Thursday, May 3, 2012

सखी जब तुम वापस आना

सखी जब तुम वापस आना
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उगते हुए ताम्बई सूरज की चमक
अपनी बिंदिया में सजा लाना
दुपहरिया के धूप की तपन
अपनी साड़ी में सोख लाना
मंदिर के बाहर के पीपल की थोड़ी छाँव
अपनी चोटी में गूँथ लाना
तारों के नीचे सोते हुये
उनकी गिनती लिख बटुए में लेती आना
सुनना "रामबिरिक्ष" की कहानियाँ
मीठे सपनों में सुनहरे,मखमली पंखों से
सहलायेंगी तुम्हें रात भर परियाँ
वो नर्म अहसास अपनी बांहों में भर लाना
अमवारी की खट्टी हवाएं
अपनी साँसों में भर लाना
कोयल की मीठी कूक
अपनी आवाज़ में उतार लाना
पगडंडियों की धूल से अपने पाँव सान लाना
नानी के आंसुओं से अपनी पलकें भिगो लाना
और भी बहुत कुछ ला सको तो लाना
तुम्हारे आने में, आ जाएगा मेरा गाँव इस शहर में
जहां आँगन नही होता, न मुंडेर
जहाँ काँव काँव करता कौवा भी नही लाता कोई सनेस
सखी तुम आना, तुममे मैं देखूँगी वो अतीत
जो कभी तीत लगता ही नहीं ..... ( शोभा )