काश !
कुछ ऐसा हो जाए
सब कुछ भूल जाऊं
कौन हूँ ...
क्या हूँ ...
क्या करना है ..
किसी को स्कूल भेजना है ..
किसी को ऑफिस भेजना है ..
कोई मेरा है ..
मैं किसी की हूँ .. !
काश !
कुछ ऐसा हो जाए ..
खो जाऊं कश्मीर के जंगलों में
बेताब वैली की वादियों में
पहलगाम में 'बशीर' के घर जाऊं
उसकी पत्नी से खूब बातें करूँ
उसके बच्चों के साथ खेलूं !
काश !
कुछ ऐसा हो जाए
फिर बचपन में चली जाऊं
मामाजी के गाँव में रहने लगूं
सुबह अपनी गाय को चरने भेजूं
शाम को छत से उसका इंतज़ार करूँ
उसके 'बछड़े' को अपने हाथों से घास खिलाउं
'केमुआ' से घोसले से तोता उतारने को कहूँ
तोते की चोंच में चम्मच से दूध पिलाउं !
काश !
कुछ ऐसा हो जाए
नन्ही-मुन्नी गुड़िया बन जाऊं
चांदनी रात में छत पर ...
नानी जी की गोद में सर रखकर सोउं
'रामबिरिक्ष ' की कहानियाँ सुनूँ
"चंदा मामा आरे आवा .. पारे आवा ...
नदिया किनारे आवा ..
चाँदी की कटोरिया में दूध-भात लेले आवा "
नानीजी की लोरी सुनूँ !
काश !
कुछ ऐसा हो जाए
कि 'बेबी' की झोपडी में ..
बेफिक्र होकर उससे मिलने जा सकूँ
उसके चूल्हे पर खाना बना सकूँ
मिटटी के फर्श पर उसके साथ सोकर ...
उसकी डायरी पढ़ सकूँ ........
काश ...... काश ...... काश .....
( 'केमुआ' से बचपन की यादें जुड़ी हैं ..'.रामबिरिक्ष' बचपन की कहानियाँ ..... 'बशीर' बहुत प्यारा दोस्त ..हर सर्दियों में शाल बेचने आता है .... 'बेबी' दिल के बहुत करीब .. प्यारी बच्ची ... )
कविता नहीं है ... बस मन के भाव हैं .... बस एवीं ... बिजी संडे के दिन मन बहलाने के लिए ..:)
बढिया, बहुत सुंदर
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