Saturday, June 2, 2012

संडे


Shobha Mishra
April 23
आज पूरा संडे यूँही तुमने
बिस्तर पर उंघते
चैनल बदलते बिता दिया
ऐसी भी क्या छुट्टी मनाना
न शेविंग , न नहाना
जरा आईने में अपनी सूरत देखो
खुद ही डर जाओगे
कितने आलसी हो तुम ........

मेरी सारी तीखी, शिकायत भरी बातों को अनसुना कर
हल्के से मुस्कुराकर, तकिये को बांहों में भींचकर
तुम फिर एक झपकी की तैयारी कर लेते हो .....
पर जानते हो ..........
तुम्हारी गैरमौजूदगी में
तुम्हारी ही तरह अलसाया संडे बितातीं हूँ
और तुम्हें याद करके बहुत मुस्कुरातीं हूँ
सच ...... बिलकुल भी बोरिंग नहीं लगता है संडे
तुम्हारी अलसाई आदतों की यादों से भरा
बहुत ही सुखद बीतता है मेरा ये दिन ......

2 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. यादें फिर से ताज़ा हो गयीं छोटिज्जी, छ: महीने बाद संडे फिर आया, और लाया अपने साथ आपकी सुन्दर रचना को पढ़ने का आनंद .. बहुत शुक्रिया आपका .. :-)

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