Thursday, June 13, 2013

काले बादल

गलतफहमियों के तपते सूरज ने 
हमें बहुत झुलसाया है 
ख़ाक नहीं कर सका कुछ भी 

अब ऋतु बदलने वाली है 
क्योकि
आसमां के रुमाल पर जो ये सूरज है
उस पर मैंने काढ़ दीयें हैं,
काले बादल 
और कुछ हरी पत्तियाँ ...
( बस यूँही .. कुछ रफ सा )

4 comments:

  1. आपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. सुन्दर अहसास लिए सुन्दर रचना...
    :-)

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  3. गलतफहमियां उलझाती हैं पर उनके सुलझाने का आनन्द भी बहुत होता है.

    सुंदर प्रस्तुति.

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