकायत भरी बातों को अनसुना कर
हल्के से मुस्कुराकर, तकिये को बांहों में भींचकर
तुम फिर एक झपकी की तैयारी कर लेते हो .....
पर जानते हो ..........
तुम्हारी गैरमौजूदगी में
तुम्हारी ही तरह अलसाया संडे बितातीं हूँ
और तुम्हें याद करके बहुत मुस्कुरातीं हूँ
सच ...... बिलकुल भी बोरिंग नहीं लगता है संडे
तुम्हारी अलसाई आदतों की यादों से भरा
बहुत ही सुखद बीतता है मेरा ये दिन ......

अस्तित्व



वो भ्रम था
या थी  हकीकत
कोरे , उजले चादर से ,
अस्तित्व में तुम्हें पाया था
जगह-जगह से तुम
तार-तार होते रहे
कतरा - कतरा मैं पैबन्द बनती रही
डरतीं हूँ
अस्तित्व ही न अपना
मिटा दूँ कहीं ....

वजह क्या है



वो मगरूर नहीं है
ख़फ़ा भी नहीं
ख़ामोशी की
फिर वजह क्या है .......?
6432Unlike ·
You, Brajrani Mishra, Chandi Dutt Shukla and 29 others like this.

Damayanti Sharma क्योंकि खामोशियाँ बन गयीं हैं दिल की जुबान !!!
April 30 at 2:02am · Unlike ·  1

अंजू शर्मा man ki bhasha padhiye....:)
April 30 at 2:03am · Unlike ·  1

Gargi Mishra Majboor hoga fir :)
April 30 at 2:06am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Gargi Majburiyaan apno se bayaan kar deni chahiye ...:)
April 30 at 2:08am · Like

Damayanti Sharma bewafa to ho sakta hai na ??
April 30 at 2:10am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Damayanti ji , Anju jab sab kuchh padh liya jata hai ... tab hi man me aise prashn uthaten hain ..:)
April 30 at 2:10am · Like ·  1

Indu Singh कहते हैं न 'ख़ामोशी वार्तालाप की महान कला होती है' :)))
April 30 at 2:10am · Unlike ·  1

Gargi Mishra ‎Shobha Mishra bayanat ke baad prem aur bhi gehra ho jayega ... fir ho jayega sunane wala bhi majboor... fir dono dikhenge magroor... khaamosh.... khair aap sahi keh rahi hain apno se keh dena chahiye... par aisa ho nahi pata hai :)
April 30 at 2:10am · Unlike ·  1

Veena Bundela वह बिजी होगा..give him a call.......
April 30 at 2:11am · Unlike ·  4

अंजू शर्मा hmmm.....
April 30 at 2:12am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Veena ajkal kisi ko yaad karke sabse pahle use call hi kiya jata hai dear ji ... :))
April 30 at 2:16am · Like ·  1
Shobha Mishra Indu S .. ye Mahaan kala kabhi kabhi jaanleva ban jaati hai ...:)
April 30 at 2:17am · Like

Upasna Siag अपनी याद दिलाने का यह भी एक तरीका हो .......
April 30 at 2:20am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Upasna ji iss tarah to vo aur yaad aayegaa ...:((
April 30 at 2:21am · Like ·  2

Upasna Siag तो ये भी एक अदा है उनकी झेलनी तो होगी ही ना
April 30 at 2:22am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Damayanti ji Bevafai uski majburi ho sakti hai ...:))
April 30 at 2:23am · Like

Anandi Rawat ये उनका स्टाईल हुइंगा..होंठो पे न दिल पे हाँ हुइंगा....:))
April 30 at 2:25am · Unlike ·  2

Damayanti Sharma hmmmmm, haan, sambhav hai.. per aakhir to nikla bewafa hi na !!
April 30 at 2:26am · Unlike ·  1

सुनीता सनाढ्य पाण्डेय आप जो सामने बैठी हैं उनके...आपको नज़रों से पी लें कि लब खोलें??........:))))
April 30 at 2:27am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ha ha ha ha सुनीता Raani padhaari apne naye andaaz me ...;)
April 30 at 2:29am · Like ·  1

