आगमन की अनुभूति से अनभिज्ञ जब उसने अपनी कोमल गुलाबी पंखुड़ियों सी पलकें
हलके से ऊपर उठाई तो नारंगी क्षितिज को मंत्रमुग्ध सी निहारती रही, स्वर्ण
सी दमकती बादलों की मुलायम रुई की मंडलियाँ एक दूसरे से गुंथी हुई बहुत
नज़दीक उसके गालों को अपने स्पर्श से गुदगुदा रही थी ..
नन्हें पाँव के नीचे गीली रेट की गुदगुदी उसके ह्रदय और रोम रोम को उमंगों से भर रही थी, ठंडी नदी की धीमी लहरें बार-बार पांवों में पायलों का आकार दे रही थी, ठंडी बूंदों की रुन-झुन कानों से होती हुई मस्तिष्क की शिराओं को विषादों से मुक्त कर ब्रह्माण विचरण का आभास दे रही थी, देवदार के वृक्षों से ढंकी विशाल पर्वत श्रंखला को वो अपनी नन्ही बाहों में समेत लेना चाहती थी .
इन्द्रधनुष के सभी रंगों से सजी क्यारियाँ, फूलों की पंखुड़ियों पर इतराती तितलियाँ उसकी आँखों में सभी रंग भर दे रहीं थी .
तभी अचानक पांवों के नीचे की गीली नरम रेत पथरीली होती गयी , पाँव में पायलें बनती ठंडी लहरें सख्त बेड़ियाँ बनती गयीं ....................
( सृष्टि से प्रथम साक्षात्कार के बाद )
नन्हें पाँव के नीचे गीली रेट की गुदगुदी उसके ह्रदय और रोम रोम को उमंगों से भर रही थी, ठंडी नदी की धीमी लहरें बार-बार पांवों में पायलों का आकार दे रही थी, ठंडी बूंदों की रुन-झुन कानों से होती हुई मस्तिष्क की शिराओं को विषादों से मुक्त कर ब्रह्माण विचरण का आभास दे रही थी, देवदार के वृक्षों से ढंकी विशाल पर्वत श्रंखला को वो अपनी नन्ही बाहों में समेत लेना चाहती थी .
इन्द्रधनुष के सभी रंगों से सजी क्यारियाँ, फूलों की पंखुड़ियों पर इतराती तितलियाँ उसकी आँखों में सभी रंग भर दे रहीं थी .
तभी अचानक पांवों के नीचे की गीली नरम रेत पथरीली होती गयी , पाँव में पायलें बनती ठंडी लहरें सख्त बेड़ियाँ बनती गयीं ....................
( सृष्टि से प्रथम साक्षात्कार के बाद )
कोमल भाव लिए सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया
अनुपम भाव ...
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