हर पल तरसी
दर दर भटकी
पिया की एक झलक को मैं निसदिन तरसी
थकी हारी जो एक पल को ठहरी
हलचल कुछ मेरे भीतर ही हुई
पिया छुपे थे मुझमें ही
कैसे ये मैं भूल गयी
देख सन्मुख उस 'साकार' को
झर झर मेरी अँखियाँ बरसी ...:))) shobha
दर दर भटकी
पिया की एक झलक को मैं निसदिन तरसी
थकी हारी जो एक पल को ठहरी
हलचल कुछ मेरे भीतर ही हुई
पिया छुपे थे मुझमें ही
कैसे ये मैं भूल गयी
देख सन्मुख उस 'साकार' को
झर झर मेरी अँखियाँ बरसी ...:))) shobha