{ jansatta news paper me prakashit kahani }
एक और खाप
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सावन की महकती संध्या थी ! हलकी रिमझिम फुहारों में संध्या बेला किसी नई- नवेली दुल्हन की तरह काले घने बादलों सी केश में लाल बिंदी लगाये, नीली ओढ़नी ओढ़े, पाँव में महावर लगा बस विदा ही लेने वाली थी ! श्रद्धा फुहारों में भीगती हुई ट्यूशन से घर लौटी ! किवाड़ की कुण्डी खटखटाने से पहले अपने घर के सामने वाले घर की देहरी पर अकेली शर्माइन चाची को देखकर कुछ क्षण के लिए रुकी और उनकी तरफ शरारत भरी नज़रों से देखती हुई पूछ बैठी -
"काहे चाची ..आज तुम्हारी चुगलखोर मंडली कहाँ है ? "
तभी उसकी नज़र चाची के हाथ पर गई ! उनकी मुट्ठी में छोटे झाड़ - पोंछ वाले कपड़े के भीतर कुछ था ! शायद कोई नन्हा जीव .. !
"आज फिर किसी चुहिया ने तुम्हारा अनाज खा लिया होगा या तुम्हारी कोई नई साड़ी कुतर दी होगी ! जान से गई बिचारी चुहिया !" दुखी होते हुए उसने चाची से कहा !
चाची उससे स्नेह से बोली -" घर और समाज के खातिर जे खतरा बने उनका ईहे हाल करे के चाही ... वैसे ई सब बातन से तुमका का मतलब ? जाओ.. जाइके हाथ - मुंह धोई के कुछ खा लो .. थक गयी होगी !”
चाची और चाची की मंडली का ये रोज का काम था ! रोज एक-दूसरे से मिलकर पूरे मोहल्ले की ख़ोज-खबर लेती थी ! किसके घर कौन आया .. कौन गया ... ! लड़कियों के चरित्र का आंकलन करना इनके स्वभाव में शामिल था ...!
दरवाजा खुल चुका था, वो घर के भीतर दाखिल होने ही वाली थी, तभी पायलों की रुनझुनी..चूड़ियों की खनक सुनकर वो एक बार फिर ठहर गयी ! एक जानी-पहचानी खुशबू का मासूम झोंका कहीं से आकर उससे लिपट गया! उसका मन कजरी खेलता, नीम के पेड़ पर झूले की पेंगें बढाता हुआ कभी ख़ुशी से झूम रहा था कभी कभी झूले के उतार -चढ़ाव जैसा अधीर हो रहा था ! घर के भीतर जाते हुए उसके कदम बाहर की तरफ दौड़ पड़े !
नारंगी,हरे और पीले रंग की लहरिया साड़ी, मेहँदी रचे हाथ, हरे रंग की भर हाथ चूड़ियाँ , कमर तक लम्बे खुले घुंघराले बाल, एक हाथ से साड़ी की प्लेट्स संभालती उसकी सखी कुलवंती उसकी ओर बढ़ी चली आ रही थी ! ट्यूशन के बैग का उसे होश नहीं था, वही बरसते पानी में बैग गिराकर वो भागकर अपनी प्यारी सखी कुलवंती से लिपट गयी ! दोनों के चेहरे पर बारिश की बूँदें थी ! भीतर का सावन आँखों से बरसने लगा !
भर्रायी आवाज़ में उसने अपनी सखी से प्रश्नों की झड़ी लगा दी-
"ये शादी.. अचानक .. !!! कब ? कैसे ? मुझे कुछ पता ही नहीं चला .. !! मैं तो गाँव गयी थी .. !! वापस आई तो पता चला तेरी शादी हो गयी !! "
कुलवंती कुछ कहती इससे पहले शर्माइन चाची ने कुलवंती को पुकारा " ससुराल से कब आई कुलवंती बिटिया ? "
"कल ही आई चाची ... आपकी तबियत कैसी है?" कहकर कुलवंती ने आगे बढ़कर चाची के पाँव छू लिए ! सौभाग्यवती रहने के आशीर्वाद के साथ ही चाची ने कुलवंती के बैठने के लिए पाटा आगे बढ़ा दिया ! तब तक चाचीजी की दो-चार और सहेलियां आ चुकीं थी ! सब एक साथ एक सुर में उससे उसके ससुराल वालों के व्यवहार के बारे में पूछने लगीं ! कुलवंती अपनी उदासी छुपाती हुई ससुराल पक्ष के सभी सदस्यों की तारीफ़ करती रही !
