हर पल हर दिन बिखर रहे हो
तन्हाई से गुज़र रहे हो
जिन वादों का दम भरते थे
उन वादों से मुकर रहे हो
दुआ दिया करते थे जिनको
अब उनसे बेखबर रहे हो
ऊंचाई की सीढ़ी पर थे
उस सीढ़ी से उतर रहे हो
थक जाओगे तब लौटोगे
कर अनजाने सफ़र रहे हो
हासिल जो तुमको था शायद
खो अपना वो हुनर रहे हो
जिनकी नज़रों में थे ऊपर
उन नज़रों से उतर रहे हो
- शोभा मिश्रा
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