सुनीता सनाढ्य पाण्डेय ना जी ना...ये तो अपुन का पुराना अंदाज़ ही है....कभी कभी घूमने चला जाता है बस कहीं.....:)))))))
April 30 at 2:30am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎सुनीता mast andaaz hai ... Zindagi bahut chhoti hai .. ise banaye rakhna ...:))
April 30 at 2:33am · Like ·  1
Shobha Mishra ‎Anandi सखी .. उनका ये स्टाईल किसी की जान लेइंगा ...:)
April 30 at 2:33am · Like ·  1

सुनीता सनाढ्य पाण्डेय आप अपना आशीर्वाद यूं ही बनाए रखना....:)))))))
April 30 at 2:33am · Unlike ·  1

Praveena Joshi समय नहीं मिला , माफ़ी चाहूंगी ......
April 30 at 2:34am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Praveena sakhi .. lekin Joshi ji kahaan hain ...? ..:)
April 30 at 2:36am · Like ·  1

Praveena Joshi समझी नहीं ?
April 30 at 2:40am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Praveena sakhi Navdampati ek saath hone chahiye na ...:)
April 30 at 2:44am · Like

Praveena Joshi नहीं , नवदंपती अभी अलग अलग है ...वजह आपको मालूम है
April 30 at 2:45am · Unlike ·  1

Sonroopa Vishal खामोश लफ़्ज सबसे ज्यादा बातुनी होते हैं .....अगर सामने वाला समझने की कोशिश करे तो ..:)
April 30 at 2:51am · Unlike ·  2

Anita Maurya hmmmm.. ये दिल सुन रहा है, तेरे दिल की जुबाँ.. समझीं... मेरी प्यारी दी...
April 30 at 3:50am · Unlike ·  2

Saroj Singh wah wah
April 30 at 4:24am · Unlike ·  1

Sara Misra koi to thi vajah
warna yun basar khamoshi to nhi
April 30 at 4:26am · Unlike ·  2
Shobha Mishra ‎Saroj ji , Sara aap dono ka bahut bahut dhanywad !!
April 30 at 7:25am · Like

Ashutosh Rana Sammaniya Shobha ji..Atyant sundar kavyatmak vichar ! Khamoshiyan bhi bolti hain unki bhi zuban hoti hai,afsos ye hai ki hamare paas vaise kaan nahi hote jo unhe sun saken :) "Koi kahe kahe na kahe,Ye aur baat hai!Varna Sannate bhi awaaz kiya karte hain!!" Jai ho shubh ho :)
April 30 at 11:17pm · Unlike ·  3

Reetu Sharma wah bahut badiya ....
May 1 at 12:37am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Ashutosh ji Aapne chand panktiyon ki Sundar , Vistrit vivechna ki hai ...Aapka hardik dhanywad !!!
May 1 at 7:21am · Like
Shobha Mishra Shukriya Reetu ..:)
May 1 at 7:21am · Like

Aparna Khare sharam...
May 1 at 7:25am · Unlike ·  1
Shobha Mishra Ji Aparna ji .. ho sakta hai ...:)
May 1 at 7:27am · Like

Niti Mishra yahi to nhi pata :(
May 1 at 7:40am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Niti milkar pataa karten hain ...:)
May 1 at 7:42am · Like ·  2

Niti Mishra Achaa .... chaliye pata lagaya jaye
May 1 at 7:43am · Unlike ·  1
Shobha Mishra ‎Niti vajah main pahle jaan gayi to ..? :)
May 1 at 7:45am · Like ·  1

Niti Mishra KHAMOSHI TUTNI HAI CHAHE JAISE :)
May 1 at 7:46am · Unlike ·  2
Shobha Mishra Niti ...:)
May 1 at 7:47am · Like ·  2

