यूँ तो जब भी कभी थक जाती हूँ
माँ गोद की चाह कर बैठती हूँ
नर्म गुदगुदी गोद पाकर माँ की
कुछ देर विश्राम कर लेती हूँ
जीवन पथ पर चलते -चलते ..
जब बहुत ज्यादा थक जाती हूँ
तब सुर्ख लाल, नर्म ,गुदगुदी , मखमली ...
गोद , उज्जवल, स्वच्छ , बिछौने ..
और चिर निद्रा की चाह कर बैठती हूँ ...!!!
~ ~ शोभा ~ ~
सुन्दर कवितायें हैं. शब्दों में अच्छी पकड़ है आपकी, धन्यवाद.
ReplyDeleteshukriya Sanjay ji !!!
ReplyDeleteयूँ तो जब भी कभी थक जाती हूँ
ReplyDeleteमाँ गोद की चाह कर बैठती हूँ
वाकई बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति
बहुत ही खूबसूरत ..
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