Tuesday, October 11, 2011

एक कविता अधूरी सी




एक कविता अधूरी सी है


शब्दों में ढली थी मुस्कुराकर


उदित हुई थी भोर की लाली लेकर


मध्य में आकर थमीं सी है


कुछ शब्द चहके थे चिड़ियों से


अंधियारों में वो चहक खोयी सी है


रात रात भर भटक रहे


ठहरते नहीं एक भी


शब्द वो कहाँ से लाऊं


खोजती ये आँखें


कई रातों से सोयी नहीं है


एक कविता अधूरी सी है .........






शोभा


13 comments:

  1. कई रातों से सोयी नहीं है
    एक कविता अधूरी सी है .........
    to use ehsaason kee lori suna dijiye pannon per

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  2. http://urvija.parikalpnaa.com/2011/10/blog-post_12.html

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  3. नियत समय पर कविता स्वतः पूरी हो जाती है...
    अधूरी कवितायेँ सोने नहीं देती... सुन्दर भाव!

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  4. मन के अंतर्द्वंद्वों का प्रतिबिम्ब. छोटी सी सुंदर कविता बहुत कुछ कहती है.

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  5. शब्द वो कहाँ से लाऊं
    खोजती ये आँखें
    कई रातों से सोयी नहीं है
    एक कविता अधूरी सी है .........बहुत ही बेहतरीन पंक्तिया....

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  6. बेहतरीन......अधूरेपन की सम्पूर्ण कविता...

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  7. जितने खूबसूरत शब्द हैं उनते ही उन्नत भावों से सजाया है. शब्द नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए

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  8. बहुत सुन्दर मन के भाव लिए हुए

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  9. कल 09/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. कई रातों से सोयी नहीं है
    एक कविता अधूरी सी है

    कविता को पूर्णता की शुभकामनाएँ ....

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