Niti Mishra ‎;)
May 1 at 7:47am · Unlike ·  2

Bharat Tiwari aapas kii baat thi yahan kyon ...
May 2 at 3:06am · Unlike ·  2

Niti Mishra bhaiya aap bhi shamil ho jaiye na...:)
May 2 at 3:06am · Unlike ·  2

Bharat Tiwari haan soch raha hoon Niti ... ab pata kara jaaye masla kya hai
May 2 at 3:11am · Like ·  1

Niti Mishra ha kaise bhai hai ... abhi tak behno k liye kuch dhyan hi nhi rakhte...:)
May 2 at 3:15am · Like

Bharat Tiwari meri bahan Niti ko kabhi koi kuch kahe to dikha doon
May 2 at 3:16am · Like ·  1

Bharat Tiwari लीजिए अर्ज है ताज़ा Shobhaजी
उसकी ख़ामोश जुबां रोक रही है धड़कन मेरी
कोई कह दे उसे ये बात, बस हैं साँसे दो चार यहाँ ... भरत
May 2 at 3:22am · Unlike ·  2

Niti Mishra hame toh bahut guma ho raha hai aaj :)
May 2 at 3:25am · Unlike ·  1

Bharat Tiwari ‎@niti Bhagwan na kare lekin kabhi iss Bhai ki zarurat ho tab dekhna @ Shobha ji mere sher ko to kisi ne dekha hi nahin ... hatana padega
May 2 at 3:33am via mobile · Unlike ·  2

Niti Mishra bhaiya hamne aur shobha ji ne toh dekha liya apka khubsurt sher ab aur kisko dikhana hai :)
May 2 at 3:35am · Like ·  1
Shobha Mishra maine dekh liye Bharat ji ...:) bahut darad hai aapke sher me ... :( dheere dheere Vajah saamne aa rahi hai ... sher mat hatana ...:)
May 2 at 3:36am · Like ·  1

Niti Mishra lekin ye UNKI hai kon :)
May 2 at 3:36am · Like ·  1

Bharat Tiwari parda hai parda
May 2 at 3:40am via mobile · Like

Niti Mishra Lo ham behne kaam hi aayegi ....... bata dijiye naaaaa
May 2 at 3:41am · Like ·  1

Bharat Tiwari arre aise hi @niti @shobha ji ki writing se inspire ho ke
May 2 at 3:43am via mobile · Like ·  1

Niti Mishra lekin bhaiya apne sher bahut hi khobsurt likha hai
May 2 at 3:46am · Unlike ·  2

Bharat Tiwari many thanks @niti
May 2 at 3:48a

पतंग


इस भरोसे पे कि
तुम्हारा आसमाँ उसका ही तो है
उसने जमीं के एक टुकड़े की भी ख्वाहिश न की
पतंग बनी उसके जीवन की डोर तुमसे न संभली
भटक रही है जाने कहाँ ,अपने वजूद को तलाशती ........

Thursday, May 3, 2012

सखी जब तुम वापस आना

सखी जब तुम वापस आना
*****************
उगते हुए ताम्बई सूरज की चमक
अपनी बिंदिया में सजा लाना
दुपहरिया के धूप की तपन
अपनी साड़ी में सोख लाना
मंदिर के बाहर के पीपल की थोड़ी छाँव
अपनी चोटी में गूँथ लाना
तारों के नीचे सोते हुये
उनकी गिनती लिख बटुए में लेती आना
सुनना "रामबिरिक्ष" की कहानियाँ
मीठे सपनों में सुनहरे,मखमली पंखों से
सहलायेंगी तुम्हें रात भर परियाँ
वो नर्म अहसास अपनी बांहों में भर लाना
अमवारी की खट्टी हवाएं
अपनी साँसों में भर लाना
कोयल की मीठी कूक
अपनी आवाज़ में उतार लाना
पगडंडियों की धूल से अपने पाँव सान लाना
नानी के आंसुओं से अपनी पलकें भिगो लाना
और भी बहुत कुछ ला सको तो लाना
तुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
जहां आँगन नही होता, न मुंडेर
जहाँ काँव काँव करता कौवा भी नही लाता कोई सनेस
सखी तुम आना, तुममे मैं देखूँगी वो अतीत
जो कभी तीत लगता ही नहीं ..... ( शोभा )

