रोई नहीं थी
तड़पी नहीं थी
बेबस नहीं थी
न दर्द
न कराह
वो लड़ रही थी
दुस्साहसियों के साहस
पस्त कर रही थी
चीख नहीं
फ़रियाद नहीं
एक ललकार थी
अब सब जाग जाओ
पुकार थी
देह नहीं
दामिनी है
भीतर कुछ मरा था
वहाँ जिन्दा है
कहीं गयी नहीं
जाने भी मत देना
उसे जिन्दा रखना
सब मिलकर
खुद से एक वादा करना .....
तड़पी नहीं थी
बेबस नहीं थी
न दर्द
न कराह
वो लड़ रही थी
दुस्साहसियों के साहस
पस्त कर रही थी
चीख नहीं
फ़रियाद नहीं
एक ललकार थी
अब सब जाग जाओ
पुकार थी
देह नहीं
दामिनी है
भीतर कुछ मरा था
वहाँ जिन्दा है
कहीं गयी नहीं
जाने भी मत देना
उसे जिन्दा रखना
सब मिलकर
खुद से एक वादा करना .....
बेटी दामिनी
ReplyDeleteहम तुम्हें मरने ना देंगे
जब तलक जिंदा कलम है
हमें जगा न जाने कहाँ सो गई वो...:(
ReplyDeleteदामनी कभी मर नही सकती ......सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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