Thursday, December 6, 2012

चहक

अदृश्य है
विलुप्त नहीं हुई हैं
बस उड़ गयीं हैं एक मुंडेर से
किसी आँगन के पेड़ से
संकेत बुरे हैं उस मकां के लिए
उस पेड़ के लिए
तिनका-तिनका जोड़कर
जिसमें बनाया था उसने आशियाँ

चहक कहीं गूँज रही है
एक गाँव की हर मुंडेर आबाद है
हर पेड़ पर उनका  चंबा है
उनका अपना आसमाँ
और ऊँची उड़ान है 

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