Thursday, April 26, 2012

आपबीती


शनिवार को मेरे साथ एक छोटी सी कुछ डरावनी( मेरे लिए डरावनी थी ) घटना घटी | वरिष्ठ कवि शिवमंगल सिद्धांतकार के घर में एक छोटी सी काव्य संगोष्ठी थी , मैं भी वहां गयी थी , आदरणीय कवि सिद्धांतकार जी को सुनना मेरे लिए अपने आप में एक सुखद अनुभव था |
अब उस डरावनी घटना के बारे में आप सबको बताती हूँ , गोष्ठी शाम के 6 बजे तक चली , वापसी में कवित्री रेनू हुसैन जी ने मुझे पंजाबी बाग तक अपनी गाड़ी से छोड़ दिया , वहां से बस से मैं मायापुरी चौक आई , मायापुरी चौक से लगभग १०० मीटर की दूरी पर ही मेरा घर है मैं पैदल ही घर की तरफ चल पड़ी .. तब तक 7 बज चुके थे और अँधेरा भी हो गया था .. मैं अभी घर से कुछ ही दूरी पर थी की एक गंदे से आदमी ने साईकिल मेरे बिलकुल बगल से लहराते हुए निकाली और शायद कुछ कहा भी ... मैं तुरंत समझ गयी की ये कोई सिरफिरा है .. मन में बहुत से बुरे विचार आ गए ... सबसे पहले अपनी बेटी का ध्यान आया क्योकि उसे भी कभी कभी कॉलेज से लौटने में देर हो जाती है ... उसके बाद अपने सोने के जेवरों पर ध्यान गया .. मैंने सिर्फ एक अंगूठी और कानों में टॉप्स पहन रखा था .. दूसरे ही क्षण अपने पर्स का ख्याल आया .. उसमें कुछ 2000 रुपये थे ... सबसे ज्यादा जान का खतरा लगा ... अक्सर समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल्स में महिलाओं और लड़कियों पर ऐसे सिरफिरों द्वारा चाकू और दुसरे धारदार हथियारों से हमले की बातें देखतीं सुनती रहतीं हूँ ...चंद सेकेण्ड में ही इतने सारे बुरे ख़याल मेरे मन में आ गए ... मैं मन ही मन बहुत डरी हुई थी लेकिन चेहरे पर मैंने ये भाव प्रकट नहीं होने दिया ... मैं अपनी सहज मुस्कराहट के साथ आगे बढती जा रही थी ... कुछ कदम की दूरी पर जाकर उस आदमी ने साईकिल रोकी और मुझे देखने लगा .. मैंने भी उससे पूछ ही लिया " तुम क्या कह रहे थे ..? " ... "कुछ भी तो नहीं " उसने जवाब दिया और आगे बढ़ गया ... लेकिन वो फिर रुका और मुझसे बोला की मेरे पास गाड़ी नहीं है नहीं तो आपको बैठा लेता ... इतना सुनना था की मेरे अन्दर एक क्रोध की ज्वालाग्नी फूट पड़ी ... लेकिन मैंने उससे मुस्कुराकर कहा की थोडा आगे चलो ... मैं तुम्हारी साईकिल पर ही बैठ लूँगी ... मैंने मन ही मन उसे सबक सिखाने की ठान ली थी ...वो कुत्सित बुद्धि वाला आदमी भी शायद कुछ समझकर डर रहा था ... वो एक बार फिर रुका लेकिन फिर जल्दी ही साईकिल पर सवार होकर तेजी से आगे बढ़ने लगा ... मैंने थोडा प्यार से उसे आवाज़ लगायी और उससे रुकने के लिए कहा ... वो भी डर रहा था लेकिन मेरे आवाज़ देने पर रुक गया ... उसे उम्मीद भी नहीं होगी की उसके साथ क्या होने वाला है ... मैं उसके पास खड़ी हो गयी ... और गुस्से में उससे कहा की 'तू मुझे साईकिल पर बैठायेगा ..? ' .. मेरा गुस्सा देखकर वो साईकिल लेकर भागने की फिराक में था ... लेकिन मुझमें पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत और ताकत आई .. मैंने उसकी साईकिल पीछे से पकड़कर उसे साईकिल समेत नीचे जमीन पर गिरा दिया ...और उसके गालों पर पता नहीं कितने थप्पड़ रसीद कर दिए .... उसे मैंने पीटना तब बंद किया जब मैंने उसके होंठों से खून निकलता देखा ... एक स्कूटर सवार सज्जन ये सारा माज़रा शरू से देख रहे थे ... कुछ और लोग भी आ गए ... सबने मुझसे यही कहा की इसे छोड़ दीजिये और जाने दीजिये ... वो आदमी मुझे माताजी और बहनजी कहकर हाथ जोड़कर लगातार रो रहा था और माफ़ी मांग रहा था ....लेकिन उस कुत्सित मानसिक वाले व्यक्ति का अपराध इतना बड़ा नहीं था की उसे पिटाई से ज्यादा कोई और सजा दी जाए |
ये कहानी लिखकर बताने में इतनी बड़ी लग रही है ... लेकिन ये सारा वाकया घटित होने में सिर्फ 4 या 5 मिनट ही लगे होंगें | मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा है की मैंने ये सब किया लेकिन इस घटना के बाद मुझमें एक अलग तरह के आत्मविश्वाश की वृद्धि हुई है ...

