Thursday, February 24, 2011

दुआ

 ''सूखे हुए दरख्त से जो नाउममीद नहीं हो तुम, ये दुआ भी करो कि छांव दूर तक साथ चले''

करिश्मे

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आज की सुबह कुछ नई सी है..
हवाओं में खुशबु सी तेरी आने लगी है..
तेरी आँखों से देखी ये इक नयी दुनिया ..
इन् आँखों में ख़ुशी की नमी सी है..
हर ख्वाहिश तेरी पूरी खुदा करे..
...तेरी किस्मत में करिश्मे ये खूबसूरत होते रहें ..
खुदा से अब दुआ मांगी यही है ...!!!

पाक मोहब्बत

पाक मोहब्बत

खुदा के तोहफे को समझ न सके वो ..
मेरी पाक मोहब्बत का मखौल उड़ाते रहे ..
रजा गर जख्म देने में है उनकी ..
खुदा का नायाब तोहफा समझ कर ..
उनके दिए हर जख्म को दिल से लगाकर रक्खेंगें ...!!! शोभा

जय हिंद , जय जवान , वंदेमातरम

जय हिंद , जय जवान , वंदेमातरम

by Shobha Mishra on Tuesday, January 25, 2011 at 2:05pm




















हिमालयकी तरह तुम रहना शान से ...
इसी तरह सर ऊँचा रखना गुमान से !

मुश्किलों को रखना तुम अपनी ठोकरों पर ..
बढ़ते जाना यूहीं आगे सीना तान के !

डरना नहीं तुम दुश्मन की गोलियों की बौछार से ..
हिंद की आन को बचाने के लिए ,
खुद को न्योछावार कर देना शान से !

इन्कलाब के उदघोश को बुलंद इतना करना ..
थर्रा जाये दुश्मन उसकी गूँज से !

फिर आ सकते हैं वो दरिन्दे खेलने खून की होली ..
तुम सजग रहना उनकी चाल से !

गर्व है हमें तुम वीरों पर ..
 मातृभूमि के पूतों पर ..
हो सके तो एक बार घर भी आना ..
रास्ता देख रहा है कोई तुम्हारा बड़े अरमान से ...!!!

      **** शोभा ****

प्रेम की पाती

प्रेम की पाती










प्रेम की पाती लिख लिख ..
सहेज रखी हूँ ढेर ..
प्रियतम का पता न ढूढ़ सकी ..
केहि विधि भेजूं सन्देश ...!!! शोभा

तेरे लब पे खेलता वो तबस्सुम ..

तेरे लब पे खेलता वो तबस्सुम ..
मेरे कत्ल की वजह ही बन गया ..
मेरा वजूद फ़ना, उस मासूम अदा पे...
और मुस्कराहट तेरी कायम है लगातार ... !!! शोभा

2-
गुज़रा वक़्त लौट आया था
भ्रम था कि थमा हुआ है 
बेवफा नहीं था
वो वक़्त था
एक बार फिर गुज़र गया .. ........

3- 
कच्ची नींव थी ..इमारत ढहनी ही थी ..और कुछ नहीं ..बेसब्रों की ख़त्म कहानी यूँ ही हुआ करती है

मुबारक

मुबारक

जमाना मुबारक हो तुम्हें बेशक नया ..
पर भूल ना जाना तुम जो गुजर गया..
वो गलियां पुरानी..
वो खंडहर मकां..
वो जर्जर दरोदीवार..
उसमे शामिल तुम्हारा अहसास बाकी...
जैसे जर्द पत्तों में है कुछ जान बाकी..
हो सके तो वक्त फुरसत कभी...
रूख करना जरा..
जिधर है तुम्हारे नक्शे पा बाकी..!!!

shobha

क्यों छलिया बन कर छलते हो ..





क्यों छलिया बन कर छलते हो ..


क्यों दर - दर मुझे भटकाते हो ..


बस एक बार अपनी शरण में ले लो ..


मुझे सारे गिले- शिकवे दूर कर लेने दो ..


मेरे अंतर्मन की आवाज़ तुम सुन लो ..


मानती हूँ ,मीरा सी दीवानी नहीं मैं ..


राधा सी प्यारी भी नहीं मैं ..


हृदय में न सही ,


अपने चरणों की दासी ही समझ लो ..


अब और नहीं भटकाओ मुझे ..


अब और नहीं तरसाओ मुझे ..


मैं तुम्हारी हूँ , बस तुम्हारी हूँ ..


अपने में ही रच - बस जाने दो मुझे .. !!!


            शोभा


चाह अब भी .. उस आँचल की छाँव की ...

याद है मुझे अब भी
जब मैं छोटी थी
अक्सर डर जाया करती थी
भाग कर आती थी तुम्हारे पास
तुम मुझे छुपा लेती थी आगोश में
तब मैं अपने आप को,
बहुत सुरक्षित महसूस करती थी !

एक बार फिर मैं अकेली हूँ
बहुत डरी हुई भी हूँ
जरुरत है फिर मुझे तुम्हारे आगोश की
छिपा लो मुझे फिर एक बार..
उसी आगोश में !

नन्हें पाँव से जब चलना सीखा मैंने
लडखडाती थी मैं कई बार
हर बार तुम मुझे सहारा देती थी !

माना अब मेरे पाँव बहुत मजबूत हैं
ठोकरे मेरी पग-पग पर और ज्यादा हैं
एक बार फिर मुझे..
तुम्हारे सहारे की जरुरत है !

जब बचपन में सखी ने मेरे खिलौने तोड़े थे
मैं बहुत रोई थी
तुमने जब मुझे आलिंगन किया
भूल गयी थी मैं सारे गम !

अब तो हर पल दिल टूटता है मेरा
फिर से एक बार मुझे आलिंगन करो
फिर से मेरे माथे पर,
अपने होठों से स्पर्श करो !

बचपन में
तुम्हारी प्यारी भरी थपकी
और लोरी सुने बगैर ,
मैं सोती नहीं थी !

अब नींद मेरी आँखों से उड़ चुकी है
रातें मैं जाग कर बिताती हूँ
एक बार फिर मुझे तुम लोरी सुना दो
थपकी देकर मुझे सुला दो !

मैं बड़ी ही कब हुई थी
अब तो अपने आप को,
और भी छोटी महसूस करती हूँ !

मुझे फिर से एक बार दे दो
वही आँचल की छाँव
मुझे फिर से दे दो वही .
प्यार भरा स्पर्श,

अब मुझे तुम्हारी,
और भी ज्यादा जरुरत है
बहुत ज्यादा ...................

शोभा

(कविता नहीं बस 'माँ' के लिए मन के भाव हैं .. याद नहीं कब लिखा था )