Saturday, November 24, 2012

तपती धूप में छाँव

हम कभी-कभी अपनी निजी ज़िन्दगी में इतने व्यस्त हो जातें हैं कि अपनी माँ को भी फ़ोन करना भूल जातें हैं , आज पूरा दिन   कुछ उलझनों .. दुविधाओं भरा बीता, शाम होते-होते लगा कि जल्दी से मम्मी से बात करूँ, कुछ काम निपटाकर बात करने कि सोच ही रही थी कि तभी मम्मी का ही फ़ोन आ गया, बहुत कुछ आँखों  में छिपाकर  उनसे  बात करती रही और बार-बार उन्हें यही कहती रही कि कुछ दिन के लिए आप मेरे पास आ जाइए, उनसे बात करते हुए यही सोच रही थी कि काश ... अब भी मैं छोटी बच्ची  ही होती ( छोटे बच्चे अपनी माँ से सब भावनाएं व्यक्त कर लेतें हैं, जैसे रोना,जिद करना) .
   मम्मी से बात  करने  के  बाद  फेसबुक लॉगइन किया  तो एक प्यारे दोस्त का प्यारा सा संदेस  देखकर मन खुश हो गया, फिर कुछ देर हम दोनों .... "ओक्का--बोक्का तीन -तडओक्का "
"अटकन-चटकन दही-चटाकन"
"चिउंटी के झगडा छोडाहिया बड़का मामा"
...वाला खेल खेले ..:)
गाँव में जब घर में नया धान  लाया जाता है तो उसे कूटकर  उस चावल के आंटे में दाल की पीठी भरकर  भपारी   देके गाँव एक व्यंजन बनता  है, उसे हमारे गाँव में 'गोझा-पीठा' कहतें हैं , उसके गाँव में चेउआ कहतें हैं ...   हमने उस व्यंजन की बात की.
लिट्टी-चोखा की बात की.
अनाज रखने के लिए मिटटी की बड़ी-बड़ी डेहरी की फोटो देखकर उसके पीछे छिपकर आइस-पाइस खेलना याद आ गया
उस प्यारे दोस्त ने मुझे शहर की घुटन भरे वातावरण में ...गाँव की ताज़ी, खुली हवा की सैर करा दी ...

" तपती धूप में छाँव है
 तुम   हो   तो
 शहर में भी गाँव है "

(शोभा )

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