एक बेबस
भूखी
गरीब
अपमानित
सिसकते
अक्षरों वाली
स्त्री-जीवन पर लिखी कविता
महफ़िलों की रौनक
तालियों की गूँज से आनंदित
पुरस्कारों से सम्मानित
अपने आलीशान महल में
आराम फरमाती रही !
वास्तविक जीवन में
एक वैसी ही स्त्री
आंसू बहाती
महफ़िलों की रौनक वाली
कविताओं के बीच
अकेली भटकती रही ..
नारी कविताओं में भी मनोरजन का साधनमात्र ही सच्ची संवेदनाओं की पात्र नहीं.
ReplyDeleteएक गंभीर और सवेदनशील प्रस्तुति.
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर