Saturday, March 9, 2013

नर्म रंगत ओढ़े पलाश

कृतिम रंग, स्तब्ध इमारतें
हकीक़त की नर्म रंगत ओढ़े पलाश
गहरी परत ओढ़े चेहरे
मस्तिष्क की शिराएँ,
यांत्रिक संकेतों पर भागती
एक मौसम सी है ज़िन्दगी
हकीकत के रंग ओढ़ ,
क्यों नहीं ठहर जाती ....!!!

2 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति.

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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