Tuesday, April 17, 2012

नीले निशान

वो फिर आज आई
अपनी देह पर सैकड़ों
नीले निशान लेकर
रूखे,बिखरे बाल
माथे पर उभरा नीला निशान
गालों पर छपी हुई नीली उंगलियाँ
गर्दन और पीठ पर
नाखूनों के खरोंच का निशान
बाहों पर निलयिपन लिए कत्थई निशान
कलाई पर चूड़ियों के जख्म
अपने चेहरे के दयनीय भाव को ..
छिपाने का असफल प्रयास करते हुए
और दिखाते हुए झूठा विद्रोहाना अंदाज़
वो घुटी हुई आवाज़ में चीखकर बोल रही थी
कुछ अपशब्द
" बीबी जी ! मांग धोये लिए आज हम
विधवा हैं हम आज से
दुई दिन निवाला मुह में न जाई
ता ओका होश ठिकाने आ जाई "
कांपती हुई आवाज़ में बडबडाती हुई
बेरहमीं से गुस्से में अपने जख्मी..
गालों पर से आँसूं पोंछ देती हैं
खुद पर हुई बर्बरता मुझे सुनाकर वो चली गयी
उसके जाने के बाद
मैंने महसूस किये अपने पैरों के कंपन
और बढ़ी हुई धड़कन को !
फिर आई वो दूसरे दिन
कुछ लजाती, मुस्कुराती हुई
सितारों से चमकती लाल साड़ी पहनकर
आज कुछ हलके पड़ गए थे
उसके जख्मों के निशान
आज बस इतना ही कह सकी थी वो
" उसने हमसे माफ़ी मांग ली है "
कुछ गुनगुनाती हुई
करती रही वो घर की सफाई
और मैं सोचती रही
उसके क्षणिक सुख के बारे में
और खोजती रही
इस प्रश्न का उत्तर
"क्या अपना जीवन यूँही बिता देगी
"वो" "उसे" माफ़ करते करते" .....? ( शोभा )

