Friday, October 28, 2011

'टिकुली'



ब्रह्म मुहूर्त का प्रहर
पास 'पोखर' से आती
'भुजैटें' की आवाज़
चौखट के अन्दर से आती
'पायल' की झुन झुन

भक्तिमय मन्त्रों के ..
उच्चारण की गुन-गुन
'कुचिया ' से बुहार की आवाज़
चूल्हे से आती लेप की सुगंध
हल्का उजाला क्षितिज पर
अम्बर के माथे नहीं सजा
अभी नूरानी सूरज
आँगन में एक सखी के
माथे पे चमकती "टिकुली "
मंद मंद मुस्काती
इक माँ अन्नपूर्णा
'अदहन' धरने लगी चूल्हे पर
संग संग उनकी मधुर आवाज़
मैं सुनती रही गुन-गुन
उफ्फ़ ! ये कैसी कर्कश
गाड़ियों के हार्न की आवाज़ ?
मैं घबरा के उठ बैठी , जिसे सुन
महानगरों के शोर में
गाँव के सुन्दर ख्वाब रही थी बुन ......

~ ~ शोभा ~ ~


'भुजैटें' = पंक्षी
'कूची '= झाड़ू
'टिकुली' = बिंदी

Tuesday, October 11, 2011

एक कविता अधूरी सी




एक कविता अधूरी सी है


शब्दों में ढली थी मुस्कुराकर


उदित हुई थी भोर की लाली लेकर


मध्य में आकर थमीं सी है


कुछ शब्द चहके थे चिड़ियों से


अंधियारों में वो चहक खोयी सी है


रात रात भर भटक रहे


ठहरते नहीं एक भी


शब्द वो कहाँ से लाऊं


खोजती ये आँखें


कई रातों से सोयी नहीं है


एक कविता अधूरी सी है .........






शोभा


हाँ, मैं चोरनी हूँ ..:)




हाँ, मैं चोरनी हूँ ..:)


चुपके से कुछ खूबसूरत पल


चुरा लेतीं हूँ ...






जब भी देखे तुमने ,


मेरी आँखों के भीगे कोर


हर बार ही तुमने अनदेखा किया


एक बार जो देखा मुस्कुराते हुए


चौंक गए थे तुम


और मैं सहम गयी थी






भूल गयी थी मुस्कुराना


फूलों संग खिलखिलाना


चिड़ियों संग आसमाँ में उड़ना


तितलियों के पीछे भागना






चुपके से ही सही


सुबह की धूप देखकर मुस्कुरातीं हूँ


फूलों संग खिलखिलातीं हूँ


उन्हीं के जैसी महकती हूँ


चिड़ियों संग उड़तीं हूँ


उन्हीं के जैसी चहकती हूँ


तितलियों के पीछे भागतीं हूँ


उन्हीं के रंगों में रंग जाती हूँ






हाँ , मैं चोरनी हूँ ...:)


चुपके से कुछ खूबसूरत पल


चुरा लेतीं हूँ ...






~ ~ शोभा ~ ~

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