उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश )
Saturday, June 2, 2012
पतंग
इस भरोसे पे कि
तुम्हारा आसमाँ उसका ही तो है
उसने जमीं के एक टुकड़े की भी ख्वाहिश न की
पतंग बनी उसके जीवन की डोर तुमसे न संभली
भटक रही है जाने कहाँ ,अपने वजूद को तलाशती ........
1 comment:
विभूति"
June 2, 2012 at 7:34 AM
behtreen...
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behtreen...
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