Tuesday, April 2, 2013

माँ

क्या हुआ ..?
हिचकियाँ तो आयीं नहीं होंगी
शायद भीग गया होगा आंचल
तभी तो
कलप उठा तुम्हारा मन
चौंक कर जाग गयीं
पुकारने लगी मुझे

अब हथेलियों को रोको मत
यहाँ कुछ भी सूखेगा नहीं
बरस रहा है लगातार
मेरे गालों से होकर
तुम्हारे हृदय तक पहुँच गया

अपनी नाभि की लतर से फिर जोड़ लो
भूख, प्यास, उजाले  से अनजान
शायद जीवित भी नहीं हूँ
फिर जीवन दो
आहार दो
अँधेरे में सांस लेने दो ............. 

2 comments:

  1. मां बेटी के रिश्ते पर प्यारी सी कविता.

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  2. गालों से ह्रदय तक मन को छूआ बार- बार !

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