अदृश्य है
विलुप्त नहीं हुई हैं
बस उड़ गयीं हैं एक मुंडेर से
किसी आँगन के पेड़ से
संकेत बुरे हैं उस मकां के लिए
उस पेड़ के लिए
तिनका-तिनका जोड़कर
जिसमें बनाया था उसने आशियाँ
चहक कहीं गूँज रही है
एक गाँव की हर मुंडेर आबाद है
हर पेड़ पर उनका चंबा है
उनका अपना आसमाँ
और ऊँची उड़ान है
विलुप्त नहीं हुई हैं
बस उड़ गयीं हैं एक मुंडेर से
किसी आँगन के पेड़ से
संकेत बुरे हैं उस मकां के लिए
उस पेड़ के लिए
तिनका-तिनका जोड़कर
जिसमें बनाया था उसने आशियाँ
चहक कहीं गूँज रही है
एक गाँव की हर मुंडेर आबाद है
हर पेड़ पर उनका चंबा है
उनका अपना आसमाँ
और ऊँची उड़ान है
सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteBahut sundar...
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/