Saturday, June 2, 2012

अस्तित्व



वो भ्रम था
या थी  हकीकत
कोरे , उजले चादर से ,
अस्तित्व में तुम्हें पाया था
जगह-जगह से तुम
तार-तार होते रहे
कतरा - कतरा मैं पैबन्द बनती रही
डरतीं हूँ
अस्तित्व ही न अपना
मिटा दूँ कहीं ....

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