Tuesday, April 10, 2012

पीला पुराना एल्बम

अब मैं
तुम्हारे लिए बस
एक पुराने एल्बम की
कुछ पीली पड़ी तस्वीरें..
भर बनकर रह गयीं हूँ
बहुत प्रिय है तुम्हें
कुछ - कुछ फटे
प्लास्टिक कवर वाला ये एल्बम
इसलिए तो तुमने रखा है इसे
बड़े जतन से अपनी दूसरी
यादगार वस्तुओं के साथ ..
अपने पुराने बक्से में
उकता जाते हो जब कभी-कभी
अपने डिजिटल कैमरे से खींची हुई
आधुनिकता से भरी
नए-नए चेहरों वाली
तस्वीरों की भरमार से
अंततः उब जाते हो
जब उन कृत्रिम मुस्कानों से
तब याद आता है तुम्हें
वो पीला पुराना एल्बम
बहुत सुकून मिलता है तुम्हें
उस पुराने , फटे कवर वाली
एल्बम की पीली पड़ गयी
तस्वीरों में मुझे मुस्कुराते हुए देखकर
हो जाता है तुम्हारा थका चेहरा गुलाबी
सुस्ताकर उस पुराने एल्बम के साथ
महसूस करते हो तुम खुद को नया सा
और तैयार हो जाते हो नयी उर्जा के साथ
फिर से खुद को थकाने और उलझाने
उन्हीं नयी आधुनिक तस्वीरों में
मुझे यूँही सहेजकर रख देते हो
फिर से उसी पुराने बक्से में .....................

( शोभा )

Tuesday, March 13, 2012

कलयुग का रावण

हे सीते !
ये कलयुग का रावण है
तुलनीय नहीं है ये त्रेतायुग के रावण से
दस मुख नहीं दिखेंगें तुम्हें इस रावण के
अपने अदृश्य सहस्रों मुखों वाला
ये रावण दिखने में राम जैसा है

हे सीते !
अपमानित नहीं है ये
अपनी बहन के अपमान से
अहम् विचलित है इसका
तुम्हें बिन लक्ष्मण रेखा के
अपनी कुटिया से बाहर विचरते देख

हे सीते !
नहीं बदलेगा ये ऋषि सा भेष
न भिक्षा मांगने आएगा
तुम्हारी कुटिया के बाहर
अपना ऋषितुल्य आचरण दिखायेगा
और तुम , भाव विह्वल होकर
लांघ जाओगी मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा
स्वेक्षा से खिंची चली जाओगी उसके मोहपाश में

हे सीते !
धैर्यहीन है ये रावण
बस देह मात्र है स्त्री इसके लिए
तुम्हें मान -सामान देकर
अर्धांगिनी बनाकर
शरण नहीं देगा अ-शोक वाटिका में
अपने भीतर छिपे दैत्य को शांत कर
जीवनपर्यन्त संग रहने का वचन देकर
विदा ले लेगा तुमसे हमेशा के लिए

हे सीते !
कलयुग है ये
रावण द्वारा छली गयी
ये व्यथा सिर्फ तुम्हारी अपनी है
राम भी अनभिज्ञ है
तुम्हारी दुविधा से
नहीं ली जायेगी तुम्हारी अग्नि परीक्षा
न ही आश्रय ले सकती हो तुम
धरती के गर्भ में

डर है तुम्हें
पवित्र होते हुए भी
अपवित्र ना कही जाओ
इतिहास के पन्नों पर ...............

( शोभा )

Monday, February 13, 2012

‎"एक छोटी सी लव स्टोरी जो गठबंधन में बदल गयी "

