आज फिर ख्वाब में वो आई ...
सहेली थी मेरे बचपन की !
वो पलाश के पेड़ो से घिरे ..
मुझे मेरे स्कूल की याद आई !
वो स्कूल का मध्यांतर ...
और वो मस्ती याद आई !
वो सहेलियों संग बैठना ..
वो रूठना मनाना ...
सुन्दर चित्रों से वो ...
पेन्सिल के डिब्बे को सजाना ...
चुपके से बगिया से फूल चुराना ..
फिर वो माली की फटकार याद आई!
आज भी वो सहेली ..
बहुत याद आती है ..
ख्वाबों में मेरे वो अक्सर आती है !
काश तुम मिलती ,साथ बैठते...
बचपन के वो पल...
फिर से हम जी लेते !!
आज फिर ख्वाब ........
!!!! शोभा !!!!
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