" तुम्हरे भाग माँ जो लिखा रहा वो हुआ ..... अब ससुराल वालन के सेवा-सत्कार करिके सबका खुश रखो .... !”
शर्माइन चाची और उनकी मंडली कुलवंती को सुझाव दे रही थी
कुलवंती सभी के सुझावों पर बस मुस्कराकर सहमती में गर्दन हिला भर दे रही थी !
प्रकृति ..संध्या रूप धारणकर विदा ले रही थी ! आलते के रंग में रंगी शाम और कुलवंती के रूप का तेज देखते ही बन रहा था ! कुलवंती की मनः स्थिति श्रद्धा समझ रही थी ! उसे स्कूल की सारी बातें याद थी ! कुलवंती ने अपने भविष्य के लिए तो कुछ और ही सपने संजोये थे .. ! मेडिकल की पढाई करके डॉक्टर बनना उसका सपना था ! उसने कभी ऐसा कोई जिक्र भी नहीं किया था कि उसके परिवार वाले उसकी शादी करने का विचार कर कर रहें हैं !
बातों ही बातों में श्रद्धा के घर वालों ने एक दिन कुलवंती के बारे में बताया था कि कैसे अपने होने वाले पति को मंडप में देखकर वो भीतर भाग गई थी ! बहुत रोइ थी वो अपनी शादी में !
चाचीजी और उनकी सखियों से घिरी कुलवंती बहुत खुश नज़र आ रही थी ! लहरिया साड़ी सोने के आभूषणों में सजी - संवरी वो बहुत सुन्दर लग रही थी ! श्रद्धा का उससे खूब बातें करने का मन हो रहा था लेकिन कुछ ही देर में वो चाची जी से विदा लेकर अपने घर जाने लगी !
श्रद्धा उसका हाथ पकड़कर बोली - " आओ ना .. कुछ देर बैठते हैं ... बातें करेंगें !"
कुलवंती उसकी हथेलियों को हलके से दबाकर मुस्कुरा उठी और उसे कसकर गले से लगा लिया !
"मेरे ससुराल वाले घर में ही बैठे हैं ... अभी वापस भी जाना है ! " ये कहते हुए उसने श्रद्धा को खुद से अलग किया !
"अरे ..!! इतनी जल्दी ? आज ही तो आई हो .. !!! कुछ दिन रूककर जाना !" श्रद्धा ने उसे रोकने का आग्रह करते हुए कहा !
कुलवंती ने अपनी दोनों हथेलियों में श्रद्धा का चेहरा लेकर भरी आँखों से उसे बहुत ही प्यार से देखा और जाने के लिए वापस मुड़ गई !
" मैं आती हूँ थोड़ी देर में तुम्हारे घर !"
वापस जाती हुई कुलवंती को पीछे से पुकारते हुए श्रद्धा ने कहा ! कुलवंती ने एक बार पीछे मुड़कर हाथ हिलाया और सहमति में सर हिलाकर अपने घर की तरफ बढ़ गई ! श्रद्धा कुछ देर वही खड़ी उसे जाता हुआ देखती रही !
" बहुत चिड़िया बनी ड़ाल -डाल फुदकत रही .. बखत रहत पंख ना काटल जात ता हाथ से निकली जातीं ! बिटिया जात के जब अपने महतारी -बाप .. हीत -रिश्तेदारन के मान - मरियादा के कौनो होश ना रहे तो अईसने सजा देवे के चाही !"
" दीदी .. तुम खूब बढ़िया काम की .... आजकल कहाँ जल्दी बिटियन के लिए अच्छा घर-बार मिळत है !"
“ का करी बहिन .. रिश्तेदारी की बात रहे ... इज्जत की बात रहे !” मोहल्ले की बात रहें .. !
चाची और चाची की सखियाँ आपस में कुलवंती के बारे में बात कर रही थी !
"ये सब क्या है चाची ? ये चिड़िया .. पंख .. और पंख काटने की बात ..... !! आप लोग कैसी बातें कर रही हो कुलवंती के बारे में ?" बहुत देर चाची और उनकी मंडली की बातें सुनने के बाद उससे चुप नहीं रहा गया ! कौतूहलवश उसने ये प्रश्न कर ही दिया !
चाची की हितैषी सखियों में से एक ने चाची की तरफ इशारा करते हुए कहा --
"अरे ... तुम नहीं जनती का ? मोहल्ले भर में मुंह काला होए से बचा हम सबन का ! कुलवंती के घरे के सामने जउन लड़के की रेडियो -टीवी की दुकान रही ओहिसे एकर खूब ताक-झाँक चलत रहे ! उ तो दीदी के आँखिन में ओहि दिन भगवान बसे रहे .. सब कुछ देखि लिहिन ... और बखत रहत परिवार के इज्जत बचा लिहिन ! "
"अरे ये क्या कह रही हो आप लोग !!! मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा !" श्रद्धा अपना धैर्य खो रही थी ! उन सभी के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वो कुलवंती के घर की ओर भागी ! उसके घर के बाहर (थ्री-व्हीलर ) टैम्पो खड़ा था ! अभी वो घर के भीतर दाखिल नहीं हुई थी , उसे कुलवंती बाहर आती हुई दिखाई दी ! कोई अधेड़ युवक भी उसके साथ था ! उसके परिवार में सभी की आँखें नम थी ! कुलवंती की सहमी सिसकियाँ सुनकर वो भी अपने आंसू रोक नहीं सकी !! आगे बढ़कर श्रद्धा ने कुलवंती को अपनी अंकवार में भर लिया ! कुलवंती श्रद्धा से लिपटकर फफक पड़ी और धीरे से श्रद्धा के कान में इतना भर कह सकी , "चाची के बहकावे में आकर हमें आजीवन सजा भुगतने के लिए काल-कोठरी में डालने से अच्छा था कि अम्मा- बाबा मेरा गला ही घोंट देते .. !!! सब खत्म हो गया श्रद्धा .. !! सब खत्म हो गया .. !!! "
कुलवंती की माँ ने उसे श्रद्धा से अलग किया और दिलासा देते हुए उसे टेम्पो में बैठा दिया ! श्रद्धा उहापोह और असमंजस की स्थिति में स्तब्ध खड़ी थी ! कुलवंती वापस अपने ससुराल जा रही थी ! टैम्पो में वो अधेड़ युवक बैठ चुका था ! कुलवंती की माँ ने जब कुलवंती को उस अधेड़ युवक की बगल में बैठाते हुए उसका ख़याल रखने की विनती की तब श्रद्धा को सारी बातें समझ आ गयीं कि वो अधेड़ युवक ही कुलवंती का पति है और चाची ने जिस अपराध की सजा उसे दिलवाई है वो भी समझ चुकी थी !
वो जहां थी वही पत्थर की तरह जड़ हो गई ! छोटे कद और सावली रंगत वाला अधेड़ कुरूप युवक कुलवंती का पति था !
वो चाची और सखियों की बातें समझ चुकी थी ! गुड़िया -सी सुन्दर कुलवंती का विवाह जान -बूझकर उसके पिता की उम्र के एक ऐसे कुरूप युवक से किया था जिसे देखकर ही कोई भी बच्ची डर जाए ! पूर्वाग्रह के चलते एक लड़की के चरित्र में दोष ढूंढ लिया गया और सजा के तौर पर उसे जीवनपर्यन्त भयावह जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया !
अल्हड़ .. खिलखिलाती कुलवंती के साथ बिताये स्कूल के दिन याद करते हुए श्रद्धा वापस घर आ गई ! चाची देहरी पर किवाड़ के सहारे खड़ी मुस्कुरा रही थी ! कुछ ही दूर वो चुहिया मरी पड़ी थी जिसको चाची ने अपने हाथों से मारा था ! उसे चाची की कही बात याद आ गयी -
-" घर और समाज के खातिर जे खतरा बने उनका ईहे हाल करे के चाही..!”
टैम्पो तेजी से सड़क पर जा रहा था ! उसमे बैठी कुलवंती भीगी आँखों से पीछे मुड़कर उसे ही देख रही थी ...........................................................
- शोभा मिश्रा
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