खूबसूरत , चंचल , मधुर मुस्कान की स्वामिनी अंजू से मेरी तीसरी मुलाकात मुकेश मानव जी के द्वारा आयोजित ' प्रेम कविता महोत्सव ' पर हुई , साथ में अंजू के पति विवेक भी थे , पति की उपस्थिति में अंजू ने जिस तरह थोडा शरमातें हुए अपनी प्रेम कविताएँ सुनाई , उससे उस मफिल में चार चाँद लग गएँ जो महफ़िल सिर्फ प्रेम कवितों के लिए सजाई गयी थी !
     आयोजन से मैं अंजू के साथ ही वापस आई , प्रेम कविताओं की बातें करते- करते अंजू और विवेक ने बताया की उनकी लव मैरिज हुई थी , इतना जानना था की फिर कब , कैसे , क्या हुआ , किसने किसको पहले प्रपोज़ किया ....ये सब जानने के लिए मैं उत्सुक हो गयी , विवेक तो थोडा शरमा रहे थे और सारी बातों को मजाक में ले रहे थे , उन्होंने मजाक करते हुए कहा की " मुझे नहीं मालूम था की इससे प्यार होने के बाद इसकी बोरिंग कविताओं को झेलना पडेगा " लेकिन अंजू ने गंभीरता से जो थोडा बहुत अपनी प्रेम कहानी के बारे में बताया वो कुछ इस तरह थी .......
             अंजू और विवेक एक ही कॉलेज में थे , अक्सर किसी न किसी बात को लेकर दोनों आपस में झगड़ते रहते थे इसके बावजूद भी दोनों एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते थे , जो कभी कभी एक अच्छे दोस्त भी एक दूसरे के बारे में नहीं जानते , समय बीतता गया , करीब दो वर्ष बाद विवेक ने ये महसूस किया की उसे अंजू से प्यार है क्योकि कभी -कभी अंजू जब कॉलेज नहीं आती थी तो वो उसके बिना खुद को अकेला महसूस करता था | विवेक ने ही पहले अंजू को प्रपोज़ किया , कहीं न कहीं अंजू के दिल में भी विवेक के लिए प्यार था वो मन ही मन इस बात को स्वीकार कर चुकी थी लेकिन विवेक से कह नहीं पाती थी , अंजू ने विवेक का प्रपोज़ल स्वीकार कर लिया लेकिन परिवार वालों की मर्ज़ी के बगैर वो शादी नहीं कर सकती थी और विवेक से प्यार की बात भी अपने परिवार के सामने रखने में वो हिचकिचा रही थी , अंजू की इस बात पर विवेक थोडा नाराज़ भी हुआ क्योकि विवेक अपने माता-पिता से अंजू के बारे में बात कर चुका था | दोनों ही अरेंज्ड मैरिज के पक्षधर थे और अपने संस्कारों के चलते परिवारवालों की रजामंदी के बगैर कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे |
     धीरे धीरे वक़्त गुजरता रहा , कॉलेज की पढाई ख़त्म करके दोनों अलग अलग जॉब करने लगे थे , कई बार दोनों ने यही सोचा की उन दोनों की शादी शायद संभव नहीं है लेकिन ईश्वर ने उन दोनों का गठबंधन तय कर रखा था तभी तो कुछ वर्ष बाद जहाँ विवेक जॉब करता था वही अंजू की भी जॉब लगी और फिर एक बार दोनों का आमना -सामना हुआ , भूले तो वो कभी भी एक दूसरे को नहीं थे एक बार फिर एक दूसरे को सामने पाकर मन में छुपी प्यार की भावनाएं एक बार फिर बाहर आ गयी |
   आखिर में विवेक ने ही हिम्मत करके अंजू के माता-पिता से अपनी शादी की बातचीत की , दोनों ब्रह्मिण परिवार से थे , दिल्ली में ही पले बढे थे इसलिए उनके माता पिता को भी उनकी शादी पर कोई आपत्ति नहीं हुई , सात साल के अफेयर के बाद दोनों की शादी खूब धूम -धाम से हुई , सबसे बड़ी बात की रिश्तेदारों और पड़ोसियों की निगाह में ये एक अरेंज्ड मैरिज ही थी |
      शादी के सोलह साल हो गएँ हैं और दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं !
विवेक गाडी ड्राइव कर रहे थे और बगल में बैठी अंजू हस्ती , मुस्कुराती हुई अपनी प्रेम कहानी मुझे सुना रही थी उसकी आँखों में आज भी विवेक के लिए वही प्रेम मुझे दिख रहा था जो कभी शादी के पहले हुआ करता होगा .......