हर बार की तरह इस बार भी छठ पर्व पर अपनी शादी के पहले के दिनों की याद आ रही है .. मम्मी छठ व्रत रखती थी .. छठ- पूजा की तैयारी में सूप,डलिया,और फलों की खरीददारी के साथ-साथ हम बच्चों को घाट पर पूजा के लिए जगह ढूँढने की जिम्मेदारी सौंप देती थी .. हम भाई-बहन या कुछ दोस्त मिलकर घाट पर अच्छा स्थान देखकर वहाँ मिट्टी का छोटा गोल चबूतरा बनाकर उसमें कभी गन्ना या कभी कोई लकड़ी गाड़ देते थे !
छठ-पूजा वाले दिनों में घाटों की रौनक देखते ही बनती थी .. नाक से लेकर पूरी चौड़ी भरी मांग और सोने के आभूषण से सजी सुहागिन महिलाएं नदी या नहर के पानी में कमर तक डूबी फलों और घर की बनी मिठाइयों से भरा सूप लेकर डूबते और उगते सूर्य को पूजती थी .. गन्ने और केले के पत्तों से बने मंडप में दिए और पूजन सामग्री से सजे घाटों पर अध्यात्मिक मेले जैसा माहौल होता था .. कुछ परिवारों के साथ बैंड- बाजा भी होता था ! कुछ लडकियाँ और बच्चे जिन्हें तैरना आता था वे नहर में तैरते हुए खूब छ्पकईयाँ खेलते .. शाम ढलते ही नहर/ नदि में प्रवाहित होता जल दियो की रौशनी अपने साथ बहाता हुआ -सा प्रतीत होता था ! एक साथ गोल घेरा बनाकर छठ गीत गाती महिलाएं अध्यात्म के रंग में डूबी नज़र आती ! सच .. इतने समर्पण और धैर्य से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए े उपवास करती .. ईश्वर से प्रार्थना करती महिलाओं का ओजस रूप देखकर मेरा अबोध मन उनमें ईश्वरीय शक्ति देखता था !
साज-श्रृंगार को छोड़कर पूजा की सारी तैयारी मम्मी दूसरी महिलाओं की तरह ही करती थी लेकिन वो पूजा करती हुई उदास रहती थी .. छठ पूजा ही नहीं किसी भी त्यौहार या ख़ुशी के अवसर पर पापा के ना होने की वजह से उनका अकेलापन साफ़ नज़र आता था ! करीब दो साल हो गए .. मम्मी अब छठ व्रत नही रखती .. ! मुझे तो अब याद भी नहीं कि आखिरी बार घाट पर छठ मनते कब देखा था .. बाजार में छठ का सामान बिकते हुए देखती हूँ .. शारदा सिन्हा के छठ-गीत सुनती हूँ तो बीते दिन याद आ जातें हैं ! हाँ .. कहीं ना कहीं से छठ का प्रसाद हर साल मिल जाता है:)
. कहीं ना कहीं से छठ का प्रसाद हर साल मिल जाता है:) ये माँ का आशीर्वाद है जो आपके सदैव आपके साथ रहता है ... अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 05 नवम्बर 2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!